कानून का विरोध करना भी अब देश-द्रोह बना

दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों में संसद से पारित कानूनों का नागरिक समूह और राजनीतिक दल विरोध करते हैं, लेकिन विरोध करने वालों को कोई भी गद्दार या देशद्रोही नहीं कहता है। भारत में भी आज़ादी के बाद कई कानून बने जिनका व्यापक विरोध हुआ, लेकिन विरोध करने वालों को कभी किसी ने गद्दार नहीं कहा या सरकार ने उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया। लेकिन अब भाजपा ने कानून का विरोध करने वालों को गद्दार मानना शुरू कर दिया है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात आदि कई राज्यों में भाजपा की ओर से राहुल गांधी, शरद पवार, लालू प्रसाद, अखिलेश यादव आदि नेताओं की तस्वीर वाले पोस्टर लगाए गए हैं जिन पर लिखा है, ‘वक्फ बिल का विरोध करने वाले गद्दार।’ उत्तर प्रदेश में तो कानून का विरोध करने पर नोटिस भेजे जा रहे हैं। गौरतलब है कि पिछले दिनों तीन अप्रैल को संसद से पास हुए वक्फ  कानून के खिलाफ  चार अप्रैल को मुजफ्फरनगर में जुमे की नमाज अदा करने गए लोगों ने बांह पर काली पट्टी बांध कर इस कानून का विरोध जताया। सरकार ने ऐसे करीब तीन सौ लोगों को नोटिस भेज कहा कि वे थाने पहुंच कर दो लाख रुपए का मुचलका जमा कराएं और दो ज़मानतदार अपने साथ लेकर आएं। काली पट्टी बांध कर या सड़क पर भी उतर कर सरकार के बनाए कानून का विरोध करना अपराध कैसे हो गया? माना जा रहा है कि दो साल बाद उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव तक इस तरह के काम होते रहेंगे, जिनसे यह मैसेज बने कि सरकार मुसलमानों पर सख्ती कर रही है।
भारत सरकार ‘छोटी मछली’ मिलने पर खुश
अमरीका ने 16 साल पहले 26/11 को मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले के एक आरोपी तहव्वुर राणा को भारत भेज दिया है तो सारा देश खुशी मना रहा है, लेकिन भाजपा और मीडिया कुछ ज्यादा ही खुश और उत्साहित है। वे इसे नरेंद्र मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक सफलता के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं। लेकिन भारत के गृह सचिव रहे जी.के. पिल्लई इस बात से बहुत खुश नहीं है। उन्होंने कहा है कि राणा तो बहुत छोटी मछली है। बड़ा दोषी, बल्कि मुख्य साजिशकर्ता तो डेविड कोलमैन हेडली है, जिसे अमरीका ने भारत नहीं भेजा। जी.के. पिल्लई का यह बात कहना इसलिए अहम है क्योंकि वह मुम्बई आतंकी हमले के बाद भारत के गृह सचिव बने थे और उनके समय में भारत ने हेडली को अमरीका से लाने का प्रयास किया था, लेकिन अमरीका ने उसे भेजने से इन्कार कर दिया क्योंकि वह अमरीका का एजेंट था और डबल क्रॉस करके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. का भी एजेंट बन गया था। उसकी मां अमरीकी थी और बाप पाकिस्तानी था, लेकिन उसने अपने पासपोर्ट पर सिर्फ  मां का नाम रखा था, जिससे कभी उस पर पाकिस्तानी होने का संदेह नहीं हुआ। उसने ही मुम्बई पर हमले की साज़िश रची और उसको अंजाम देने का बंदोबस्त किया, लेकिन अमरीका ने उसे भारत को सौंपने से मना कर दिया। भारत सरकार भी उस पर ध्यान नहीं दे रही है, क्योंकि उसे भी तहव्वुर राणा में ज्यादा दिलचस्पी है। मुस्लिम नाम होने की वजह से तहव्वुर राजनीतिक रूप से ज्यादा कीमती है।
प्रधानमंत्री को ऐसा शोभा नहीं देता 
