मुद्रा-स्फीति पर रिज़र्व बैंक की बढ़ती जा रही दुविधा

अमरीकी फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोमपॉवेल ने जैक्सनहोल, व्योमिंग से स्पष्ट संदेश दिया है कि अमरीकी केंद्रीय बैंक दर उलट चक्र में प्रवेश करने के लिए पूरी तरह तैयार है। फेडरल रिजर्व आखिरकार कम नीतिगत दरों की व्यवस्था की शुरुआत करेगा। वित्तीय बाज़ारों ने इसे तुरंत उठाया और हाल के दिनों में गिरावट के बाद अमरीकी शेयर बाज़ारों में एक बार फिर उछाल आया है। एक बार फेडरल रिजर्व अपनी नीति उलटने की पहल करता है, तो उम्मीद की जा सकती है कि वित्तीय बाज़ार आगे समायोजन करना शुरू कर देंगे। जब अमरीकी फेड बोलता है, तो दुनिया के अन्य केंद्रीय बैंकरों को सुनना पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बाज़ार गतिशीलता के एक नये चरण में प्रवेश करेंगे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय रिजर्व बैंक अपना एंटीना उठायेगा और भारतीय बाज़ारों में होने वाले बदलावों पर नज़र रखेगा।
यह उम्मीद भी की जा सकती है कि वैश्विक बाज़ारों के साथ तालमेल बिठाते हुए भारतीय शेयर भी बढ़ेंगे, जैसा कि व्यापक स्पेक्ट्रम ब्याज दरों में कमी आने पर होता है। आने वाले दिनों में शेयर बाज़ारों में और उछाल आना चाहिए। इसके साथ ही, बॉन्ड बाज़ार भी नये स्तरों की तलाश करेंगे। इस उछाल का लाभ उठाने के लिए विदेशी बाज़ारों से धन प्रवाह की भी उम्मीद की जा सकती है। इस पृष्ठभूमि में रिजर्व बैंक को अपने व्यापक नीति उपायों को कैसे फिर से निर्धारित करना चाहिए? जाहिर है मार्गदर्शक कारक भारत में समग्र मूल्य स्थिरता के साथ-साथ भारतीय अर्थ-व्यवस्था की विकास क्षमता और प्रदर्शन होना चाहिए। 6 और 8 अगस्त के बीच रिजर्व बैंक ने अपनी पिछली मौद्रिक नीति समिति की समीक्षा बैठकों में नीति मापदंडों को अपरिवर्तित रखने का फैसला किया गया है। समिति की कार्यवाही की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार नीति दर को अपरिवर्तित छोड़ दिया गया था, हालांकि समिति के दो सदस्यों ने इस निर्णय के खिलाफ जोरदार तर्क दिया।
आरबीआई के लिए जिन कारकों पर विचार करना वांछनीय हैं, वे हैं मुद्रास्फीति के रुझान और मूल्य प्रवृत्तियों में वृद्धि की संभावना। पिछले कुछ महीनों में कीमतों में नरम रुझान दिखायी दिये हैं। केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम मासिक आर्थिक रिपोर्ट में इस सप्ताह काफी आरामदायक तस्वीर दिखायी गयी। कुल मिलाकर चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों अप्रैल से जुलाई 2024 में खुदरा मुद्रास्फीति धीमी होकर 4.6 प्रतिशत हो गयी, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह 5.3 प्रतिशत थी। विशेष रूप से महीने-दर-महीने जुलाई में कीमतों में तेज गिरावट देखी गयी।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जून 2024 में 5.1 प्रतिशत से घटकर जुलाई 2024 में 3.5 प्रतिशत हो गयी, जो सितंबर 2019 के बाद सबसे कम है। वित्त मंत्रालय ने इसका श्रेय खाद्य मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय गिरावट को दिया। खाद्य मुद्रास्फीति जून 2024 में 9.4 प्रतिशत से घटकर जुलाई 2024 में 5.4 प्रतिशत हो गयी। खाद्य मुद्रास्फीति में देखी गयी पर्याप्त गिरावट को मुख्य रूप से जून 2024 में 29.3 प्रतिशत से जुलाई 2024 में 6.8 प्रतिशत तक सब्जी मुद्रास्फीति में गिरावट से मदद मिली। हालांकि, यह देश भर के बाज़ारों में कीमतों के स्तर, खासकर सब्जियों की कीमतों के बारे में वास्तविक अनुभवों के विपरीत है। अब सवाल यह है कि क्या कीमतों में यह नरमी क्षणिक है या फिर लंबे समय तक चलने वाले रुझान का संकेत है। अगर यह अचानक मासिक गिरावट अल्पावधि में उलट जाती है, तो आरबीआई को अपने मुद्रास्फीति विरोधी रुख से पीछे नहीं हटना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है और कीमतें निचले स्तरों की ओर बढ़ती हैं, तो आरबीआई के पास अपनी नीतिगत दरों को फिर से निर्धारित करने की गुंजाइश है। अभी तक यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि आने वाले महीनों में कीमतों का रुझान कैसा रहेगा।इस तरह के किसी भी आकलन में दो बातें महत्वपूर्ण हैं। पहला, ऐतिहासिक रुझान। आम तौर पर देखा गया है कि खाद्य कीमतें, खास तौर पर दो प्रमुख अनाज और फलों और सब्जियों की कीमतें गर्मियों के महीनों से लेकर मानसून अवधि तक बढ़ती हैं। फिर अक्तूबर से खरीफ की कटाई के बाद के मौसम में इनमें गिरावट आती है। अनुभव के आधार पर शायद हम कीमतों में उछाल से उबर चुके हैं और अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव को छोड़कर आने वाले महीनों में रुझान और भी सहज होते जायेंगे। 
दूसरा अनुकूल कारक यह है कि मानसून अच्छी तरह से आगे बढ़ रहा है और पूर्वानुमान है कि इस वर्ष यह सामान्य स्तर पर रहेगा। इसलिए इस मौसम में खराब मानसून और खाद्य उत्पादन पर संभावित प्रभाव की आशंकाओं को दरकिनार किया जा सकता है। मूल्य स्थिति विशेष रूप से खाद्य मुद्रास्फीति अभी स्थिर रह सकती है। वित्त मंत्रालय ने इसे इस प्रकार संक्षेप में प्रस्तुत किया- ‘मध्यम कोर मुद्रास्फीति और मानसून में सकारात्मक प्रगति के साथ, हेडलाइन मुद्रास्फीति का दृष्टिकोण सकारात्मक है। सामान्य मानसून को मानते हुए, रिजर्व बैंक द्वारा 2024-25 के लिए मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में मुद्रास्फीति 4.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।’
 यदि आप उदार नीति अपनाते हैं तो आप मुद्रास्फीति की आग को भड़काते हैं, लेकिन यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप विकास को पूरी गति से आगे बढ़ाने का अवसर खो देते हैं। (संवाद)

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