क्या जीत की गारंटी होते हैं आपराधिक छवि वाले नेता ?

अठारहवीं लोकसभा में कुल 251 माननीय भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत अपराध के लिए आरोपित हैं। इतना बड़ी तादाद में दागी सांसदों का चुनाव जीतना यह बताता है कि दागी उम्मीदवार जीत की भी गारंटी हैं। गौरतलब बात यह है कि जिस तरह समाज में दिन-प्रतिदिन नैतिकता, ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्टा, परोपकार, करुणा, दया, सत्यनिष्ठा आदि का हृस हो रहा है, कमोबेश राजनीति भी इस सबसे अछूती नहीं रही है। अब मतदाता अपने जनप्रतिनिधि का चुनाव करते समय चरित्र, ईमानदारी को वरीयता नहीं देते हैं वरन इसके ठीक विपरीत माफिया, दबंग, साधन सम्पन्न, अपराधी प्रवृति वाले नेता को अपना प्रतिनिधि चुनने से कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। मतदाता हमारे लोकतंत्र को लेकर कितना जागरूक है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चालीस फीसदी से अधिक मतदाताओं द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। यह देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के पतन की ओर ईशारा करता है।
तपती गर्मी के बीच डेढ़ माह चले चुनावी अभियान में देश के मतदाताओं ने अपने लोकतांत्रिक दायित्वों का निर्वहन किस ज़िम्मेदारी से किया है, यह देखने वाली बात है। देश में 18वीं लोकसभा अस्तित्व में आ चुकी है। देश की संसद में संगीन अपराधों को अंजाम देने के लिए आरोपित दागी नेता संसद सदस्य बन कर पहुंच गए हैं। बता दें कि संसद में पहुंचने वाले 543 सांसदों में 46 फीसदी आपराधिक रिकॉर्ड रखते हैं। यह स्थिति हर नागरिक के माथे पर चिंता की लकीर लाने वाली है। क्या इस स्थिति में देश की लोकतांत्रिक शुचिता की रक्षा हो पाएगी? क्या हम मूल्यों की शुचिता का पारदर्शी समाज बना पाएंगे? क्या ये दागदार नेता हमारी व्यवस्था को प्रभावित नहीं करेंगे? इस दिशा में चिंतन से सिर्फ  चिंता ही बढ़ती है। चुनाव प्रक्रिया से जुड़े मामलों का विश्लेषण करने वाली सचेतक संस्था एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2109 में चुने गये सांसदों में जहां 233 यानी 43 फीसदी ने अपने विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज होने की बात स्वीकार की थी, वहीं 18वीं लोकसभा के लिये चुने गए 251 सांसदों ने आपराधिक मामले दर्ज होने की बात मानी है। फिलहाल देश के निचले सदन में आपराधिक आरोपों का सामना करने वाले सांसदों की यह संख्या पिछले कई दशकों में सर्वाधिक है। वर्ष 2014 में यह संख्या 34 फीसदी, 2009 में 30 फीसदी और 2004 में 23 फीसदी थी। जनप्रतिनिधियों में दागियों की संख्या में उत्तरोतर वृद्धि होना हमारे लोकतंत्र की विसंगति को ही दर्शाता है। ज़ाहिरा तौर पर इनका परोक्ष-अपरोक्ष प्रभाव लोकतंत्र की गुणवत्ता पर पड़ेगा। विडम्बना यह है कि इस बार दागी 251 प्रतिनिधियों में से 170 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
इस बार चार उम्मीदवारों ने भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 302 के तहत अपने ऊपर हत्या से संबंधित मामले दर्ज होने की जानकारी दी है और 27 ने आइपीसी की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास से संबंधित मामले दर्ज होने की बात कही है।
नवनिर्वाचित हुए 15 उम्मीदवारों ने अपने ऊपर महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामले घोषित किए हैं, जिनमें दो पर आइपीसी की धारा 376 के तहत दुष्कर्म का आरोप है। एडीआर के अनुसार 18वीं लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में बरकरार भाजपा के 240 विजयी उम्मीदवारों में से 94 (39 फीसदी) ने अपने ऊपर आपराधिक मामले दर्ज होने की बात मानी है। इसके मुताबिक कांग्रेस के 99 विजयी उम्मीदवारों में से 49 (49 फीसदी) ने आपराधिक मामले घोषित किए हैं और समाजवादी पार्टी के 37 उम्मीदवारों में से 21 (45 फीसदी) ने अपने खिलाफ आपराधिक आरोप होने की जानकारी दी है। तृणमूल कांग्रेस के 29 में से 13 (45 फीसदी), द्रमुक के 22 में से 13 (59 फीसदी), तेलुगू देशम पार्टी के 16 में से आठ (50 फीसदी) और शिवसेना के सात विजयी उम्मीदवारों में से पांच (71 फीसदी) ने आपराधिक मामले घोषित किए हैं। विश्लेषण में पाया गया कि 63 (26 फीसदी) भाजपा उम्मीदवारों, 32 (32 फीसदी) कांग्रेस उम्मीदवारों और 17 (46 फीसदी) समाजवादी पार्टी उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा अपने हलफनामों में की है। 
सवाल यह है कि जब जनता ही अपराध के आरोपियों को चुन कर संसद भेज रही है और सभी राजनीतिक दलों द्वारा अपराधी व दबंग छवि वाले प्रत्याशियों को टिकट दी जा रही है तो संसद में दागियों के पहुंचने का द्वार कैसे बंद होगा? दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की सजग पहल के बाद ही वर्ष 2020 में निर्देश दिए गए थे कि सभी राजनीतिक दल लोकसभा व विधानसभा के उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड को प्रकाशित करें। ज़ाहिरा तौर पर इस आदेश का मकसद देश की राजनीति को आपराधिक छवि वाले नेताओं से मुक्त करना ही था, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हो रहा, क्योंकि सभी राजनीतिक दल जीतने वाले उम्मीदवार को ही प्राथमिकता देते हैं, चाहे उनका आपराधिक रिकॉर्ड ही क्यों न हो। ऐसा भी नहीं है कि किसी दल विशेष ने ही अपराधी उम्मीदवारों को टिकट दिए हों। हर छोटे.बड़े राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों में दागियों की पर्याप्त संख्या रही है। 
सवाल है कि देश के लिये नीतियां बनाने वाले ऐसे दागी लोग हमारे भाग्यविधाता बने रहेंगे तो देश का भविष्य कैसा होगा? क्या आपराधिक पृष्ठभूमि वाले जनप्रतिनिधि चुने जाने से हमारी कानून-व्यवस्था प्रभावित नहीं होगी?

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