चीन-अमरीका व्यापार युद्ध का वैश्विक व्यापार पर पड़ेगा विपरीत प्रभाव

डोनल्ड ट्रम्प द्वारा चीनी सामान पर लगाए गए टैरिफ का जवाब पत्थर से देते हुए उसने अमरीकी सामान पर 34 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ  लगा दिया है। प्रभावी दर की अगर फरवरी व मार्च से तुलना की जाये तो वह बहुत अधिक है। ऐसा प्रतीत होता है कि विश्व का सबसे बड़ा खरीदार और सबसे बड़ा विक्रेता (जिनकी मिलाकर ग्लोबल जीडीपी 40 प्रतिशत से अधिक है) एक-दूसरे के साथ व्यापार करने के इच्छुक नहीं हैं। यह भारत सहित शेष संसार के लिए अच्छी खबर नहीं है, क्योंकि ग्लोबल सप्लाई चेन इन दोनों के इर्दगिर्द ही घूमती है। हालांकि तुलनात्मक दृष्टि से ट्रम्प टैरिफ की मार (26 प्रतिशत) भारत पर कम पड़ी है। इससे निर्यात आय में छह माह में 8-10 बिलियन डॉलर का नुकसान होगा, लेकिन चीन की सख्त जवाबी कार्यवाही ने अनिश्चितता को अलग ही स्तर पर पहुंचा दिया है। इस समय निवेशक डरे हुए हैं। निवेशक बैंक गोल्डमैन सैक्स का अनुमान अमरीका में 35 प्रतिशत मंदी का है और उसके बड़े प्रतिद्वंदी जे.पी. मॉर्गन की भविष्यवाणी है कि इस साल वैश्विक मंदी 60 प्रतिशत तक हो सकती है। बहरहाल, अगर ग्लोबल मंदी होती है तो यह भारत के लिए बहुत ही बुरे समय पर आयेगी। 
पिछली मंदी 2008-09 में आयी थी और वह भी पांच वर्ष के मज़बूत विकास के बाद। इस समय हम धीमे पड़ते विकास के बीच में हैं। इसलिए सरकार को तुरंत कुछ करना होगा। ट्रम्प को चीन का तुल्यभार चाहिए। एआई और सेमीकंडक्टर में हमारी महारत नहीं है, लेकिन हमारे पास सस्ते श्रम की भरमार है, लेकिन प्रतिस्पर्धा की तुलना में हमारा औद्योगिक एस्टेट बहुत छोटा है। निर्माण हब बनने के लिए हमें चंद औद्योगिक राज्यों पर ही नहीं पूरे देश पर ध्यान केंद्रित करना होगा। अमरीका के साथ भारत का व्यापार धीर-धीरे बढ़ रहा है, लेकिन हमें विविधता लाने की आवश्यकता है। इसका अर्थ है कि अन्य देशों व ब्लॉक्स से व्यापार समझौते किये जाएं। चीन से भारत का सीमा विवाद अवश्य है, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वह निर्माणरत सुपरपॉवर है और इसलिए उससे संबंध बेहतर करने की ज़रुरत है, विशेषकर इस कारण से कि ट्रम्प का ‘आज़ादी दिवस’ ग्लोबल बाज़ारों के लिए ‘प्रलय दिवस’ बन गया है। स्टॉक्स गोता खा रहे हैं।  बड़ी कम्पनियां वैल्यू में सैकड़ों बिलियन गंवा चुकी हैं। विश्व नेता जवाबी कार्यवाही और समझौते के बीच झूल रहे हैं।
लेकिन ट्रम्प के कट्टरपंथी समर्थक जो अब ‘मागा वामपंथी’ से प्रतीत होने लगे हैं, को लगता है कि सभी आयात पर भारी टैरिफ  लगाना हिसाब के दिन जैसा है कि वाल स्ट्रीट मुंह छुपा रही है और श्रमजीवी वर्ग को अपनी आवाज़ मिल गई है। उनका सवाल है कि अगर टैरिफ  इतना ही खराब है तो उसका प्रयोग अन्य देश अपने श्रमिकों व किसानों की सुरक्षा के लिए कैसे कर रहे हैं? इसका कोई सरल उत्तर नहीं है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस समय अमरीका व चीन के बीच जो व्यापार युद्ध चल रहा है, उसमें अन्य देश भी जल्द शामिल हो जायेंगे। इससे दुनिया भर में मंदी, महंगाई व बेरोज़गारी देखने को मिलेगी। इन दोनों देशों के बीच अधिकारिक तौर पर व्यापार युद्ध आरंभ हो गया है, लेकिन इस युद्ध का नुकसान इन दोनों देशों तक सीमित नहीं रहने वाला है। अन्य देश भी इससे प्रभावित होंगे। अनुमान यह है कि इस युद्ध में यूरोपीय संघ, जापान व दक्षिण कोरिया भी शामिल होंगे। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की भविष्यवाणी है कि अमरीका द्वारा शुरू किए गए युद्ध के कारण विश्व व्यापार सिकुड़ जायेगा और जो सामान्य तौर पर उसका 3 प्रतिशत से विकास हो रहा था वह नहीं होगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ ) का कहना है कि विश्व व्यापार धीमा पड़ जायेगा।
अमरीका व चीन के बीच जो टैरिफ  टकराव चल रहा है उसका तीसरी दुनिया के देशों पर अधिक गहरा प्रभाव पड़ेगा। बांग्लादेश की ही मिसाल लीजिये, जिस पर 37 प्रतिशत ड्यूटी लगायी गई है। यह भारतीय निर्यात पर लगायी गई ड्यूटी से 11 प्रतिशत अधिक है। ट्रम्प टैरिफ  से अचानक अमरीकी बाज़ारों में बांग्लादेशी गारमेंट्स की तुलना में भारतीय गारमेंट्स अधिक सस्ते हो गये हैं। अर्थशास्त्रियों ने जो चार्ट जारी किया है, उससे मालूम होता है कि एशिया में ट्रम्प टैरिफ  का सबसे अधिक प्रभाव वियतनाम पर पड़ेगा, भारत व चीन से भी ज्यादा। बहरहाल, जब आर्थिक विकास धीमा पड़ जाता है तो मांग कम हो जाती है। इससे निर्यात बाज़ार सभी के लिए सिकुड़ जायेगा। इस व्यापार युद्ध का अमरीकी अर्थव्यवस्था पर जो नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, उसका असर करंसी व ब्याज दरों पर भी पड़गा। किसी वस्तु पर अगर एक बार आयात ड्यूटी लगती है तो उसका दाम एक बार ही बढ़ता है। अगर ड्यूटी अगले साल नहीं बढ़ायी जाती है तो अगले वर्ष उस वस्तु के दाम में कोई अंतर नहीं आयेगा, लेकिन व्यापार युद्ध के कारण समय के साथ कीमतों में परिवर्तन आता रहता है। इसे ही महंगाई कहते हैं। इसके अतिरिक्त टैरिफ  परिवर्तन में अनिश्चितता निवेश को प्रभावित करती है और आर्थिक विकास पटरी से उतर जाता है। अगर निवेशक भारत से अपना पैसा निकालेंगे तो फोरेक्स मार्किट में डॉलर की मांग बढ़ जायेगी और रुपया कमज़ोर होगा। बहुत तेज़ या अचानक रूपये के गिरने से कीमतों को नियंत्रित रखना कठिन हो जायेगा। यही स्थिति सब जगह हो सकती है। इसलिए यह जो व्यापार युद्ध छिड़ा है, उसे जीतेगा कोई नहीं, हारेंगे सभी।  

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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