तमिलनाडु में एक साल बाद चुनाव है और भाजपा किसी तरह से वहां पैर रखने की जगह हासिल करने में लगी है। दूसरी ओर राज्य के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं हो सकता है कि प्रधानमंत्री राज्य के दौरे पर जाएंगे तो मुख्यमंत्री का मज़ाक बनाएंगे और उसको चिढ़ाने वाली ओछी बातें कहेंगे? मुख्यमंत्री स्टालिन ने निश्चित ही प्रोटोकॉल तोड़ा और प्रधानमंत्री की अगवानी करने नहीं गए। स्टालिन ने गलती की, लेकिन प्रधानमंत्री ने भी राज्य के लोगों की संवेदनशीलता को समझे बगैर भाषा के सवाल पर स्टालिन को चिढ़ाया। उन्होंने कहा कि तमिल का गौरव बना रहे इसके लिए कम से कम मुख्यमंत्री तमिल में दस्तखत तो करें। सवाल है कि क्या देश के प्रधानमंत्री को ऐसी बात करना शोभा देता है? मोदी खुद भाषाई आधार पर बने एक राज्य से आते हैं, लेकिन क्या गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए गुजराती भाषा का गौरव बढ़ाने के लिए उन्होंने कभी गुजराती में दस्तखत किए? गुजरात में रहते हुए वे हमेशा सिर्फ छह करोड़ गुजरातियों की बात करतेथे, जैसे अभी स्टालिन तमिल लोगों की बात करते हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री ने कहा कि स्टालिन मेडिकल की पढ़ाई तमिल में कराएं। यह बात भी स्टालिन के तमिल प्रेम पर उनको चिढ़ाने के लिए ही कही गई। सारे देश में हिंदी को प्रमुखता दिलाने में लगी मोदी सरकार पहले मेडिकल और इंजीनियरिंग का एक भी बैच हिंदी में पढ़ा कर निकाले, फिर राज्यों को चिढ़ाएं तो बात समझ में आएगी।
कम नहीं होंगे पेट्रोल-डीज़ल के दाम
शायद केंद्र सरकार ने सोच लिया है कि चाहे जो हो जाए, अब पेट्रोल और डीज़ल के दामों कमी नहीं करनी है। सरकार को लगता है कि लोगों की अब महंगे दामों पर पेट्रोल-डीज़ल खरीदने की आदत पड़ गई है और वे कोई शिकायत नहीं कर रहे हैं। इसलिए अगर अभी दो-चार रुपये प्रति लीटर की कटौती हो जाए तो उनको ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन अगर उसके बाद फिर कभी दाम बढ़ाने की ज़रूरत पड़ी तो मुश्किल होगी यानी दाम घटा कर जितना लाभ होगा, उससे ज्यादा नुकसान फिर दाम बढ़ाने पर होगा। इसलिए दाम स्थिर रखने की रणनीति पर काम किया जा रहा है। यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम कम हुए तो उसका लाभ जनता को देने की बजाय सरकार ने खुद लेने का फैसला किया है। गौरतलब है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ नीतियों के कारण दुनिया भर में मंदी की आशंका है और उसी वजह से तेल सहित सभी वस्तुओं के दाम घटे हैं। कच्चा तेल 60 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है। फिर भी दाम कम करने की बजाय सरकार ने दो रुपए उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया और उसका बोझ तेल कंपनियों पर डाल दिया। अब कच्चा तेल महंगा होगा और यदि सरकार उत्पाद शुल्क घटाएगी भी तो फायदा कंपनियों को ही देगी। दूसरी ओर रसोई गैस के सिलेंडर पर 50 रुपए की और सीएनजी की कीमत में एक रुपए प्रति किलो की बढ़ोतरी का बोझ जनता पर डाल दिया गया है।
वादों से मुकरी महाराष्ट्र सरकार
चुनावों में राजनीतिक पार्टियां जो बड़-बड़े वादे कर रही है, सत्ता में आने के बाद उन वादों को पूरा करना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। महाराष्ट्र की भाजपा सरकार इसकी ताज़ा मिसाल है। राज्य की देवेंद्र फडणवीस सरकार एक भी चुनावी वादा पूरा नहीं करने जा रही है और सरकार ने इसका ऐलान भी कर दिया है यानी डंके की चोट पर सरकार ने कहा है कि उसने चुनाव से पहले जो कहा है, उसे पूरा नहीं करेगी। पहला वादा महिलाओं के लिए चल रही लाड़की बहिन योजना के तहत 2100 रुपये हर महीने देने का है। सरकार ने ऐलान कर दिया है कि वह डेढ़ हजार रुपया महीना ही देगी। गौरतलब है कि राज्य की एकनाथ शिंदे सरकार ने महिलाओं को डेढ़ हजार रुपये देना शुरू किया था, लेकिन भाजपा ने चुनाव में इसे बढ़ा कर 2100 रुपये महीना करने का वादा किया था। अब बजट में डेढ़ हजार रुपये के हिसाब से ही प्रावधान किया गया है। इसी तरह किसानों की कज़र् माफी के मसले पर भी सरकार पीछे हट गई। राज्य के वित्त मंत्री अजित पवार ने किसानों से कहा है कि वे कज़र् की राशि चुकता करें और इस इंतज़ार में नहीं रहें कि सरकार कज़र् माफ करने जा रही है। हालांकि बाद में भाजपा, शिव सेना की ओर से सफाई दी गई लेकिन अजित पवार ने किसानों को बहुत स्पष्ट संदेश दे दिया है।

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