किसान आन्दोलन की मौजूदा स्थिति
कृषि उपज के समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी और अन्य कृषि मांगों के लिए शम्भू और खनौरी की सीमाओं पर चल रहे किसान आन्दोलन को लगभग 11 मास हो गए हैं तथा प्रसिद्ध किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के आमरण अनशन को भी 46 दिन का समय हो गया है। उनका स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन बिगड़ता जा रहा है, परन्तु किसान संगठनों की मांगें संयुक्त होने के बावजूद किसानी एकता का मार्ग अभी भी दूर ही दिखाई दे रहा है।
9 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चा ने मोगा में एक विशाल रैली करके जहां संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक)और किसान मज़दूर संघर्ष मोर्चा की ओर से आरम्भ किए किसान आन्दोलन का एक प्रस्ताव पारित करके समर्थन किया था तथा इसके साथ ही आन्दोलन कर रहे उपरोक्त दोनों मोर्चों के नेताओं के साथ बैठक करके उन्हें समर्थन देने और भविष्य के आन्दोलन के लिए साझी रणनीति बनाने का भी फैसला किया था। इस उद्देश्य के लिए 10 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं ने शम्भू और खनौरी की सीमाओं पर जाकर संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मज़दूर संघर्ष मोर्चा के नेताओं के साथ एक बैठक भी की थी और उन्होंने अपनी ओर से इस आन्दोलन को एकजुट होकर आगे बढ़ाने के लिए 9 जनवरी की महा-किसान पंचायत द्वारा पारित किया गया प्रस्ताव भी सौंपा था। इस बैठक के आधार पर दोनों पक्षों की ओर से एक साझी प्रैस कान्फ्रैंस करके आन्दोलन की आगामी रणनीति तैयार करने के लिए 15 जनवरी को पटियाला में बैठक करने की घोषणा भी की गई थी। इस प्रैस कान्फ्रैंस के साथ किसान संगठनों में एकता की सम्भावनाएं बढ़ गई थीं, परन्तु इस प्रैस कान्फ्रैंस के शीघ्र बाद संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मज़दूर संघर्ष मोर्चा के नेताओं की ओर से एक अलग प्रैस कान्फ्रैंस करके संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं को यह कहा गया कि अब बैठकों का समय नहीं है, अपितु संयुक्त किसान मोर्चा को बिना शर्त उनके संघर्ष का समर्थन करना चाहिए तथा जारी इस संघर्ष में भाग लेना चाहिए। इस दूसरी कान्फ्रैंस से एक तरह से किसान संगठनों के मध्य कृषि मांगों संबंधी तालमेल या उनके एकजुट होने की सम्भावनाएं एक बार फिर धूमिल हो गई हैं। यहां यह भी वर्णनीय है कि संयुक्त किसान मोर्चे ने 4 जनवरी को टोहाना (हरियाणा) में एक बड़ी महा-पंचायत करके भी संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) तथा किसान मज़दूर संघर्ष मोर्चा की ओर से शुरू किए संघर्ष का समर्थन किया था। यह भी कहा था कि यदि जगजीत सिंह डल्लेवाल के स्वास्थ्य को कुछ होता है तो इसकी ज़िम्मेदारी केन्द्र सरकार की होगी। इस किसान पंचायत में केन्द्र सरकार को कृषि उपज के समर्थन मूल्य और अन्य किसान मांगों के लिए बातचीत करने के लिए भी कहा गया था। इसी दिन खनौरी सीमा पर भी संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मज़दूर संघर्ष मोर्चा की ओर से साझी महा-पंचायत जगजीत सिंह डल्लेवाल के निमंत्रण पर आयोजित की गई थी।
इस सन्दर्भ में हमारा यह स्पष्ट विचार है कि कृषि उपज के समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी या अन्य कृषि मांगें यदि किसान संगठन केन्द्र से मनवाना चाहते हैं तो उन्हें पूरे देश के किसान संगठनों को साथ लेना पड़ेगा, जिस तरह 2020-21 के, दिल्ली की सीमाओं पर हुये किसान आन्दोलन में देश के अन्य किसान संगठनों को बड़ी सीमा तक साथ लाया गया था। अकेले पंजाब के किसान संगठन यह बड़ी और देश-व्यापी मांग नहीं मनवा सकते। दूसरी बात यह भी है कि जब उपरोक्त मांगों के लिए आन्दोलन पंजाब एवं पंजाब की सीमाओं के भीतर तक सीमित रहता है तथा बार-बार रेल या सड़क यातायात बंद करने के किसान संगठनों द्वारा आपसी मुकाबलेबाज़ी के लिए आह्वान किया जाता है तो व्यापारियों, उद्योगपतियों तथा जन-साधारण का भी भारी नुक्सान होता है। उनमें किसान आन्दोलन के विरुद्ध भावनाएं बढ़ती हैं। इसके साथ जहां किसान आन्दोलन को नुक्सान पहुंचता है, वहीं समूचे तौर पर पंजाब को आर्थिक रूप से तथा अन्य अनेक पक्षों से भी नुक्सान होता है। किसान आन्दोलन के विरोधियों को किसानों को बदनाम करने का अवसर भी मिलता है। किसान संगठनों को भविष्य के किसान आन्दोलन की रूप-रेखा तैयार करते समय इन पहलुओं पर भी विचार करने की ज़रूरत है तथा केन्द्र सरकार से मांगें मनवाने के लिए या उन्हें बातचीत करने के लिए विवश करने हेतु आपसी एकता के साथ-साथ किसान आन्दोलन संबंधी साझी रणनीति बनाने की भी बेहद ज़रूरत है। अब यह देखना बनता है कि आगामी समय में भिन्न-भिन्न किसान संगठन अपनी साझी मांगों की पूर्ति के लिए किस सीमा तक एकजुट होते हैं या किस सीमा तक आपसी तालमेल से साझी रणनीति बनाते हैं।