राफेल-एम युद्धक विमानों से नौसेना की बढ़ेगी ताकत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की केंद्रीय कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने भारत तथा फ्रांस के बीच सौदे के तहत 64 करोड़ रुपये की लागत से भारतीय नौसेना के लिए 26 राफेल-एम (मैरी टाइम) विमानों की खरीद को अंतिम रूप दे दिया है। इन्हें विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर सुरक्षा के लिए तैनात किया जाएगा। इनमें 22 एक सीट वाले और 4 दो सीट वाले लड़ाकू विमान खरीदे जाएंगे। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के बीच इन विमानों को खासतौर पर भारतीय नौसेना के लिए डिजाइन किया गया है। राफेल विमानों की इस खरीद में फ्रांस सरकार की ओर से नौसेना के लिए हथियार, सिम्युलेटर, कलपुर्जे, सहायक उपकरण, स्पेयर पार्टस और पायलटों को प्रशिक्षण भी दिया जाना शामिल है। फ्रांसीसी एयर स्पेस कंपनी डसॉल्ट एविएशन द्वारा निर्मित इन राफेल-एम विमानों की अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के बाद आपूर्ति 37 से 65 महीनों के भीतर की जाएगी। ये विमान भारतीय नौसेना के परिचालन आवश्यकताओं पर पूरी तरह से खरा उतरा, तब इसकी खरीद को मंजूरी दी गई है।
यह समुद्री लड़ाकू विमान नौसेना की ज़रूरतों के हिसाब से ही विकसित किया गया है। इसमें वे सभी आधुनिकतम समुद्री प्रणालियां संलग्न हैं, जिनसे समुद्र में दुश्मन और उसके समुद्री जल में भीतर चलने वाले उपकरणों का सुराग लगाया जा सकता है। इसमें युद्धपोतों के अलावा पनडुब्बियों का पता लगाने के लिए भी उच्च तकनीकि क्षमता के रडार लगे हुए हैं। ये विमान पुराने विमान मिग-29 का ठोस विकल्प साबित होंगे। ऐसे विमानों की तलाश में भारत लंबे समय से था, क्योंकि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन अपना वर्चस्व बढ़ाने में लगा हुआ है। चीन हिंद महासागर में अंतर्राष्ट्रीय नियमों का लगातार उल्लंघन कर रहा है जबकि फ्रांस की मंशा इस सागर को खुले और समावेशी क्षेत्र के रूप में सुरक्षित बनाए रखना है। एक तरह से इन विमानों के सौदे को चीन की मनमानी के विरुद्ध भारत और फ्रांस की साझा रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है। हालांकि इन विमानों की पहली खेप आने में तीन साल का इंतजार करना होगा, क्योंकि एक साल तक तो तकनीकी और लागत संबंधी औपचारिकताएं ही पूरी होंगी। बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि राफेल की यह खरीद इसलिए उचित है, क्योंकि भारतीय वायुसेना राफेल के रख-रखाव से संबंधित अधोसंरचना तैयार कर चुकी है। यही नौसेना के काम आ जाएगी। इससे धन की बचत होगी।
यह 1912 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भर सकता है। 3700 कि.मी. के व्यास में यह 50,000 फीट ऊंचाई तक उड़ सकता है। चूंकि यह विमान पोत से उड़ान भरते हैं, इसलिए इनमें ऊंची और लंबी छलांग लगाने की क्षमता के लिए ताकतवर इंजन वाला विमान होना चाहिए, क्योंकि पोत पर विमान को छोटे मार्ग से उड़ान भरनी होती है। ये सब खूबियां इस विमान में हैं। दरअसल यह विमान जटिल समुद्री वातावरण में विमान वाहक पोत से संचालन के लिए ही डिजाइन किया गया है। भारतीय नौसेना की परियोजना-75 के तहत नेवल ग्रुप आफ फ्रांस के सहयोग से मझगांव डाक लिमिटेड द्वारा छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों का निर्माण पहले ही किया जा चुका है।