कला सशक्त माध्यम है दुनिया को खूबसूरत बनाने का
कला जीवन को रचनात्मक, सृजनात्मक, नवीन और आनंदमय बनाने की साधना है। कला के बिना जीवन का आनंद फीका अधूरा है। कला केवल एक भौतिक वस्तु नहीं है जिसे कोई बनाता है बल्कि यह एक भावना है जो कलाकारों और उन लोगों को खुशी और आनंद देती है जो इसकी गहराई को समझते हैं। कला अति सूक्ष्म, संवेदनशील और कोमल है, जो अपनी गति के साथ मस्तिष्क को भी कोमल और सूक्ष्म बना देती है। हम जो कुछ भी करते हैं उसके पीछे एक कला छिपी होती है। कला का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व है। इसी महत्व के लिये विश्व कला दिवस विभिन्न कलाओं का एक अंतर्राष्ट्रीय उत्सव है, जिसे दुनिया भर में रचनात्मक गतिविधि के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कला संघ (आईएए) द्वारा घोषित किया गया था। अंतर्राष्ट्रीय कला संघ की 17वीं आम सभा में 15 अप्रैल को इस दिवस को घोषित करने का प्रस्ताव रखा गया, जिसका पहला समारोह 2012 में आयोजित किया गया था। इस प्रस्ताव को तुर्की के बेदरी बैकम ने प्रायोजित किया और मैक्सिको की रोजा मारिया बुरीलो वेलास्को, फ्रांस की ऐनी पौरनी, चीन के लियू दावेई, साइप्रस के क्रिस्टोस सिमेयोनिडेस, स्वीडन के एंडर्स लिडेन, जापान के कान इरी, स्लोवाकिया के पावेल क्राल, मॉरीशस के देव चूरामुन और नॉर्वे की हिल्डे रोगनस्कॉग ने सह -हस्ताक्षर किए।
विश्व कला दिवस की 2025 की थीम है ‘अभिव्यक्ति का उद्यान: कला के माध्यम से समुदाय का विकास करना’। इस थीम का उद्देश्य कला के माध्यम से सामुदायिक विकास को बढ़ावा देना है। दुनिया भर के कलाकारों के लिए यह एक महत्वपूर्ण दिन है, जिसका मुख्य उद्देश्य कलाकारों और उनकी कला को सुरक्षित, संरक्षित करना और उन्हें अपनी बुद्धिमत्ता, रचनात्मकता और नवाचार को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच प्रदान करना है। कला दिवस विश्व में विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है। कलाकार कविता, पेंटिंग, मूर्तिकला, नृत्य, संगीत जैसे विभिन्न भौतिक साधनों के माध्यम से अपने विचारों, रचनात्मकता, ज्ञान, भावनाओं और कल्पना का आदान-प्रदान करते हैं। यह दिन हमें अपने आस-पास की प्रकृति में गोता लगाने, उसकी सुंदरता का निरीक्षण करने और अपने आस-पास की छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देने को प्रेरित करता है। इसके माध्यम से जीवन की खूबसूरती को उकेरने एवं मोहक दुनिया का सृजन करने का प्रयत्न किया जाता है।
विश्व कला दिवस की तिथि लियोनार्डो दा विंची के जन्मदिन के सम्मान में तय की गई थी, जो इटली के महान चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुशिल्पी, संगीतज्ञ, कुशल यांत्रिक, इंजीनियर और वैज्ञानिक थे। लिओनार्दो अपनी कला की वजह से दुनिया भर में मशहूर थे, दा विंची को विश्व शांति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सहिष्णुता, भाईचारे और बहुसंस्कृतिवाद के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में कला के महत्व के प्रतीक के रूप में चुना गया था। कला और कलाकारों की कलात्मक सोच को सम्मानित और आत्मसात करने के उद्देश्य से ही हर साल यह दिवस मनाया जाता है। रंगों और आकृतियों के माध्यम से भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए, कला जीवन के सार को पकड़ती है, भावनाओं को जगाती है और शब्दों के बिना भी संबंध को बढ़ावा देती है। विंची एक महान कलाकार थे। उन्होंने कई ऐसी पेंटिंग बनाई हैं, जो विश्वभर में प्रसिद्ध हुई हैं। इन सब में ‘मोना लिसा की पेंटिंग’ के बारे में बच्चे-बच्चे को पता है। लेकिन, विंची ने मोना लिसा के अलावा भी कई विख्यात पेंटिंग बनाई हैं, जिनमें से कुछ हैं - लास्ट सपर, सेल्फ पोट्रेट, द वर्जिन ऑफ द रॉक्स, हेड ऑफ अ वुमेन आदि। उनकी बनाई गई पेंटिंग्स आज भी दुनियाभर के म्यूजियम में रखी हुईं हैं, जिन्हें देखने हर साल कई लाख लोग आते हैं।
संगीत अमूर्त कला है पर उसमें निहित शांति, सौन्दर्य एवं संतुलन की अनुभूति विरल है। संगीत अशांति के अंधेरों में शांति का उजाला है। यह अंतर्मन की संवेदनाओं में स्वरों का ओज है। शादी में ढोलक-शहनाई, भजन-मंडली में ढोल-मंजीरा, शास्त्रीय संगीत में तानपूरा, तबला, सरोद, सारंगी का हम सब भरपूर आनंद उठाते हैं, ये कला के बेजोड़ नमूने है। भारत में संगीत का हजारों वर्षों का इतिहास है, शास्त्रीय संगीत आदि काल से है। संगीत के आदि स्रोत भगवान शंकर हैं। उनके डमरू से तथा श्रीकृष्ण की बांसुरी से संगीत के सुर निकले हैं। किंवदन्ति है कि संगीत की रचना ब्रह्माजी ने की थी। सूरदास की पदावली, तुलसीदास की चौपाई, मीरा के भजन, कबीर के दोहे, संत नामदेव की सिखानियां, संगीत सम्राट तानसेन, बैजु बाबरा, कवि रहीम, संत रैदास भक्ति संगीत एवं साहित्य विलक्षण उदाहरण हैं।
कठपुतली भी कला का ही एक नमूना है, लकड़ी अर्थात काष्ठ से इन पात्रों को निर्मित किये जाने के कारण अर्थात् काष्ठ से बनी पुतली का नाम कठपुतली पड़ा। पुतली कला कई कलाओं का मिश्रण है, जिसमें-लेखन, नाट्य कला, चित्रकला, वेशभूषा, मूर्तिकला, काष्ठकला, वस्त्र-निर्माण कला, रूप-सज्जा, संगीत, नृत्य आदि। भारत में यह कला प्राचीन समय से प्रचलित है, जिसमें पहले अमर सिंह राठौड़, पृथ्वीराज, हीर-रांझा, लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद की कथाएं ही कठपुतली खेल में दिखाई जाती थीं।