सुरों के सरताज आर.डी. बर्मन कैसे बने पंचम दा?

राहुल देव बर्मन की रणधीर कपूर व ऋषि कपूर से बहुत गहरी दोस्ती थी। उन्होंने इन दोनों भाइयों की फिल्मों में संगीत दिया, जबकि ऋषि कपूर पर फिल्माये गये अधिकतर आइकोनिक गीतों को संगीतबद्ध आर.डी. बर्मन ने ही किया था। इसके बावजूद उन्होंने इन दोनों भाइयों के लीजेंडरी पिता राज कपूर के लिए संगीत देने से साफ इंकार कर दिया था। हुआ यह कि रणधीर कपूर ने बर्मन को फिल्म ‘धरम करम’ में संगीत देने के लिए साइन किया था। इस फिल्म में एक गीत राज कपूर पर भी फिल्माया जाना था। राज कपूर संगीत के ज़बरदस्त पारखी थे और अपने पर फिल्माये जाने वाले गीत को पहले सुनते थे, पसंद आने पर ही उसे मंजूरी देते थे। बर्मन से जब कहा गया कि उन्हें एक गीत राज कपूर के लिए भी कंपोज़ करना है तो उन्होंने यह कहते हुए साफ इंकार कर दिया कि वह ‘सामान्य लोगों के लिए संगीत रचना करते हैं, क्रिएटिव लोगों के लिए नहीं’। 
दरअसल, बर्मन का एक अन्य ‘क्रिएटिव’ व्यक्ति गुरुदत्त के साथ काम करने का बहुत खराब अनुभव रहा था। वह गुरुदत्त को अनेक धुनें सुनाते, जिनमें से गुरुदत्त एक को पसंद करके मंजूरी दे देते, लेकिन कुछ दिन बाद उसे फिर बदलने के लिए कहते। बर्मन इस व्यवहार से कुंठित हो जाते। बर्मन ने सुन रखा था कि राज कपूर की आदत भी गुरुदत्त जैसी ही है। इसलिए उन्होंने उनके लिए संगीत रचना से इंकार कर दिया। बहरहाल, रणधीर कपूर की अनेक मिन्नतों के बाद बर्मन राज कपूर के लिए कंपोज़ करने के लिए तैयार हो गये। बर्मन ने राज कपूर को एक धुन सुनायी, जिसके लिए बोल उस समय तक लिखे नहीं गये थे। राज कपूर को धुन पसंद आयी और वो बोले, ‘इस पर गाना बनाओ, हिट रहेगा।’ इस तरह ‘एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल, जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल’ गाना तैयार हुआ जिसे मजरुह सुल्तानपुरी ने लिखा था और जो इतना पसंद किया गया कि आज तक सुना जाता है। 
शहंशाह-ए-मौसिकी (संगीत) के नाम से विख्यात बर्मन का जन्म कलकत्ता में 27 जून, 1939 को लीजेंडरी संगीत निर्देशक सचिन देव बर्मन और बंगाली की जानी मानी गीतकार मीरा देव बर्मन (उर्फ दासगुप्ता) के घर में हुआ था। शुरू में उनकी नानी ने उनका प्यार का नाम तुब्लू रखा, लेकिन बाद में उन्हें सब पंचम कहने लगे। उनका नाम पंचम कैसे पड़ा, इसके अनेक दिलचस्प किस्से हैं। एक कहानी यह है कि बचपन में वह जब भी रोते थे, तो ऐसा लगता था जैसे वह पांचवें सुर (पा) में रो रहे हों। दूसरी कहानी यह है कि वह पांच अलग-अलग सुरों में रोते थे, इसलिए उनका नाम पंचम पड़ा। एक अन्य कहानी यह भी है कि अशोक कुमार ने बालक राहुल को बार-बार ‘पा’ कहते हुए सुना और उन्होंने बच्चे का नाम पंचम रख दिया। कौन सी कहानी सही है या सभी फर्जी हैं, कहना कठिन है, लेकिन राहुल देव बर्मन को फिल्मोद्योग और उसके बाहर भी पंचम दा कहकर ही संबोधित करते थे।
कोलकाता के त्रिपाठी इंस्टिट्यूशन से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद पंचम मुंबई में आ गये और उन्होंने 17 वर्ष की आयु में अपना पहला गाना ‘ए मेरी टोपी पलट के आ’ कंपोज़ किया, जिसे उनके पिता एसडी बर्मन ने फिल्म ‘पंटूश’ (1956) में इस्तेमाल किया। ‘प्यासा’ (1957) के गीत ‘सर जो तेरा चकराये या दिल डूबा जाये’ की धुन भी पंचम ने ही बनायी थी। हालांकि पंचम के पिता बड़े व स्थापित संगीतकार थे, लेकिन पंचम ने संगीत की तालीम उस्ताद अली अकबर खान (सरोद) और समता प्रसाद (तबला) से ली और वह सलिल चौधरी को अपना गुरु मानते थे। फिल्म संगीत देने के लिए पंचम अपने पिता के सहायक बने और अक्सर उनके ऑर्केस्ट्रा में हारमोनिका बजाया करते थे। पंचम ने स्वतंत्र संगीत निर्देशक के तौर पर 1959 में ‘राज़’ फिल्म साइन की थी, उसके दो गाने उन्होंने कंपोज़ भी किये, जिन्हें आशा भोंसले व शमशाद बेगम ने गाया था, लेकिन वो फिल्म पूरी न हो सकी और डिब्बे में बंद हो गई। इसी फिल्म में पंचम को गुरु दत्त को बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया था। पंचम की पहली रिलीज़ फिल्म महमूद की ‘छोटा नवाब’(1961) थी। फिल्म के लिए महमूद एस.डी. बर्मन को साइन करने के लिए गये थे, लेकिन उनके पास समय नहीं था। वहीं महमूद ने पंचम को तबला बजाते हुए देखा और उन्हें ही ‘छोटा नवाब’ के लिए साइन कर लिया। बाद में महमूद और पंचम की गहरी दोस्ती हो गई और महमूद ने ‘भूत बंगला’ (1965) में उनसे एक छोटा-सा रोल भी कराया था। एक्टिंग में तो पंचम चल न सके, लेकिन उसके बाद संगीत के क्षेत्र में उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मात्र 54 वर्ष की आयु में 321 फिल्मों में संगीत दिया और स्वयं 30 से अधिक गाने भी गाये, जिनमें ‘शोले’ (1975) का ‘महबूबा महबूबा’ भी शामिल है। पंचम का 1994 में 4 जनवरी को मुंबई में निधन हो गया। 
रीता पटेल पंचम की फैन थीं। उन्होंने अपने दोस्तों से शर्त लगायी थी कि उन्हें पंचम से फिल्म-डेट मिलेगी। दोनों की मुलाकात दार्जलिंग में हुई, दोस्ती हुई और फिर 1966 में शादी। लेकिन 1971 में तलाक भी हो गया। तलाक के बाद पंचम एक होटल में थे, जहां उन्होंने ‘मुसाफिर हूं यारो’ (परिचय, 1972) गीत कंपोज़ किया था। पंचम ने दूसरी शादी आशा भोंसले से 1980 में की, लेकिन पंचम जब अपने जीवन के अंतिम वर्षों में आर्थिक कठिनाई में आये तो दोनों साथ नहीं रहते थे। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर