महत्वपूर्ण है मोदी की यूक्रेन यात्रा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूक्रेन की राजधानी कीव की महज 6 घंटों की यात्रा चाहे रूस तथा यूक्रेन में विगत अढ़ाई वर्ष से चलते आ रहे बेहद विनाशकारी युद्ध को बंद करवाने में सहायता न कर सके, परन्तु यह दोनों देशों में एक कड़ी ज़रूर बन सकती है। विदेश मंत्रालय ने भी यह कहा है कि चाहे भारत यह लड़ाई बंद करवाने के सामर्थ्य न हो परन्तु ये दोनों देशों के मध्य इस हालात में भी आपसी सन्देशों का आदान-प्रदान करने के लिए माध्यम ज़रूर बन सकता है। भारत के दोनों देशों के साथ लम्बे समय से अच्छे संबंध बने रहे हैं।
सोवियत यूनियन भारत के स्वतंत्र होने के बाद इसके साथ हर क्षेत्र में डट कर खड़ा होता रहा है तथा उस समय ज़रूरतमंद भारत की पूरी सहायता भी करता रहा है। भारत के मूलभूत ढांचे के निर्माण में सोवियत यूनियन का योगदान था। उस समय की ज़रूरत के अनुसार उसी ने ही भारत को अधिक से अधिक हथियारों की आपूर्ति करवाई थी। 1991 में सोवियत यूनियन टूट गया। उस समय यूक्रेन जो पहले सोवियत यूनियन का हिस्सा था, एक अलग देश बन गया, परन्तु भारत के रूस के साथ संबंध पहले जैसे ही गहन बने रहे। दर्जन भर नये बने देशों के साथ भी भारत की साझेदारी बनी रही। ऐसी स्थिति में यदि रूस एवं यूक्रेन युद्ध होता है तो भारत की हालत का इस दौरान अनुमान लगाया जा सकता है। चाहे अढ़ाई वर्ष के इस युद्ध के दौरान रूस चीन के और भी नज़दीक आया है। ऐसी उसकी बड़ी ज़रूरत भी कही जा सकती है, परन्तु इसी बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने भारत के साथ सुखद एवं गहन संबंध भी बनाये रखे हैं तथा इनका आपसी मेल-मिलाप भी लगातार जारी रहा है। दोनों देशों के प्रमुखों की विगत लम्बी अवधि से वार्षिक भेंट होती रही है। इस क्रम में पिछले मास प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा को देखा जा सकता है, परन्तु पैदा हुए हालात में यूक्रेन तथा अमरीका की ओर से इस संबंध में कड़ी टिप्पणियां करने की भी समझ आती है। भारत ने इस युद्ध में भी दोनों देशों के साथ संबंधों के पक्ष से अपना संतुलन बनाने का यत्न किया है। इसी भावना के साथ प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन की संक्षिप्त यात्रा को देखा जा सकता है।
इस यात्रा ने मरहम का काम ज़रूर किया है। राष्ट्रपति व्लादीमिर ज़ेलेंस्की ने यह कहा है कि भारत ने उसके देश की प्रभुसत्ता को स्वीकार किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी ऐसी भावनाएं प्रकट की हैं कि दोनों देशों में शांति एवं कूटनीति की ज़रूरत है। ऐसी कूटनीति में आगामी समय में भारत अपना योगदान डालने में सामर्थ्य हो सकता है। इसी कारण भारतीय प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा की विश्व भर में चर्चा हुई है। इसके साथ एक उम्मीद की किरण भी पैदा हुई है तथा यह भी कि निकट भविष्य में इस गम्भीर मामले के हल में भारत अपनी बनती सुखद भूमिका निभाने में सामर्थ्य हो सकेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द