मोदी पर नहीं लागू होगी 75 वर्ष की आयु सीमा

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी पहली बार नागपुर स्थित आरएसएस के मुख्यालय केशव कुंज गए और वहां करीब चार घंटे रहे। इस दौरान उन्होंने कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और संघ के शीर्ष पदाधिकारियों से मुलाकात भी की। इन मुलाकातों के दौरान क्या बातचीत हुई, इस बारे में तो कोई खबर नहीं है, लेकिन मोदी के दौरे के वक्त संघ मुख्यालय में मौजूद रहे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस का जो बयान आया है, उससे साफ  हो गया है कि मोदी पर 75 साल की आयु सीमा लागू नहीं होगी और वह प्रधानमंत्री बने रहेंगे। फड़णवीस ने शिव सेना (उद्धव ठाकरे) के सांसद संजय राउत की बात का जवाब देते हुए कहा कि मोदी 2029 में भी प्रधानमंत्री बनेंगे। उनका यह बयान संजय राउत के बयान की प्रतिक्रिया ही नहीं है, बल्कि भाजपा की आगे की राजनीति की दिशा बताता है। उन्होंने मोदी को भाजपा का पिता कहा और इस बात पर ज़ोर दिया कि पिता के रहते उत्तराधिकारी की चर्चा नहीं होती है। सो, फड़णवीस के हिसाब से मोदी प्रधानमंत्री बने रहेंगे। गौरतलब है कि मोदी इस साल 17 सितम्बर को 75 साल के हो रहे हैं। यह पहले से लग रहा था कि जिस 75 साल की आयु सीमा के आधार पर भाजपा के कई पुराने नेताओं को मोदी और अमित शाह ने घर बैठाया है, वह आयु सीमा मोदी पर लागू नहीं होगी। अब फड़णवीस की बातों ने इस पर मुहर लगा दी है। 
आठवें वेतन आयोग का क्या हुआ?
केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में बढ़ोतरी पर विचार के लिए केंद्र सरकार ने 16 जनवरी को आठवें वेतन आयोग की घोषणा की थी। उस समय दिल्ली में विधानसभा चुनाव चल रहे थे। गौरतलब है कि देश के दूसरे किसी भी शहर, राज्य या महानगर के मुकाबले ज्यादा केंद्रीय कर्मचारी दिल्ली में रहते है और उनका वोट बहुत मायने रखता है। सो, बिल्कुल चुनाव के बीच चुनाव आयोग की मंजूरी लिए बगैर ही वेतन आयोग के गठन की घोषणा कर दी गई। उस घोषणा के डेढ़ महीने बीत जाने के बाद भी अभी तक आयोग का गठन नहीं हुआ है और न टर्म्स ऑफ  रैफरेंसेज को लेकर कोई चर्चा हुई है। इससे ज़ाहिर हो रहा है कि जनवरी में आनन फानन में घोषणा चुनावी लाभ के लिए हुई थी। जानकार सूत्रों का कहना है कि अगले महीने तक सरकार टर्म्स ऑफ रैफरेंसेज को लेकर चर्चा कर आयोग का गठन करेगी। आठवें वेतन आयोग के गठन के बाद इसको सभी संबंधित पक्षों से विचार-विमर्श के बाद अपनी सिफारिशें देने में 15 से 18 महीने का समय लगेगा। इसलिए अगले साल के अंत तक भी इसकी सिफारिशें शायद ही आ पाएं। इसका कार्यकाल 2027 तक चलेगा, जब साल के शुरू में उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के और साल के अंत में गुजरात व हिमाचल प्रदेश के चुनाव हैं। सरकार इसे जनवरी 2026 से ही लागू करेगी लेकिन सिफारिशें 2027 में आएंगी और लागू होने के बाद कर्मचारियों को एक साल या उससे कुछ ज्यादा अवधि का बकाया दिया जाएगा।
अब योगी पर भी फिल्म
उत्तर प्रदेश में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीवन पर आधारित फिल्म रिलीज़ होने जा रही है। पिछले कुछ समय से नेताओं के जीवन पर फिल्म बनाने का चलन बहुत बढ़ा है लेकिन हकीकत यह है कि किसी भी नेता के जीवन पर बनी फिल्म सफल नहीं हुई है। इसका कारण यह है कि ऐसी सारी फिल्में प्रोपेगेंडा फिल्म बन कर रह गईं। जैसे पिछले दिनों अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन पर ‘मैं अटल हूं’ फिल्म रिलीज़ हुई थी, लेकिन पिट गई। इंदिरा गांधी पर बनी फिल्म ‘इमरजेंसी’ का भी यही हश्र हुआ। उससे पहले मनमोहन सिंह पर बनी ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ भी डिजास्टर साबित हुई थी। ले देकर जयललिता पर बनी ‘थलाइवा’ ने थोड़ा अच्छा बिज़नेस किया था। बाल ठाकरे पर बनी फिल्म ‘ठाकरे’ भी नहीं चली थी। अब योगी आदित्यनाथ पर फिल्म आ रही है। माना जा रहा है कि यह भी प्रोपेगेंडा फिल्म है। बड़े पर्दे के लिए बन रही इस फिल्म ‘अजेय : द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ अ योगी’ का पहला लुक जारी हो गया है। ज़ाहिर है फिल्म उनका महिमामंडन करेगी, ताकि उत्तर प्रदेश के चुनाव में उसका फायदा मिले। फिल्म की सफलता या विफलता की बात अभी नहीं की जा सकती, लेकिन इतना ज़रूर है कि चुनाव से ठीक पहले रिलीज़ करने का एक टोटका हो सकता है। