कहानी-शिकायत

गोपी के घर से जब भी फोन आता है एक पल में समाचार पुछकर उसकी भाभी शिकायत की पोटली खोलना शुरू कर देती है जो शनै-शनै पूर्ण रूप से खुलने में उनका आधा पौन घंटा तो लग ही जाता है। 
गोपी मेरी पत्नी है और हम तीन भाईयों में मेरा स्थान सबसे छोटा है। और जहां कार्य करता हूं मेरे मम्मी-पापा तथा कभी-कभी भैया-भाभी साथ आ जाते हैं। अभी मेरा संयुक्त परिवार है। और सुझ-बुझ से चला जाए तो आजीवन अलग होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
जब कि गोपी दो भाइयों के बीच सबसे बड़ी बहन है। इसलिए उसके मम्मी-पापा के तरफ से कुछ गिला-शिकवा सुनने को नहीं मिलती। किन्तु उनकी दोनों भाभियों के तरफ  से समाचार कम शिकायत का पुलिंदा खुलता तो जल्द समाप्त होने का नाम ही लेता है। दोनों भाभियां एक-दूसरे का शिकायत कर मम्मी-पापा पर सारा दोस्त मढ़कर फोन रख देती है। 
जबकि गोपी अपने घर पर फोन करती तो अपने सास, ससुर, ससुर, देवर का कुशल-क्षेम बताते हुए गर्व महसूस करती। क्योंकि उसे मालूम था कि उसके मम्मी-पापा ने जो संस्कार दिए हैं उसको बारीकी से अमल करते हुए चल रही थी। इसलिए गोपी को कोई बोल भी देता तो आशीष समझ, सहन कर अपने काम में लग जाती। उसके इस मृदुल व्यवहार से उसकी बड़ी गोतिनी यानि बड़ी दीदी जो अक्सर शिकायत का पुलिंदा खोलकर किसी को कोसते रहती थी। किन्तु गोपी के व्यवहार ने बड़ी दीदी की शिकायत को आहार समझ उसे विकार समझ उसे झटक देती। 
परिणाम यह हुआ कि बार-बार जो शिगुफा छोड़ती थी कोई प्रभाव दिखाएं वापस लौट आती। धीरे-धीरे उसके कटु शब्दों का प्रभाव कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखा पाते। निष्क्रिय होकर वापस लौट आते थे। शनै-शनै उनके वाण रूपी टावर का पावर निर्मूल होता चला गया।
गोपी के व्यवहार ने उस परिवार को कायाकल्प कर दिया। घर में खुशहाली-ही-खुशहाली थी। जबकि गोपी जानती थी उसके भाभियों को संस्कार देने के बजाय विकार से पालन पोषण किया गया है। इसलिए कुशल-क्षेम से अधिक शिकायत का पुलिंदा बहुत ज्यादा होती थी। दोनों भाभी अपने ननद से एक-दूसरे को समझाने को कहती। किन्तु गोपी उन दोनों के ओछी हरकत समझकर हंस कर टाल देती थी। 
इस बार रक्षाबंधन पर गोपी अपने घर आई थी। माता-पिता के चेहरे पर छाई गम की परछाई देख गोपी सारा माजरा समझ गई थी। वह हमेशा चहकते रहती थी। उसके चहकते चेहरे का राज उसके भाभियों ने जाने की चेष्टा की।
इस पर गोपी ने कहा- ‘यह सब मेरे माता-पिता के संस्कार के बदौलत है। मेरा घर आप जैसे भाभियों के चलते नरक जैसा बन गया है। खुशियों के जगह विषाद की छाया तांडव नृत्य कर रही है। लेकिन मेरे माता-पिता जैसा संस्कार दिए हैं उसी के बदौलत, हमेशा मेरा परिवार हंसते, खिल-खिलाते रहता है। जो बेटा माता-पिता से छल करके अपने कमा, भीतर-भीतर अलग से जमा करने की प्रवृत्ति को जड़ से धराशाई करे नहीं तो सफलता का मार्ग कभी प्रशस्त नहीं होगा। वहां विषाद अपनी जड़ जमा लेगा। अंधेरा अपना साम्राज्य जमाए रहेगा। इसलिए अपने मन के कोने में जो अंधेरा जो डेरा जमाए हुए है उसको नेस्तनाबूद करना होगा। 
 गोपीने कहा- ‘आप दोनों की बातें सुनकर मैं हंस दिया करती थी। यदि इसमें घी डालने का काम करती तो मामला और भड़क सकता था। घर की सुख, समृद्धि, शांति, खुशी, सहिष्णुता, आपसी प्रेम सब तहस-नहस हो जाता। 
गोपी की बातें सुनकर उसके माता-पिता गर्व से तन गए। उसकी दोनों भाभियों पर भी उसके बातों का असर होने लगा था। उन दोनों ने भी संकल्प किया कि उसके मायके से जो शिकायत का पुलिंदा उसे सुनने को मिल रहा है वह भी उसका नेस्तनाबूद करने का मन बना ली। क्योंकि शिकायत करने से फायदा नहीं बल्कि हानि ही होती है।
 
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