स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना ज़रूरी

अच्छा स्वास्थ्य हमारे जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। इंसान जब तक स्वस्थ रहता है तब तक उसमें कार्य करने की क्षमता बनी रहती है। जब वह अस्वस्थ होने लगता है तो उसके कार्य करने की क्षमता भी कमज़ोर पड़ने लगती है। इसीलिए हमारे बुजुर्ग कहा करते थे कि ‘पहला सुख निरोगी काया’ यानी शरीर स्वस्थ रहने पर ही सबसे पहला सुख मिलता है। आज के दौर में खानपान में लापरवाही के चलते अधिकतर लोग किसी ने किसी बीमारी से पीड़ित रहने लगे हैं। इससे उनकी कार्य क्षमता में भी कमी आई है। मनुष्य के अस्वस्थ होने पर उसके उपचार पर पैसे खर्च होते हैं जिससे उसकी आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने लगती है। इसके साथ ही बीमार व्यक्ति का पूरा परिवार भी उसकी बीमारी के कारण तनाव में रहने लगता है। भागम-भाग के दौर वाली आज की जिंदगी में जो व्यक्ति अपना स्वास्थ्य सही रख पाता है, वह कम कमाई करके भी सबसे अधिक सुखी रह सकता है। इसलिए सभी को अपने स्वास्थ्य पर अवश्य ध्यान देना चाहिए। आज दुनिया भर में मनुष्य के स्वास्थ्य को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी दुनिया के देशों को समय-समय पर चेतावनी देता रहता है।
स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने के लिए प्रति वर्ष 7 अप्रैल को पूरी दुनिया में विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे विश्व स्वास्थ्य संगठन का मकसद दुनिया भर में लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है। साथ ही साथ सरकारों को स्वास्थ्य नीतियों के निर्माण के लिए प्रोत्साहित और प्रेरित करना है। वर्तमान में इस संगठन के बैनर तले 195 से अधिक देश अपने-अपने देश के नागरिकों को रोगमुक्त बनाने के लिए प्रयासरत है। विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने की शुरुआत 1950 से हुई। वैश्विक आधार पर स्वास्थ्य से जुड़े सभी मुद्दे को विश्व स्वास्थ्य दिवस लक्ष्य बनाता है। जिसके लिये कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। 
विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रकार के खास विषयों पर आधारित कार्यक्रम आयोजित होते हैं। पूरे साल भर के स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिये एक खास विषय का चयन किया जाता है। वर्ष 2025 में विश्व स्वास्थ्य दिवस का विषय है ‘स्वस्थ शुरुआत, आशावादी भविष्य।’ यह विषय माताओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य और जीवन को बढ़ाने पर केंद्रित है, जिसका लक्ष्य परिहार्य मातृ और शिशु मृत्यु के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। 
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार तीन साल की अवस्था वाले 3.88 प्रतिशत बच्चों का विकास अपनी उम्र के हिसाब से नहीं हो सका है और 46 प्रतिशत बच्चे अपनी अवस्था की तुलना में कम वजन के हैं जबकि 79.2 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं। गर्भवती महिलाओं में एनीमिया 50 से 58 प्रतिशत बढ़ा है। कहा जाता है कि जिस देश कि चिकित्सा सुविधाएं बेहतर होगी, उस देश के लोगों कि औसत आयु उतनी ही अधिक होगी। 
भारतीय स्वास्थ्य रिपोर्ट के मुताबिक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं अभी भी पूरी तरह से मुफ्त नहीं है और जो है उनकी हालत अच्छी नहीं है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की काफी कमी है। भारत में डॉक्टर और आबादी का अनुपात भी संतोषजनक नहीं है। हमारे देश में 1000 लोगों पर एक डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं है। अस्पतालों में बिस्तर की उपलब्धता भी काफी कम है और केवल 28 प्रतिशत लोग ही बेहतर साफ. सफाई का ध्यान रखते हैं। पिछले कुछ सालों में हमारे देश में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का प्रभाव बढ़ा है। साथ ही मधुमेह, हृदय रोग, क्षय रोग, मोटापा, तनाव की चपेट में भी लोग बड़ी संख्या में आ रहे हैं। महिलाओं में स्तन कैंसर, गर्भाशय कैंसर का खतरा बढ़ा है। ये बीमारियां बड़ी तादाद में उनकी मौत का कारण बन रही हैं। ग्रामीण तबके में देश की अधिकतर आबादी उचित खानपान के अभाव में कुपोषण की शिकार हो रही है। महिलाओं, बच्चों में कुपोषण का स्तर अधिक देखा गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार प्रति 10 में से सात बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं। वहीं महिलाओं की 36 प्रतिशत आबादी कुपोषण की शिकार है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में बताया गया कि देश की आबादी का 3.9 फीसदी यानी 5.1 करोड़ भारतीय अपने घरेलू बजट का एक चौथाई से ज्यादा खर्च इलाज पर ही कर देते हैं जबकि श्रीलंका में ऐसी आबादी महज 0.1 फीसदी है, ब्रिटेन में 0.5 फीसदी, अमरीका में 0.8 फीसदी और चीन में 4.8 फीसदी हैं। 
देश के ग्रामीण अंचल में जब तक सही व समुचित स्वास्थ्य सेवाऐं उपलब्ध नहीं हो पायेगी तब तक भारत में सबको स्वास्थ्य की योजना पूरी नहीं हागी। आज देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधा की स्थिति बड़ी भयावह है। आये दिन समाचार पढ़ने को मिलते हैं कि एम्बुलेन्स के अभाव में मृतक को साईकिल पर बांधकर घर तक लाना पड़ता है। गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में लोगों को तांत्रिको के चक्कर लगाते देखा जा सकता है। निजी चिकित्सक भी कमाई के चक्कर में शहरों में ही काम करना पसन्द करते हैं। जब तक गांवों की तरफ  ध्यान नहीं दिया जायेगा तब तक भारत में सबको स्वास्थ्य का सपना पूरा नहीं हो पायेगा।

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