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी पर बनी फिल्म ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ अप्रैल 2019 में रिलीज़ हुई थी। पता नहीं उसका कितना फायदा हुआ, लेकिन मोदी को बड़ी जीत मिली थी। क्या पता योगी को भी यह टोटका काम आ जाए।
भूपेश बघेल पर गिरफ्तारी की तलवार
सीबीआई ने महादेव ऐप घोटाले में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव भूपेश बघेल को आरोपी बनाया है। उनका नाम एफआईआर में डाला गया है। इससे पहले सीबीआई ने उनके यहां और साथ-साथ अनेक कारोबारियों और आईएएस व राज्य सेवा के अधिकारियों के यहां भी छापा मारा। उससे पहले प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने भी उनके और उनके करीबियों के यहां छापा मारा। ईडी ने उनके घर से 30 लाख से ज्यादा रुपये ज़ब्त किए। हालांकि बघेल ने कहा कि यह रुपये खेती की आय के हैं और घर की महिलाओं के हैं। अब सवाल है कि आगे क्या होगा? क्या सीबीआई और ईडी उनको गिरफ्तार कर सकते हैं? सारा घटनाक्रम इस दिशा में बढ़ रहा है कि भूपेश बघेल की गिरफ्तारी हो। चमत्कार ही होगा अगर वह गिरफ्तार नहीं होते हैं। तभी सवाल है कि क्या भाजपा और केंद्र सरकार कांग्रेस के साथ यह नया मोर्चा खोलना चाहती है? ध्यान रहे इससे पहले प्रादेशिक पार्टियों के नेता पकड़े जा रहे थे। हेमंत सोरेन, लालू प्रसाद का परिवार, अरविंद केजरीवाल आदि केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर थे। गिरफ्तारी भी इन्हीं लोगों की हुई। कांग्रेस के कुछ केंद्रीय नेता ज़रूर पकड़े गए, लेकिन उनका एक बैकग्राउंड था। बघेल को कांग्रेस ने पिछड़ी जाति का चेहरा बनाया है। उनकी गिरफ्तारी से राजनीति में ज्यादा हलचल होगी। यह भी ध्यान रखने की बात है कि कांग्रेस ने उनको जब से महासचिव और पंजाब का प्रभारी बनाया है, तभी से उनके खिलाफ  कार्रवाई तेज़ हुई है।
एक नई मिसाल
विपक्षी पार्टियों के शासन वाले राज्यों में सरकारों के साथ टकराव के कारण राजभवन नए सत्ता केंद्र के तौर पर उभरे हैं। उप राष्ट्रपति बनने से पहले जगदीप धनखड़ और उसके बाद आरिफ मोहम्मद खान, आर.एन. रवि आदि ने राज्य सरकारों से कई मसलों पर टकराव बनाया और कई मामले सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचे। अब पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया एक नई मिसाल बना रहे हैं। वह तीन अप्रैल से छह दिन की पद-यात्रा पर निकले हैं। उनकी यह पद-यात्रा पंजाब के युवाओं में बढ़ रही नशे की लत और इसके कारोबार के खिलाफ  है। गौरतलब है कि पंजाब में नशे के कारोबार को लेकर पिछले कई सालों से चिंता जताई जा रही है। जिस समय राज्य में अकाली दल और भाजपा की संयुक्त सरकार थी, उस समय कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कह दिया था कि पंजाब के 70 फीसदी युवा नशे के शिकार हैं, तो अकाली दल और भाजपा दोनों ने उन पर राज्य को बदनाम करने का आरोप लगाया था, लेकिन राहुल ने जो कहा था वह पंजाब की सचाई थी। भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी सरकार ने नशे का कारोबार खत्म करने का संकल्प जताया था, लेकिन नशे का जाल फैलता ही जा रहा है। इसीलिए राज्यपाल की पद-यात्रा एक राजनीतिक पैंतरा है, जिससे आम आदमी पार्टी की सरकार कठघरे में खड़ी होगी। गौरतलब है कि नशे से मुक्ति के नाम पर ही कट्टरपंथी अमृतपाल ने ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन को आगे बढ़ाया है और अब राजनीतिक दल भी बना लिया है।

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