दिल्ली चुनाव और पंजाब

इस समय दिल्ली तथा पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। दिल्ली में विगत 10 वर्ष से ‘आप’ प्रशासन चला रही है, पंजाब में इसे शासन करते हुए लगभग पौने 3 वर्ष का समय हो चुका है। पंजाब विधानसभा के हुये चुनावों में आम आदमी पार्टी ने लोगों के समक्ष दिल्ली के प्रशासन का मॉडल पेश किया था, परन्तु इस बार राजधानी में हो रहे चुनावों में आम आदमी पार्टी पंजाब का मॉडल दिल्ली वालों के समक्ष रख रही है। तीन वर्षों में हासिल की गईं अपनी उपलब्धियों को गिना कर वह दिल्ली के मतदाताओं को प्रभावित करने के यत्न में है। इसीलिए मंत्रियों और विधायकों के साथ-साथ पार्टी में प्रभाव रखते लोग दिल्ली में जाकर चुनावों के लिए सक्रिय हुए दिखाई देते हैं। 
दिल्ली में मुकाबला त्रिकोणीय है। आम आदमी पार्टी के साथ भाजपा एवं कांग्रेस आदि पार्टियां चुनाव मैदान में उतरी हुई हैं। लोकसभा चुनावों में भाजपा के उम्मीदवार यहां से जीते थे। विधानसभा में भी उसके कुछ सदस्य हैं, जबकि आम आदमी पार्टी का भारी बहुमत विधानसभा में है। कांग्रेस को पिछले दिल्ली चुनावों में एक भी सीट प्राप्त नहीं हुई थी। लोकसभा चुनावों के दौरान ज्यादातर पार्टियों ने एकजुट होकर भाजपा के साथ मुकाबला किया था। चाहे उस समय भी इस ‘इंडिया’ गठबंधन में दरारें आई दिखाई देती थीं परन्तु कई प्रदेशों में एकजुट होकर चुनाव लड़ने का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखाई दिया था। इस कारण भाजपा को अपने दम पर लोकसभा चुनावों में बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था परन्तु उसके बाद हुये भिन्न-भिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों में ‘इंडिया’ गठबंधन का शिराजा बिखर गया था। हरियाणा चुनावों के दौरान भी कांग्रेस और ‘आप’ का समझौता नहीं हुआ था। अब दिल्ली चुनावों में भी कांग्रेस तथा ‘आप’ ये दोनों पार्टियां अपने-अपने तौर पर मैदान में उतरी हुई हैं। चाहे कुछ पार्टियों ने प्रदेशों के चुनावों में एकजुट होने का यत्न भी किया था परन्तु यह बात पूरी तरह सफल नहीं हुई थी। विगत दिवस राष्ट्रीय जनता दल के  तेजस्वी यादव ने भी यह कहा था कि चाहे ‘इंडिया’ गठबंधन का निर्माण भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध हुआ था परन्तु इसे बनाने में ज्यादातर प्रादेशिक पार्टियों ने ही यत्न किया था परन्तु इसके बावजूद राज्यों के चुनावों में इंडिया गठबंधन से संबंधित पार्टियों में तालमेल नहीं बन सका था। दिल्ली के चुनावों में भी चाहे कई प्रादेशिक पार्टियां ‘आप’ एवं कांग्रेस में समझौता चाहती थीं ताकि भाजपा का पूरी शक्ति के साथ मुकाबला किया जा सके परन्तु ऐसा होना सम्भव दिखाई नहीं देता था।
विगत समय में ‘इंडिया’ गठबंधन के नेतृत्व को लेकर भी बड़े विवाद पैदा होते रहे हैं। यहां तक कि  पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बैनर्जी ने भी इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने की बात छेड़ दी थी। अब दिल्ली चुनावों में तो ‘आप’ और कांग्रेसी नेताओं के बीच भी विवाद छिड़ा हुआ है तथा ये एक-दूसरे की आलोचना भी कर रहे हैं। इसी वर्ष बिहार में तथा उससे आगामी वर्ष पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडू, केरल और पुडुचेरी में चुनाव होने जा रहे हैं। यदि ‘इंडिया’ गठबंधन की पार्टियां इन प्रादेशिक चुनावों में अभी की भांति एकजुट न हुईं तो इसका प्रत्यक्ष लाभ भाजपा को मिलेगा। जम्मू-कश्मीर की नैशनल कान्फ्रैंस के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने तो यहां तक कह दिया है कि यदि ‘इंडिया’ गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनावों के लिए बनाया गया था तो अब इसे भंग कर दिया जाना चाहिए। फिलहाल सभी की नज़रें दिल्ली चुनावों पर केन्द्रित हैं, इसलिए पंजाब के ‘आप’ नेता पूरी तरह वहां सक्रिय हो गए हैं। इन चुनावों के परिणामों का कुछ न कुछ प्रभाव पंजाब की राजनीति पर पड़ने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द
 

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