वक्फ पर नई लकीर : ‘उम्मीद’ या उलझन ?

वक्फ संशोधन विधेयक 2024, 2 और 3 अप्रैल 2025 को संसद के दोनों सदनों से पास होने और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद वक्फ संशोधन अधिनियम बन गया है और अब इसे ‘उम्मीद’ अर्थात ‘यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट एम्पॉवरमेंट, एफिशियेंसी एंड डिवैल्पमेंट एक्ट’ के नाम से जाना जाएगा। वास्तव में इस विधेयक के सदन के पटल पर रखे जाने के बाद से ही इस पर निरन्तर विवाद चल रहा है और अब इसके कानून बन जाने के बाद यह मामला देश के सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है जिसमें इसको संवैधानिक आधार पर चुनौती दी गयी है। आखिर वक्फ क्या है? इसमें संशोधन क्यों ज़रूरी था और अब संशोधन के बाद इसकी वस्तुस्थिति क्या है? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनको जानना नितान्त आवश्यक है। 
‘वक्फ’ संपत्ति से जुड़ा एक ऐसा मसला है जो आज-कल विवाद का विषय बना हुआ है। वक्फ एक ऐसी संपत्ति होती है जिसका मालिक अल्लाह और रखवाला एक बोर्ड है। कहने के लिए वक्फ का मतलब है भलाई के लिए दी गई सम्पत्ति जिससे गरीबों और जरूरतमंदों का भला हो सके। वक्फ का अर्थ होता है लोकोपारार्थ दी गई चल या अचल सम्पत्ति। मुस्लिम कानूनविद बहाउद्दीन एदुवल्दीज ने इसके तीन तत्व बताएं हैं- 1. हयारत जिसका मतलब है भलाई करना। यह दान देने वाले की नीयत को बताता है 2. अकारत इसका मतलब होता है राजस्व, जिसे समाज सेवा के लिए खर्च किया जाता है और 3. वक्फ अर्थात जहां ये सेवाएं दी जाती हैं। इसमें दो और महत्त्वपूर्ण शब्दावलियां जुड़ी हैं— अल व़ािक़फ (दान देने वाला) और अल मौकूफ (दान की गई सम्पत्ति)। दान लिखकर या बोलकर किया जाता है। एक बार वक्फ होने के बाद उसे ना तो बेच जा सकता है, ना ही किसी को दिया जा सकता है। वक्फ का इतिहास उतना ही पुराना है जितना इस्लाम। वस्तुत: कुरान में इसका बहुत जिक्र नहीं है परन्तु कुरान के सूरा ‘अल-ए-इमरान’ में आया है कि जब तक तुम अपनी प्यारी चीज में से कुछ दान नहीं करते, तब तक तुम सच्ची नेकी नहीं पाते। यह इस बात का सबूत है कि दान में हमेशा मूल्यवान चीज दी जाती है और इससे सवाब मिलता है। 
हदीस में पहले वक्फ का जिक्र है जब हिजरत के बाद मोहम्मद साहब ने 600 खजूरों के पेड़ को मदीना के गरीबों के लिए वक्फ किया था। भारत में पहले वक्फ का ज़िक्र ऐन-अल-मुल्क-मुल्तानी की पुस्तक ‘इंशा-ए-महरू’ में मिलता है। इस पुस्तक में उल्लिखित है कि 1185 में मोहम्मद गोरी ने मुल्तान की एक मस्जिद को दो गाँव वक्फ किये थे। गौरी के बाद जब भारत में गुलाम वंश की नींव पड़ी तो इस वंश ने वक्फ को संस्थात्मक बना दिया। बरनी ने अपनी पुस्तक तारीख-ए-फिरोजशाही में लिखा है कि सरायों, मस्जिदों, नहरों या किसी भी समाजसेवा से जुड़ी संस्था के रख-रखाव के लिए वक्फ किया जाता था। एस. अतहर हुसैन एवं एस. खालिद रसीद ने अपनी पुस्तक ‘भारत में वक्फ प्रशासन 1968’ में इस बात का उल्लेख किया है कि 1206 से 1526 के मध्य वक्फ बोर्ड बन चुका था। मुगल काल में भी यह जारी रहा और जब जनता का जुड़ाव गांवों की तरफ हुआ तो वक्फ का प्रसार ग्रामीण इलाकों में हो गया। 
