रेगिस्तान में ऊंट की सवारी
रेगिस्तान बहुत लम्बा चौड़ा था। भूख का, गरीबी का, बेकारी का रेगिस्तान। हमने सोचा था इसमें कहीं न कहीं नखलिस्तान तो होंगे। जी हां थे, बहुत से नखलिस्तान थे, लेकिन उन पर ऐसे चेहरों ने कब्ज़ा जमा रखा था, जो पहले हमारे जाने-पहचाने थे, लेकिन ज्यों-ज्यों इस नखलिस्तान में उनके प्रासाद खड़े होते चले गये, उनके पास चलाने के लिए दैत्याकार गाड़ियां आ गईं, वे अपरिचित हो गए। हम एक कोने में छिंटक कर यह सोचने लगे कि अब अपनी टूटी हुई साइकिलें कहां चलाएं? सुना था, मुख्य सड़क उनके हवाले कर दी गई है। हमारे लिए उसके साथ-साथ चलने के लिए सेवा सड़कों की पगडंडियां बना दी गई हैं।
हमने सोचा था हम इन सपनों, दावों, और घोषणाओं के ऊंट पर नहीं बैठेंगे, जो हमें रेगिस्तान पार करने के लिए समय के मसीहाओं ने भेंट कर दिया है। किसी भी ऊंची चीज़ को हम कभी प्राप्त नहीं कर सके, तो फिर इस ऊंट पर ही कैसे बैठ जाते? हमने सोचा हम अपने लिए छोड़ी गई इस सेवा सड़क का इस्तेमाल कर लेंगे। साइकिल चलाने का मोह त्याग कर पांव-पांव इस पगडंडीनुमा लम्बी सड़क पर चलेंगे, क्योंकि उन्होंने बताया था कि यही हमारा कर्त्तव्य पथ है। हम प्रसन्न हो गए कि हमें कर्त्तव्य पथ तो मिला। रास्ता चाहे कितना ही लम्बा या बीहड़ क्यों न हो, अब हम इस पर चल तो सकेंगे क्योंकि आज तक हमें जीवन साधने के नाम पर अनुकम्पा पथ ही भेंट किए गए थे, और जीवन यात्रा पूर्ण करने के लिए हमें चलने नहीं, हाथ फैलाने का रास्ता बताया गया था।
हम साहस बांध कर इस नए मिले कर्त्तव्य पथ पर चलने के लिए गए, जहां मिट्टी पर नंगे पांव चलने पर भी एक दिन मंज़िल मिलने की उम्मीद हो सकती थी, लेकिन जब तक हम इन पगडंडियों तक पहुंचे, उनका अतिक्रमण हो चुका था। पगडंडियां कहीं दिखाई नहीं देती थीं। यहां फड़ियों और रेहड़ियों वाले अपनी दुकानें सजा कर हर दिन इतवारी बाज़ार का नज़ारा पेश कर रहे थे।
हां, कुछ लोगों के लिए हर दिन इतवारी बाज़ार होता है, और कुछ के लिए वह दुकान जिस पर कभी कोई ग्राहक नहीं फटकता। खैर अपने-अपने भाग्य हैं और अपनी-अपनी किस्मत। इस किस्मत में किसी के लिए हर कदम पर बिल्ली के भागों छींका टूटता है, और किसी की ऐसी किस्मत कि उसके हिस्से का सत्तू भी कोई दूसरा आकर चट कर गया, अपनी मलाई खाने के बाद। हमें लगता है कि यह केवल हमारा हाल ही नहीं, इस देश के हर उस आदमी का है जो अपनी वर्तमान अवस्था को पूर्व जन्मों के पापों का फल समझता है। वैसे जैसा सूरत-ए-हाल यहां है, उससे तो यही लगता है कि इस देश की अधिकांश जनता पूर्व जन्म में बहुत पापी रही होगी।
बेशक आपका गुस्सा जायज़ है, कि बात हम रेगिस्तान पार करने की कर रहे थे, और अब उससे बच कर जन्म-जन्मांतरों का लेखा-जोखा करने बैठ गए। इससे तो अच्छा था हम पूर्व जन्म के सिद्धांत पर विश्वास न करते और अपनी आज की दुर्दशा का असली कारण ही तलाश करने का प्रयास करते।
