श्रीजेश के बाद कौन होगा भारतीय हॉकी का नंबर 1 गोलकीपर ?

हाल के ओलंपिक मैचों में पीआर श्रीजेश ने ऐसे खेला जैसे फिर कभी सुबह होने की ही नहीं। पेरिस 2024 ओलंपिक उनके अंतर्राष्ट्रीय खेल करियर की अंतिम प्रतियोगिता थी, जिसमें इस भारतीय गोलकीपर ने अपनी ऊर्जा की अंतिम बूंद भी खर्च कर दी थी। उनके पास जो भी प्रतिभा थी, उसे अविश्वसनीय गोल-बचाव में लगा दी थी। श्रीजेश के इस अंतिम साहसिक प्रयास से भारत 52 वर्ष बाद हॉकी (पुरुष) के दो लगातार ओलंपिक पदक (कांस्य) हासिल कर सका। अब जब भारत कांस्य पदक के साथ श्रीजेश के 18 वर्ष लम्बे शानदार करियर का जश्न मना रहा है तो आगे देखने का भी समय आ गया है कि गोलकीपिंग जैसी महत्वपूर्ण पोजीशन पर कौन जिम्मा संभालेगा?
कृष्ण बहादुर पाठक ने पूर्व मुख्य कोच हरेंद्र सिंह के कार्यकाल में 2018 में डेब्यू किया था और वह तभी से श्रीजेश के डिप्टी रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के ग्राहम रीड 2019 में भारत के मुख्य कोच बने और उन्होंने हर क्वार्टर में गोलकीपर स्विच करने की रणनीति अपनायी ताकि जो सीख रहा है उसे भी पर्याप्त गेम टाइम व अनुभव मिल जाये ताकि जब आवश्यकता पड़े तो वह पूरी तरह से ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार रहे। वर्तमान मुख्य कोच क्रैग फुल्टन ने इस प्रथा को जारी रखा है। नतीजतन, पाठक, जो 125 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं, ने अनेक चुनौतीपूर्ण मैचों में परिपक्वता प्रदर्शित की है, जिनमें एशियन गेम्स व वर्ल्ड कप जैसी प्रतियोगिताएं भी शामिल हैं। इसके बावजूद लाख टके का प्रश्न यही है कि क्या 27 वर्षीय पाठक श्रीजेश का योग्य विकल्प बन सकेंगे? 
भारत के गोलकीपिंग सलाहकार डेनिस वान डे पोल का कहना है, ‘अब यह पाठक का समय है। वह पहले ही साबित कर चुके हैं कि वह श्रीजेश के स्तर के हो सकते हैं। 2023 विश्व कप के दौरान इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा था कि हम गोल में श्रीजेश को रखें या पाठक को क्योंकि दोनों ने बराबर के स्तर का परफॉरमेंस दिया। मुझे कोई चिंता नहीं है। गोल में भारत का स्तर गिरने नहीं जा रहा है। वह पहले जैसा ही रहेगा। अब जब पाठक को कोचों व टीम का 100 प्रतिशत विश्वास मिलेगा तो वह पहले से बेहतर प्रदर्शन भी कर सकते हैं। लेकिन यह बाद में ही मालूम हो सकेगा क्योंकि वह कभी भी नंबर 1 की पोजीशन में नहीं रहे हैं।’ पाठक टीम का नियमित हिस्सा हैं। पिछली ओलंपिक साइकिल की सभी महत्वपूर्ण प्रतियोगिताओं में उन्होंने हिस्सा लिया था। लेकिन अन्य प्रतियोगिताओं की तुलना में, जहां 18 सदस्यों का दल होता है, ओलंपिक में सिर्फ 16 खिलाड़ी ही जा सकते हैं। नतीजतन, पाठक दोनों टोक्यो व पेरिस में केवल स्टैंड बाई के रूप में ही जा सके। टीम के अन्य साथियों के विपरीत वह खाली हाथ लौटे क्योंकि वह पोडियम पर अपने साथियों को खड़ा देख तो सकते थे, लेकिन उसका हिस्सा नहीं बन सकते थे।  डेनिस के अनुसार, ‘ओलंपिक के बाद मैंने पाठक से लम्बी गुफ़्तगू की। यकीनन उनके लिए कठिन था कि वह दो ओलंपिक में गये और बिना पदक के लौटे, जबकि टीम पदक जीत रही थी। लेकिन वह जानते हैं कि अब उनका समय है। वह एकमात्र गोलकीपर हैं जिन्होंने श्रीजेश जैसे खिलाड़ी के साथ पिच पर 50-50 समय किया। पाठक के अतिरिक्त भारत में कोई अन्य गोलकीपर नहीं है जो श्रीजेश से उनके स्तर पर मुकाबला कर सके। यह पाठक के भविष्य के लिए वास्तव में अच्छा है।’ अब जब पाठक भारत के नंबर 1 गोली होंगे तो सवाल उठता है कि उनका डिप्टी कौन होगा? क्या टीम प्रबंधन मैच के हर क्वार्टर में गोली बदलता रहेगा या वह एक ही गोली पर निर्भर रहेगा, जैसा कि अधिकतर अन्य टीमें करती हैं? प्रोजेक्ट-टू-प्रोजेक्ट आधार पर भारतीय टीम के साथ कार्य करने वाले डेनिस का कहना है, ‘किस्मत से अनेक लड़के हैं जिन्होंने खुद को साबित किया है। सूरज करकेरा हैं जो टीम में हैं और हॉकी की प्रतियोगिताएं खेलते हैं। वह स्टेप-इन कर सकते हैं; क्योंकि वह राष्ट्रीय टीम के लिए कुछ गेम्स खेल भी चुके हैं। पवन मलिक भी प्रतिभाशाली युवा गोलकीपर हैं, जिनकी शैली एकदम अलग है।’मलिक श्रीजेश की तरह एथलेटिक हैं और मैच बचाने के लिए कुछ वाइल्ड मूव्स भी कर बैठते हैं, जबकि सूरज, पाठक की तरह हैं, नियंत्रित व रिलैक्स्ड। डेनिस बताते हैं, ‘अंडर-21 टीम से हमारे पास मोहित भी हैं जो टीम ज्वाइन करेंगे। यह चार गोली हैं जो आने वाले महीनों में ट्रेनिंग करेंगे। हम देखेंगे कि दूसरा स्पॉट कौन लेगा, जोकि उनके फॉर्म पर भी निर्भर करेगा। प्रतियोगिताएं आ रही हैं, इसलिए मैं काफी उत्सुक हूं।’ ओलंपिक खत्म हो गये हैं और श्रीजेश रिटायर हो गये हैं। पाठक और दीगर गोलकीपरों की पहली परीक्षा एशियन चैंपियंस ट्राफी में होगी, जोकि चीन की हुलुन्बुइर सिटी में 8 से 17 सितम्बर तक खेली जायेगी। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर