मुर्शिदाबाद के दंगे
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में पिछले कुछ दिनों से जिस तरह का साम्प्रदायिक माहौल बिगड़ा हुआ है, उसको देखते हुए यह अहसास ज़रूर हो जाता है कि अप्रैल के पहले सप्ताह में संसद द्वारा जो वक्फ संशोधन बिल 2025 पास किया गया और जिस पर 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हस्ताक्षर किये, संबंधी बड़े स्तर पर पैदा हुई बेचैनी का जल्द ही हल निकलने वाला नहीं है। मुर्शिदाबाद मुस्लिम बहु-संख्या वाला ज़िला है। आगामी समय में वक्फ संशोधन बिल जो अब नया वक्फ कानून बन चुका है, पर पैदा होने वाली बेचैनी की इसको शुरुआत कहा जा सकता है। इस बड़े हज़ूम ने जुम्मे (शुक्रवार) की नमाज़ के बाद इकट्ठे होकर पथराव किया, लोगों की दुकानों और घरों को जलाया, इस हिंसा में तीन लोग मारे गये। बड़ी संख्या में लोग घायल हुए। पुलिस ने सख्ती से सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया, इसके साथ ही सैकड़ों लोग घर-बार छोड़कर दूसरे ज़िलों में चले गये।
इस घटनाक्रम का असर समूचे देश पर होगा। अलग-अलग सम्प्रदाओं का आपस में गली-बाज़ारों में सामने होना बेहद खतरनाक स्थिति को जन्म देता है। इससे बड़े स्तर पर अविश्वास पैदा हो रहा है और समूचे वातावरण में नफरत का माहौल बन जाता है। इस दिशा में सोचते हुए आगामी समय में भी अलग-अलग स्थानों पर और भी चिंताजनक दृश्य पैदा होने की सम्भावना बन गई है। साम्प्रदायिक मुहाज़ पर देश में दंगे-फसाद तो अकसर होते रहे हैं परन्तु पिछले दशक से तो इस मामले पर जिस तरह का माहौल बनाया जा चुका है, उससे आपसी सद्भावना के स्थान पर अलग-अलग सम्प्रदायों में टकराव बढ़ने की सम्भावना और भी बढ़ गई है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए यह बेहद नमोशी वाली बात कही जा सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भारतीय जनता पार्टी ने लगातार अलग-अलग गतिविधियों के द्वारा अल्पसंख्यकों तथा विपक्षी पार्टियों को एक प्रकार से दीवार तक धकेल दिया है। विशेष रूप से धार्मिक जुलूसों व यात्राओं के समय पैदा होती भड़काहट से माहौल बुरी तरह बिगड़ जाता है। चाहे केन्द्र सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि वक्फ कानून ज़रूरतमंद मुसलमानों की बेहतरी के लिए बनाया गया है, परन्तु पिछले पूरे घटनाक्रम तथा मुसलमानों के प्रति उसके रवैये को देखते हुए उसकी बात पर अविश्वास हो जाता है। इसे धार्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप माना जाने लगा है। इस कानून की कुछ धाराएं ऐसी हैं, जिनमें सरकार के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से अल्पसंख्यक समुदाय में आशंकाएं बढ़ती जा रही हैं। इस विधेयक को अलग-अलग पहलुओं से देखा जा रहा है। जहां तक केन्द्र में एन.डी.ए. सरकार का सवाल है, इसकी ओर से तो पूरी योजनाबंदी करके विधेयक को संसद द्वारा पारित करवा लिया गया है, परन्तु कांग्रेस सहित अन्य बहुत-सी ‘इंडिया’ ब्लॉक की पार्टियां इसका पूरी तरह विरोध कर रही हैं।
तृणमूल कांग्रेस की नेता तथा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी लगातार इसका डट कर विरोध किया है। उन्होंने यह भी कहा था कि प्रदेश में इस विधेयक पर किसी भी हालत में क्रियान्वयन नहीं किया जाएगा। अब वहां दंगे भड़कने संबंधी भाजपा द्वारा ममता पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि उनकी ओर से इस कानून का विरोध किए जाने के कारण माहौल और भी ज़्यादा बिगड़ गया है। हम समझते हैं कि ऐसा माहौल सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही नहीं, अपितु देश भर में बहुत-से स्थानों पर सृजित किया जा रहा है, जिसके अलग-अलग पहलू सामने आ रहे हैं। यह आगामी समय में देश के विकास तथा भाईचारक समरसता के लिए बड़ी चुनौती बना रहेगा, जिससे निपट सकना केन्द्र सरकार के लिए बेहद कठिन कार्य होगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द