भाई और बहन के स्नेह का प्रतीक पर्व है रक्षाबंधन
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भारत में रक्षाबंधन के पवित्र पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसे रिश्तों में मिठास, विश्वास और प्रेम बढ़ाने वाला पर्व माना गया है। इस दिन बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी लम्बी उम्र की कामना करती हैं। इस दौरान भाई भी अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और क्षमता के अनुसार उसे उपहार देता है। रक्षाबन्धन का पर्व भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक देश का एक प्रमुख त्यौहार है। रक्षाबंधन पर्व में रक्षासूत्र यानि राखी का सबसे अधिक महत्व है। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी पर्व भी कहते हैं।
महाभारत में इस बात का उल्लेख है कि जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि वह सभी संकटों को कैसे पार कर सकते हैं, तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर विपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं। इस समय द्रौपदी द्वारा कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने का कई जगह उल्लेख मिलता है।
महाराष्ट्र में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूम्बा बांधने का रिवाज़ है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुं दना लगा होता है। यह राखी केवल भगवान को ही बांधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बांधी जाती है। राजपूत योद्धा जब शत्रु से युद्ध करने जाते थे, तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम का तिलक लगाने के साथ हाथ में रेशमी धागा भी बांधती थीं। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा। उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं। ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं। अमरनाथ की अति विख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन सम्पूर्ण होती है। कहते हैं, इसी दिन यहां का हिमानी शिवलिंग भी अपने पूर्ण आकार को प्राप्त होता है। इस उपलक्ष्य में इस दिन अमरनाथ गुफा में प्रत्येक वर्ष मेले का आयोजन भी होता है। नेपाल के पहाड़ी इलाकों में ब्राह्मण एवं क्षत्रीय समुदाय में रक्षा बन्धन गुरु के हाथ से बांधा जाता है लेकिन दक्षिण सीमा में रहने वाले भारतीय मूल के नेपाली भारतीयों की तरह बहन से राखी बंधवाते हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेता कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंगाल विभाजन का विरोध करने के लिए इस त्योहार को मनाने को प्रोत्साहित किया था। वह इस त्योहार के माध्यम से विभिन्न समुदायों के बीच एक मजबूत संबंध बनाना चाहते थे। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों को एक-दूसरे के हाथों पर राखी बांधने के लिए प्रोत्साहित किया, जो भाईचारे और अपने समुदाय के लिए प्यार का प्रतीक है। इस त्योहार का जश्न ब्रिटिश शासकों और बंगाल के विभाजन और हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मतभेदों के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रयास था।
रक्षाबन्धन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। विवाह के बाद बहनें पराये घर में चली जाती हैं। इस बहाने प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बांध कर अपने रिश्तों का नवीनीकरण करती हैं। समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भी एकसूत्रता के रूप में इस पर्व का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार जो कड़ी टूट गयी है, उसे फिर से जागृत किया जा सकता है।
भारतीय संस्कृति इतनी लचीली है कि इसमें हर संस्कृति समाहित होती चली जाती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, सौराष्ट्र से असम तक देखें तो यहां के लोग प्रतिदिन कोई न कोई त्योहार मनाते मिलेंगे। इन त्योहारों के मूल में आपसी रिश्तों के बीच मधुरता घोलने एवं सरसता लाने की भावना रहती है। भाई-बहन के बीच तकरार होना एक सामान्य-सी बात है, लेकिन रक्षा बंधन के दिन बहन द्वारा भाई के हाथ में बांधे जाने वाले रक्षा सूत्र में भाई के प्रति बहन के असीम स्नेह और बहन के प्रति भाई के कर्त्तव्यबोध को पिरोया गया है। (अदिति)