मुगलिया हुकूमत की यह रवायत ब्रिटिश काल में भी जारी रही परन्तु लंदन की प्रिवी काउंसिल के चार जजों की बेंच ने इसे खारिज कर दिया था। 1913 में आए ‘द मुसलमान वक्फ बैलिडेटिंग एक्ट 1913’ ने इसे एक बार फिर से फलक पर पहुँच दिया। इसके बाद 1924 में इसमें परिवर्तन हुआ। आजादी के बाद से अब तक इसमें 4 बार संशोधन (1955, 1995, 2013 और अब 2025 में) हो चुका है। 1964 में वक्फ बोर्ड की स्थापना हुई जिससे इसे अत्यधिक शक्तियां प्राप्त हुईं। 1995 में किये गए संशोधन ने प्रत्येक राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश को वक्फ बोर्ड गठित करने की अनुमति दे दी। इसके बाद से ही केन्द्रीय वक्फ परिषद वक्फ संपत्तियों से सम्बद्ध मामलों पर केंद्र के लिए एक सलाहकार के रूप में काम करती है। 2013 में संप्रग सरकार ने 1995 के मूल वक्फ एक्ट में बदलाव करके बोर्ड की शक्तियां बढ़ा दीं। 
भारत में 32 से भी ज्यादा वक्फ बोर्ड कार्यरत हैं। रेलवे और सेना के बाद वक्फ बोर्ड के पास देश में सबसे अधिक भूमि है किन्तु इसमें कुछ लोगों ने अपना वर्चस्व स्थापित कर रखा है। 1913 से 2013 के मध्य जिस वक्फ बोर्ड के पास 18 लाख एकड़ भूमि थी, 2024 में बढ़कर लगभग 39 लाख एकड़ हो गई परन्तु इस भूमि का सालाना राजस्व 1200 करोड़ से घटकर 160 करोड़ रह गया है। वक्फ से संबंधित 21618 केस लंबित हैं।  
इस नए कानून में जो संशोधन किया गया है, उसमें वक्फ सम्पत्ति के रूप में उपयोग में लायी जाने वाली सम्पत्ति वक्फ की ही रहेगी, अर्थात उस पर भूतलक्षी प्रभाव नहीं होगा, किन्तु अगर कोई सम्पत्ति भविष्य में वक्फ की जाती है तो उसके लिए उस सम्पत्ति से संबंधित साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे। साथ ही यह भी उल्लेखित है कि इस कानून के लागू होने के पूर्व किसी वक्फ पर विवाद है तो उसकी जांच होगी। जैसे कोई जमीन सरकारी हो और उसे वक्फ कर दिया गया हो। ज़िला मैजिस्ट्रेट से ऊपर का कोई अधिकारी इसकी जांच करेगा। 
वह व्यक्ति ही वक्फ कर सकता है जो कम से कम 5 वर्षों से मुस्लिम हो। मुस्लिम महिलाओं को राज्य एवं केन्द्र में वक्फ से जोड़ा गया है। न्यायाधिकरण के विरुद्ध भी उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली जा सकती है। जब से यह कानून बना है तभी से मुस्लिम संगठन और विपक्षी दल इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। विरोध प्रदर्शन यद्यपि संवैधानिक आधार पर जायज है, लेकिन जब यह हिंसक रूप देने लगे तो यह उचित नहीं है, जैसा पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में देखने को मिल रहा है। इसका विरोध संविधान के दायरे में रहकर करना चाहिए और जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में चला  गया है तो निर्णय आने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। 

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