मोदी की यूक्रेन यात्रा अच्छी सम्भावनाओं की उम्मीद

पोलैंड की दो दिवसीय यात्रा के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुक्रवार को यूक्रेन की एक दिवसीय यात्रा के लिए पहुंच गए हैं। पिछले अढ़ाई वर्ष से रूस तथा यूक्रेन में भीषण युद्ध चल रहा है। रूस ने यूक्रेन के ज्यादा क्षेत्र पर कब्ज़ा किया हुआ है। फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तो यही उम्मीद की जा रही थी कि कुछ समय में ही यूक्रेन हथियार डाल देगा, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। युद्ध की विगत लम्बी अवधि में यदि बड़ी संख्या में रूसी सैनिक मारे गए हैं तो यूक्रेन का भी हर पक्ष से बहुत भारी नुक्सान हुआ है। इसके कई बड़े शहरों सहित अनेक बड़े क्षेत्र तबाह हो गये हैं। लाखों लोग विदेशों में शरणार्थी बन कर बैठे हैं। इसकी आर्थिकता लड़खड़ा गई है परन्तु यूक्रेन को नाटो संगठन में शामिल पश्चिमी यूरोपीय देशों की ओर से भारी मात्रा में हर तरह के हथियार मिल रहे हैं। अमरीका इस पक्ष से पूरी तरह उसके पीछे खड़ा है। यह बड़ा कारण है कि यूक्रेन ने अभी तक ऐसे विनाश का मंज़र सहन करके भी हथियार नहीं डाले। इसके राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की की, इनके सैनिकों की तथा लोगों की इस बात पर प्रशंसा करनी बनती है कि व्यापक स्तर पर अपना मानवीय तथा आर्थिक नुक्सान करा के तथा मूलभूत ढांचे के विनाश के बावजूद अभी तक यूक्रेन रूस के सामने डटा हुआ है।
यहीं बस नहीं, इस मास 6 अगस्त को उसने रूस की पश्चिमी सीमा पर हमला करके ज्यादातर क्षेत्र अपने कब्ज़े में ले लिए हैं। इस सारे समय के दौरान भारत इस मामले में तलवार की धार पर चलता रहा है। रूस से इसकी दशकों से परखी हुई मित्रता है। हर कठिन समय में पहले सोवियत यूनियन और अब रूस इसके साथ खड़ा रहा है। आज़ादी के बाद भारत के नव-निर्माण में भी रूस का बहुत बड़ा योगदान है। आज भी भारतीय सेना के पास रूस के 60 प्रतिशत हथियार हैं। दूसरी तरफ वर्ष 1991 में सोवियत यूनियन के टूटने के बाद यूक्रेन एक स्वतंत्र देश के तौर पर स्थापित हुए था। उसकी भारत के साथ भी मित्रता रही है तथा इन दोनों का आपस में व्यापक स्तर पर व्यापार भी चलता रहा है।
रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यह हमेशा दूसरे देशों की प्रभुसत्ता के पक्ष में रहा है। यही कारण है कि अपनी विदेश नीति में भारत सचेत रूप में इस मामले पर संतुलन बना कर चलने का यत्न करता रहा है। उसने पश्चिमी देशों तथा अमरीका के प्रभाव को दर-किनार करके इस पूरे समय के दौरान रूस के खिल़ाफ अपनी ज़ुबान नहीं खोली। संयुक्त राष्ट्र में रूस के विरुद्ध पारित किये जाते रहे प्रस्तावों में यह रूस के विरोध में खड़ा नहीं हुआ या ऐसे समय में वहां अनुपस्थित होता रहा है। उस समय भी जब अमरीका तथा पश्चिमी देशों ने रूस पर व्यापारिक प्रतिबन्ध और खास तौर पर तेल के संबंध में अंकुश लगाये थे, तो भी भारत से उसका निरन्तर व्यापारिक आदान-प्रदान चलता रहा तथा रूस से  व्यापक स्तर पर भारत तेल खरीद रहा है। रूस के साथ भारत की वार्षिक शिखर वार्ता भी निरन्तर जारी रही है। इसी सन्दर्भ में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जुलाई  के रूस दौरे को देखा जा सकता है, जिसे अमरीका तथा नाटो संधि से संबंधित पश्चिमी देशों ने बेहद नापसंद किया था।
ज़ेलेंस्की ने तो इस यात्रा को शांति यत्नों के लिए एक विनाशकारी आघात कहा था परन्तु अब प्रधानमंत्री मोदी की एक दिवसीय यूक्रेन यात्रा ने सभी को हैरान कर दिया है। 33 वर्ष पहले नये देश के रूप में अस्तित्व में आने के बाद भारत के किसी भी प्रधानमंत्री की, यूक्रेन की यह पहली यात्रा है। भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के संबंध में हमेशा ही यह कहा है कि इस मामले के समाधान के लिए बातचीत तथा कूटनीति की ज़रूरत है। दोनों देशों में चल रहे भीषण युद्ध तथा विनाश के दृश्यों के बीच भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोनों देशों के प्रमुखों से अपनी बातचीत जारी रखी हुई है। उनकी यूक्रेन यात्रा भी ऐसी कूटनीति का ही एक भाग कही जा सकती है, जिससे अच्छी सम्भावनाओं की उम्मीद की जा सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द