लेकिन फिलहाल तो यह प्रयास नहीं, वह ऊंट एक ऊंचा दिलासा है जो हमें इस बीहड़ रेगिस्तान से पार ले जाएगा। उन्होंने हमें सपनों का ऊंट तो भेंट कर दिया, हमें ही उस पर सवारी करनी न आई। एक दो बार इन ऊंटों पर चढ़ने का प्रयास किया, धड़ाम से नीचे गिरे। खिसिया कर यह भी न कह सके, कि ‘मियां, गिरते हैं शाहसवार ही मैदाने जंग में।’
यहां तो बिना लड़े ही इतने जवान रणभूमि में खेत रहे, और आप सपनों पर शाहसवारी की बात कह रहे हैं। अधिक से अधिक उन्होंने इस चरियल मैदान पर सपनों का एक पुराना बॉयस्कोप देखा, जो बार-बार चलाये जाने से टूट फूट गया है। बड़े-बड़े हैरान करने वाले सच सामने आते हैं। लगता है, एक काठ की हांडी है जो बार-बार आग पर चढ़ जाती है, और लोग काठ की हांडी की सफलता का उत्सव मनाते हैं। खैर उत्सव मनाना तो इस देश में सबको अच्छा लगता है, इसीलिए तो इसको उत्सवधर्मी देश कहते हैं। आइए, हम भी आज एक उत्सव मना लें। अपना एक सपना देखने का उत्सव, जो अधूरा नहीं रह गया, पूरा हुआ। हमने सपना देखा कि आखिर हम इस ऊंट पर सवार हो ही गए और इस पर सवारी करते हुए इस बीहड़ रेगिस्तान को पार करने चले। पीरों-मुर्शिद ने कहा था, हम हज़ार साल में इस रेगिस्तान को पार कर लेंगे। अपनी सांस्कृतिक गरिमा से पूरी दुनिया को उजला कर देंगे।
लीजिये सपने में ऊंट पर तो हम आज ही सवार हो गए। हमारे लिए यह ऊंट एक अरबी घोड़े में तबदील हो गया जैसे काफका की एक कहानी में वह एक बड़े कीड़े में तबदील हो गया था। हम इस अरबी घोड़े पर सवारी करते हुए कूदते फांदते इस बीहड़ रेगिस्तान से गुज़र गए। रेगिस्तान जो बेकारी था, भूख था, वंचना था और प्रवंचना भी था, जो वंचित है, वह प्रवंचित तो रहेगा ही, इसमें हैरानी क्या?
हैरानी यह, कि चन्द कदम चलते ही वह अरबी घोड़ा फिर एक ऊंचे मरियल ऊंट में तबदील हो गया, जो हर क्षण हमें अपनी पीठ से नीचे गिराने पर उतारू था।
़खैर सपना ही तो था। नीचे तो हम नहीं गिरे, लेकिन यह ऊंट मन्थर गति से चलता हुआ हमें एक नखलिस्तान में ले गया, जिसमें अजनबी लोगों का शासन था। हमें देख कर उनके कुत्ते हम पर बेतहाशा भौंकने लगे। जैसे समझाते हों, इन नखलिस्तानों में तेरा प्रवेश निषेध है। एक कद्दावर कुत्ता हम पर झपटा। हम ऊंट पर बैठे थे, फिर भी उसने गुस्से से भर कर हमें काट लिया। ऊंट पर बैठे थे फिर भी कुत्ता हमें काट गया। सपना टूट गया। हम ऊंट से चीख कर गिरे, और उस नखलिस्तान से बाहर रेत के बगूलों भरे रेगिस्तान में जा गिरे।
आंख खुली तो देखा, न कोई ऊंट था, और न हम पर झपटते हुए कुत्ते। सिर्फ सड़क के फुटपाथ से खिसक नीचे गड्ढे में जा गिरे थे। कल ही तो इसकी मुरम्मत हुई थी। रात बारिश हुई, शायद इसीलिए यह एक नया गड्ढा बन गया था।