ज़रूरत अनुसार ही किया जाए खादों व कीटनाशकों का इस्तेमाल

भारत की जनसंख्या विश्व की आबादी का लगभग 18 प्रतिशत है जबकि इसके पास विश्व भूमि का 2.4 प्रतिशत भाग तथा पानी 4 प्रतिशत है। इन साधनों के माध्यम से ही हर साल बढ़ रही जनसंख्या के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत है। फसली घनत्व बढ़ जाने के कारण खेतों में कीड़े-मकौड़े, नदीन तथा बीमारियां बढ़ गई हैं। नदीनों पर नियंत्रण नदीन-नाशकों का उचित तथा समझदारी से इस्तेमाल करके ही पाया जा सकता है। भूमि के नीचे दीमक भी गम्भीर समस्या बनी हुई है। इसलिए इससे निजात पाने के लिए दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है। धान तथा बासमती की काश्त के अधीन लगभग 32 लाख हैक्टेयर रकबा है। तने के गंड़ूए, पत्ता लपेट सुंडी, प्लांट हापज़र्, धान का हिस्पा, जड़ की सुंडी, धान के सिट्टे कुतरने वाली सुंडी, झुलस रोग (वैक्टिरियल ब्लाइट), भुरड़ रोग, सीथ ब्लाइट, भूरे धब्बों का रोग, शीथ रॉट, फाल्स समट तथा बंट आदि आम बीमारियां आती हैं। बासमती में तो झंडा रोग भी आता है। कपास, नरमा की फसल में टींडे की सुंडी, रस चूसने वाले कीड़े, चिट्टी मक्खी, मिलीबग्ग, गुलाबी सुंडी, अमरीकन सुंडी, पत्ता मरोड़, लीफ स्पाट, पैरा विल्ट जैसी आम बीमारियां देखी जाती हैं। भंडार में सुसरी, खपरा तथा अन्य कीड़े अनाज का भारी मात्रा में नुकसान करते हैं। यदि इस नुकसान पर काबू न पाया गया तो विश्व को भविष्य में खाने के लिए अनाज की भी कमी आने की सम्भावना है। इस पर काबू पाने के लिए कीटनाशकों व नदीन-नाशकों का समझदारी तथा वैज्ञानिक ढंग से इस्तेमाल ही एक समाधान है।
कीटनाशकों के इस्तेमाल पर बड़ा शोर मचाया जाता है, परन्तु किसान इनका प्रयोग करने के लिए मजबूर हैं। इनकी पौध सुरक्षा में भी अहम भूमिका है। वैज्ञानिकों की सिफारिशों के अनुसार ही इनकी मात्रा एवं अनुकूल समय पर इस्तेमाल करने की ज़रूरत है। एक अनुमान के अनुसार यदि फसलों के नुकसान को सही ढंग से पौध सुरक्षा के माध्यम में सुरक्षित कर दिया जाए तो 20 प्रतिशत से एक-चौथाई तक उत्पादन अधिक मिल सकता है। आवश्यकता है मंडी में छोटे-छोटे विक्रेताओं के माध्यम से गैर-स्तरीय एवं नकली कीटनाशकों को बेचे जाने से रोकने की। कुछ समय पहले फिक्की द्वारा टाटा ग्रुप के सहयोग से किए गए एक सर्वेक्षण के आधार पर गैर-स्तरीय एवं नकली कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण भारी मात्रा में अनाज बर्बाद हुआ। इस सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 25-30 प्रतिशत किसान कीटनाशकों के उचित इस्तेमाल संबंधी जानकारी नहीं रखते। किसानों को ऐसी जानकारी देने के लिए कृषि प्रसार सेवा भी पूरी तरह आगे नहीं आती। किसानों को पूरी जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए तथा कीटनाशकों के इस्तेमाल से पूरा लाभ  किसानों तक पहुंचाने के लिए कृषि प्रसार सेवा मंडियों में डीलर स्तर तक ही उपलब्ध कर दी जाए तो बेहतर होगा।
पेटैंट दवाइयां जो किसानों के इस्तेमाल के लिए रिलीज़ की जाती हैं, यदि उचित ढंग से उपयोग की जाएं तो बहुत असरदार हैं। कीटनाशकों तथा दवाइयों को किसानों के इस्तेमाल के लिए स्वीकृति देने से पहले प्रत्येक दवाई को भारत सरकार द्वारा 8 से 10 वर्ष परखा जाता है और तभी फसलों में इस्तेमाल के लिए सिफारिश की जाती है, जब यह मनुष्य के लिए सुरक्षित हो।
इस संबंधी आईसीएआर द्वारा परख की जाती है और अलग-अलग वातावरण तथा भूमि में इस्तेमाल करके नतीजे प्राप्त किए जाते हैं, जिनकी वैज्ञानिक जांच होती है। जब किसी दवाई को रजिस्टर्ड कर लिया जाए तो इसे देश के किसी भी भाग में इस्तेमाल किया जा सकता है। कृषि उपज (जिनमें फल तथा सब्ज़ियां शामिल हैं) में रह जाने वाले ज़हरीले अंशों की मात्रा किस सीमा तक सहन करने के योग्य है ताकि यह मनुष्य के स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव न डाले, इस संबंधी केन्द्र इंसैक्ट्रिसाइड्ज़ बोर्ड तथा इस संबंधी बनाई गई कमेटी सभी आंकड़ों की जांच करती है और कृषि मंत्रालय इसकी सुरक्षा संबंधी अधिक से अधिक ज़हरीले अंश की मात्रा के पक्ष से जांच करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजता है। उसके बाद भी इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर हैं। जब इन्हें स्वास्थ्य तथा कृषि मंत्रालय दोनों द्वारा सही करार दे दिया जाता है तो ही खेतों में व्यापक रूप में इस्तेमाल करने के लिए स्वीकृति दी जाती है। यदि किसान सूझबूझ से सिफारिश मात्रा के अनुसार दवाइयों का इस्तेमाल करें और फसलों पर छिड़काव एवं फसल पकने के बीच उचित समय छोड़ें तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं, क्योंकि पदार्थ खाने के समय कोई ज़हरीला अवशेष नहीं रह जाएगा। 
कीटनाशक वहीं इस्तेमाल करने चाहिएं जहां इनकी ज़रूरत हो। अधिकतर किसान देखा-देखी बिना ज़रूरत के दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं और विशेषज्ञों की सलाह, कम्पनियों द्वारा रखे गए सलाहकारों की सिफारिश नहीं मानते तो नुकसान होता है। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। पंजाब में कीमियाई खाद का इस्तेमाल भी बहुत बढ़ता जा रहा है। इनके बारे भी किसानों को पूरी जानकारी नहीं। किसान ज़रूरत से अधिक मात्रा में इन्हें डाल रहे हैं। वे सिफारिश मात्रा से अधिक खाद एवं दवाइयों की खुराक इस्तेमाल कर रहे हैं। फसलों के भंडारण के दौरान तथा भंडारों में रखे अनाज को सुरक्षित रखने की भी जानकारी न किसानों को है और न ही कुछ कृषि कर्मचारियों को। इस संबंधी जानकारी बढ़ाए जाने की ज़रूरत है।

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