परम्परागत जलस्रोत के रूप में दिल्ली में दर्शनीय बावलियां

एक पुरानी कहावत है- रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून अपने देश भारत में जल उपलब्ध करने और उसे संजोकर रखने के लिए कई प्रकार के उपाय किए जाते रहे हैं। परम्परागत रूप में तालाब ओर कूप के अलावा कई इलाकों में इस तरह की बावलियां देखने को मिलती हैं।
पुरानी दिल्ली का एक मशूहर बाज़ार अब भी खारी बावली नाम से मशहूर है। मुगलों के समय में फतेहपुरी मस्जिद के नज़दीक बनाई गई खारे पानी की बावली अब टूट गई है और उपयोग में नहीं आती। नई दिल्ली के इलाके में अब भी कई बावलियां हैं जिनमें काफी पानी भरा रहता है। इनमें सबसे मशहूर बावली है कनॉट प्लेस के नजदीक महाराजा अग्रसेन की बावली जो करीब सौ मीटर लम्बी और तीस मीटर चौड़ी है। यह बावली पत्थर की चट्टानों से घेर कर बनाई गई है। वर्तमान में कस्तूरबा गांधी मार्ग के निकट हेली रोड के साथ अतुल ग्रोवर लेन पर यह पुरानी बावली स्थित है।
इतिहासकारों की मान्यता है कि इसको सिकंदर लोदी के समय में बनाया गया था। बाद में इसकी मुरम्मत कराई गई और तब महाराजा अग्रसेन की बावली के नाम से लोग इसे पुकारने लगे। इसके पानी का भंडार सूखता नहीं है। दस मीटर की गहराई तक जाने के लिए इसमें चालीस सीढ़ियां बनी हैं जिनसे पानी की सतह तक पहुंचा जाता है।
औलिया निजामुद्दीन की बावली : राजधानी शहर दिल्ली के पर्वी इलाके में स्थित औलिया निजामुद्दीन के मकबरे के पास सबसे मशहूर बावली बनी है। 13वीं शताब्दी में बनी इस बावली के साथ एक मनोरंजक कथा जुड़ी है। बादशाह गयासुद्दीन तुगलक एक किला बनवा रहा था, (तुगलकाबाद में)। वहां सैंकड़ों मजदूर काम कर रहे थे। उसी समय में औलिया एक गहरी बावली की खुदवा करवा रहे थे। जो मजदूर दिन में बादशाह का काम करते थे, वे ही रात में जागकर औलिया की बावली की भी खुदाई का काम करते थे।
एक दिन देखा गया कि बादशाह का काम करने वाले मजदूर थक कर सो रहे हैं और काम रूका पड़ा है। कारण पूछने पर पता चला ये लोग रात में फकीर निजामुद्दीन औलिया की बावली पर काम किया करते हैं। बस इसी बात पर बादशाह को गुस्सा आया और रात में चिराग जलाने के लिए तेल देने पर पाबंदी लगा दी लेकिन औलिया ने बड़ा चमत्कार किया। उसने दीपक में तेल की जगह बावली का पानी डालने को कह दिया और चिराग जलता रहा और बावली बनाने का काम पूरा हुआ। औलिया की इस करामात की वजह से आज भी उस स्थान को चिराग दिल्ली कहते हैं।
फकीर की यह बावली 1321 ईसवी में बन कर तैयार हो गई। यह बावली 180 फीट लंबी तथा 60 फीट चौड़ी है। ऊपर में दक्षिण और पूर्व में मेहराबदार दलान बने हुए हैं। बावली में नीचे 20 से 25 फीट तक साफपानी मौजूद रहता है। वहां तक पहुंचने के लिए पत्थर की 40 सीढ़ियां बनी हुई हैं। औलिया के दरगाह पर पहुंचने वाले लोग इस करामाती जल को छूकर प्रसन्न होते हैं। तभी इसे चश्मा दिलखुश कहते हैं। इसी करामाती बावली के कारण राजधानी नई दिल्ली के दक्षिण भाग में चिराग दिल्ली नाम की कालोनी बसी है। महानगर दिल्ली में एक नहीं, अनेक बावलियां समय-समय पर बनाई गई। इनमें से कई तो काल के थपेड़ों से टूट-फूट कर समाप्त हो गई किन्तु कई अब भी मौजूद हैं जिनमें पीरागढ़ी में शिव मंदिर की बावली तथा बसती महरौली में शम्शी तालाब की बावली देखने के काबिल हैं जिनमें हर समय काफी पानी छलकता रहता है। पानी के परंपरागत स्रोत के रूप में ये बावलियां अब हमारी दर्शनीय धरोधर हैं। (उर्वशी)