ऑस्ट्रेलिया में बिना किसी ठोस योजना के खेला भारत
बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के लिए भारत का ऑस्ट्रेलिया दौरा निराशाजनक रहा। भारत ने पांच टेस्ट मैचों की सीरीज 1-3 से हारी, एक टेस्ट बारिश की वजह से ड्रा रहा, और भारत पहली बार विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (डब्लूटीसी) के फाइनल के लिए क्वालीफाई करने से रह गया। अब लॉर्ड्स में खिताबी मुकाबला (11-15 जून 2025) ऑस्ट्रेलिया बनाम दक्षिण अफ्रीका होगा। 2023-25 के चक्र में ऑस्ट्रेलिया के अभी दो टेस्ट शेष हैं (श्रीलंका के विरुद्ध)। वह फाइनल से उसी सूरत में वंचित रह सकता है जब उसे श्रीलंका के दौरे पर 8 पेनल्टी प्वॉइंट्स मिलें, जोकि लगभग असंभव है।
भारत ने डब्लूटीसी फाइनल तक की अपनी राह उसी समय कठिन कर ली थी, जब वह अपने घरेलू मैदानों पर न्यूज़ीलैंड से 0-3 से अपना सूपड़ा साफ करा बैठा था। रही सही कसर ऑस्ट्रेलिया दौरे पर पूरी हो गई। यह पतन चिंताजनक है, विशेषकर इसलिए कि अभी हाल तक भारत की बेंच स्ट्रेंथ इतनी मज़बूत थी कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एक नहीं बल्कि दो टीमें बना सकता था और ऑस्ट्रेलिया में लगातार दो टेस्ट सीरीज जीतकर उसने अप्रत्याशित कमाल किया था, जिसमें से एक सीरीज तो उसने बिल्कुल नये लड़कों के साथ अजिंके रहाणे की कप्तानी में जीती थी। और अब यह स्थिति रही कि ऑस्ट्रेलिया दौरे पर चोटिल मोहम्मद शमी की जगह लेने के लिए कोई स्तरीय तीसरा तेज़ गेंदबाज़ ही नहीं था।
यह सही है कि टेस्ट मैच गेंदबाज़ जिताते हैं क्योंकि वह 20 विकेट लें तो टीम को कामयाबी मिलती है। गेंदबाज़ भी तभी कमाल दिखा सकते हैं जब बैटर्स बचाव करने के लिए स्कोरबोर्ड पर कुछ रन तो खड़े करें। लेकिन न्यूज़ीलैंड के खिलाफ भी और ऑस्ट्रेलिया में भी भारतीय टीम की नाव को बैटर्स ने डुबोया। कोई चलकर ही नहीं दिया। अगर कोई चला भी तो उसमें भी निरंतरता न थी यानी एक पारी में चल गये और फिर तीन में फ्लॉप। भारत की दयनीय बल्लेबाज़ी का अंदाज़ा दो बातों से लगाया जा सकता है। एक, पांच टेस्ट की दस पारियों में भारत की तरफ से केवल तीन शतक लगे- यशस्वी जायसवाल, विराट कोहली और नितीश कुमार रेड्डी। जायसवाल व कोहली के शतक पर्थ के मैच में आये और वही टेस्ट भारत जीत गया। दूसरा यह कि अगर आपके कप्तान व प्रमुख बैटर (रोहित शर्मा) को ही खराब फॉर्म के चलते प्लेयिंग इलेविन से बाहर बैठना पड़े तो टीम की बल्ले से परफॉरमेंस का अंदाज़ा स्वत: ही लगाया जा सकता था। दरअसल, ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध हमारी टीम की सफलता मुख्यत: इस बात पर निर्भर कर रही थी कि रोहित शर्मा, शुभम गिल व विराट कोहली बड़े-बड़े स्कोर करें। लेकिन हुआ क्या? रोहित ने बीजीटी सीरीज में तीन टेस्ट खेले और 6 पारियों में कुल मिलाकर 31 रन बनाये। शुभम गिल को तीन टेस्ट की पांच पारियों में खेलने का अवसर मिला और उनके स्कोर रहे- 31, 28, 1, 20 व 13। विराट कोहली को 9 पारियां खेलने का अवसर मिला और वह केवल 190 रन ही 23.75 की औसत से बना सके, जिसमें एक शतक भी शामिल है। हालांकि जायसवाल (391 रन), रेड्डी (298 रन), के.एल. राहुल (276 रन) व ऋषभ पंत (255 रन) ने ठीक ठाक रन बनाये, लेकिन इन खिलाड़ियों में भी निरंतरता देखने को नहीं मिली, कभी चांदनी तो कभी एकदम घुप्प अंधेरा। दरअसल, भारतीय टीम की तरफ से अगर उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिए केवल एक नाम लिया जाये तो वह जसप्रीत बुमराह होंगें, जो प्लेयर ऑ़फ द सीरीज़ भी रहे और ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध एक सीरीज में सर्वाधिक विकेट (32) लेने के हरभजन सिंह के रिकॉर्ड की भी उन्होंने बराबरी की। बुमराह की गेंदबाज़ी कितनी शानदार रही, इसका अंदाज़ा रिकी पोंटिंग के इस बयान से लगाया जा सकता है, ‘ऑस्ट्रेलिया के टॉप आर्डर में बहुत से क्वालिटी बैटर्स हैं, लेकिन बुमराह के सामने वह अक्सर बेवकूफ ही नज़र आये।’ हालांकि मोहम्मद सिराज ने भी सीरीज में 20 विकेट लिए, लेकिन उनमें भी निरंतरता का अभाव रहा। वह कभी बहुत अच्छी गेंद करते दिखायी दिए तो कभी औसत से भी खराब। भारत को तीसरे तेज़ गेंदबाज़ के रूप में मोहम्मद शमी की कमी शिद्दत से महसूस हुई। शेष गेंदबाज़ों के बारे में कुछ न लिखा जाये तो बेहतर, हां, प्रसिद्ध कृष्णा को जो एक अवसर मिला उसमें उन्होंने अच्छी गेंदबाज़ी की, लेकिन तब हमारे बैटर्स निराश कर चुके थे।
इसमें शक नहीं है कि हमारे कुछ स्टार्स (पढें रोहित शर्मा, विराट कोहली), जिन्होंने अतीत में देश की बहुत अच्छी सेवा की, अपने हिस्से की क्रिकेट खेल चुके हैं, अब टीम में उनकी जगह बनती नहीं है, उन्हें दूसरे उभरते हुए खिलाड़ियों के लिए जगह खाली कर देनी चाहिए या घरेलू क्रिकेट खेलकर अपने फॉर्म को वापस पाना चाहिए। घरेलू क्रिकेट न खेलने की वजह ही रही कि कोहली बार-बार एक ही तरह से आउट होते रहे। दिग्गज खिलाड़ियों की कमी अपनी जगह, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ऑस्ट्रेलिया में हमारी टीम के पास जीतने की कोई ठोस योजना ही नहीं थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे बिना किसी उद्देश्य के सब रूटीन से गुज़र रहे हैं। मुख्य कोच गौतम गंभीर और खिलाड़ियों के बीच तालमेल का अभाव प्रकट हुआ, जो इस बात से ज़ाहिर है कि ट्रेविस हेड, पैट कमिंस आदि के विरुद्ध शोर्ट बॉल का प्रयोग ही नहीं किया गया और उन्हें बड़े स्कोर करने दिए गये। ऐसे में वही नतीजा रहना था जो सामने आया।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर