प्रेरक प्रसंग - विधि का विधान

विधि का विधान अटल है। जो घटना घटनी है, वह यथासमय और यथास्थान पर घट कर रहती है, अर्थात ‘टरनी टारे नहीं टरे’। मृत्यु भी एक ऐसा ही सत्य है। सांसारिक मोह माया ऐसा जाल है जिसमें फंसा मानव इस सच्चाई को भूल जाता है और अपने प्रियजन की मृत्यु पर गहरे शोक में डूब जाता है, रोता और तड़पता है। ऐसा ही एक प्रसंग है-
राजा अजातशत्रु अपने पुत्र की असामयिक मृत्यु के गहरे शोक में डूबे हुए थे। शोकाकुल हृदय बार-बार कुछ सोचता और वे जोर से रोने लगते थे। उनके समीप ही मुनि बैठे हुए थे। उन्होंने राजा को इस तरह बिलखते हुए देखकर समझाते हुए कहा - ‘राजन’! जन्म और मरण कर्मों के अनुसार एक निर्धारित समय पर होता है। यही विधि का विधान है। शरीर में उत्पन्न हुए रोग को दूर करने के लिये उसका उपचार किया जाता है, परन्तु यदि उपचार करने पर भी किसी के प्राण न बच सकें, तो फिर मृत्यु को अटल मान कर संतोष करना चाहिये। इसी प्रसंग में मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं’- एक दिन गरुड़ उड़ते हुए शभीक आरण्यक पर से होकर जा रहे थे। उड़ते हुए उनकी दृष्टि शिला पर बैठे हुए एक कपोत पर पड़ी। वह डर के मारे थर-थर कांप रहा था। देखकर गरुड़ नीचे उतरे। उसकी दयनीय दशा देखकर उनका हृदय करुणा से भर गया। उन्होंने कपोत से पूछा- ‘तुम इस तरह क्यों कांप रहे हो? तुम्हें कोई कष्ट है या फिर किसी का भय है?’
कपोत ने नतमस्तक होकर कहा- ‘देव, कुछ समय पहले इधर से होकर यमराज गये हैं। जाते समय उन्होंने मेरी ओर देखा और देखकर हंसने लगे। मैंने उनसे अकारण ही हंसने का कारण पूछा तो वे बोले - ‘बड़े आनन्द से इधर उधर फुदक-फुदक कर इठला रहा है क्योंकि तुझे इस बात का पता नहीं है कि कल प्रात: काल एक काला नाग तुझे उदरस्थ कर जायेगा। तेरे जीवन का एक दिन भी शेष नहीं है।’ कहकर वे चले गये। उसी क्षण से मेरे हृदय में मृत्युभय समा गया है। यही कारण है कि मैं सोच सोच कर कांप रहा हूं। गरुड़ को उस पर दया आ गई। वे यमराज की चुनौती को स्वीकार करते हुए कपोत को अपने पंजों में दबाकर गंधमादन पर्वत की ओर लेकर चल पड़े। हजारों मील की उड़ान भरने के पश्चात् गरुड़ ने कपोत को एक सरोवर के किनारे बैठाते हुए कहा-‘अब तुम निश्चित होकर जीवन व्यतीत करो, यहां मृत्यु नहीं आयेगी।’
कपोत को वहां छोड़कर गरुड़ यमलोक पहुंचे। यमराज अपने आसन पर विराजमान थे। गरुड़ यमराज से उपहास भरे स्वर में बोले-मैंने आपके विधान को पलट दिया है यमराज। कपोत को, जिसे आपने उसकी मृत्यु की सूचना दी थी, उसे मैं उसके निवास स्थान से हजारों मील दूर सुरक्षित स्थान पर छोड़ आया हूं। सर्प वहां पर हैं नहीं, उदरस्थ कौन करेगा?’ यमराज ने गरुड़ को सत्कारपूर्वक बिठाया और चित्रागुप्त से कपोत संबंधी सूचना प्रस्तुत करने को कहा। चित्रागुप्त ने लाकर जन्म-मरण लेखा पुस्तक खोली और अवलोकन करते हुए बताया-‘देव, उस कपोत को अपने घर से हजारों मील दूर गंधमादन पर्वत के सरोवर तट पर आज प्रात: काल सर्प के द्वारा उदरस्थ किये जाने का विधान लिखा था, सो वह यथा समय पूरा हो गया।’ चित्रागुप्त की बात सुनकर गरुड़ आश्चर्यचकित रह गये। यमराज ने उन्हें आश्चर्य में डूबे हुए देखकर कहा - ‘काल ने आपकी अनुकम्पा बन कर कपोत को उस स्थान पर पहुंचा दिया जहां उसकी मृत्यु निर्धारित थी। घोंसले में ही बैठे रहने से उसका भाग्य विधान सही न बैठता। आपकी दया काल का निमित्त कारण बन गई।’राजा को इस प्रसंग से बोध प्राप्त हुआ। (उर्वशी)