केन्द्र की नीयत

विगत कुछ समय से यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि केन्द्र सरकार एक निर्धारित साज़िश के तहत चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकार को खत्म करने के लिए तत्पर हुई दिखाई देती है। इस पर केन्द्र के कब्ज़े को और मज़बूत करके एक अलग प्रदेश में बदलने के लिए तत्पर हुआ पड़ा है। वह इसको एक भिन्न प्रांत का रूप देना चाहती है। वह धीरे-धीरे वर्ष 1966 में पंजाब के पुनर्गठन एक्ट के समय चंडीगढ़ को अस्थायी तौर पर केन्द्र शासित शहर रखने के दौरान जो शर्तें रखी गई थीं, उन्हें नरम या खत्म करना चाहती है। 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के समय पंजाब के राज्यपाल को इस शहर का मुख्य प्रबन्ध बना कर उसके साथ एक सलाहकार लगाया गया था, जिसके स्थान पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने अपने आप ही मुख्य सचिव का पद स्थापित करने की घोषणा कर दी है। इसलिए केन्द्र ने पंजाब सरकार को पूछने या उससे विचार-विमर्श करने की ज़रूरत भी नहीं समझी।
मुख्य सचिव प्रदेश का होता है। क्या केन्द्र सरकार के दिल में चंडीगढ़ को प्रदेश का दर्जा देकर वहां मुख्यमंत्री का पद स्थापित करने की सोच तो नहीं है? इससे पहले भी केन्द्र ने हरियाणा सरकार को अपनी अलग विधानसभा बनाने के लिए चंडीगढ़ में 10 एकड़ स्थान अलाट करने की योजना बनाई थी, जबकि पंजाब पुनर्गठन एक्ट में यह स्पष्ट किया गया था कि कुछ समय बाद हरियाणा अपनी अलग राजधानी बनाने पर पाबन्द होगा, परन्तु अलग विधानसभा के लिए स्थान तो पहले ही गम्भीर हो चुकी इस समस्या में विवाद का कांटा गाढ़ने के समान है। कई दशक पहले के प्रशासकों ने चंडीगढ़ में अंग्रेज़ी को मुख्य भाषा बनाते हुए पंजाबी भाषा को हर ओर से किनारे लगाने का यत्न किया गया। इसमें केन्द्र सरकारें अब तक बड़ी सीमा तक सफल भी हुई हैं। इसके साथ ही पंजाबी भाषी क्षेत्र और पानी संबंधी लगातार विवाद बना रहा है।
पुनर्गठन एक्ट के समय पंजाब को पूरी तरह काट कर बड़ा भाग हरियाणा को और ज्यादातर क्षेत्र हिमाचल प्रदेश को दे दिया गया था। आज तक बौना हुआ पंजाब प्रत्येक पक्ष से यह सज़ा काट रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश की आज़ादी के समय पंजाब के विभाजन समय हुए भारी नुक्सान के दृष्टिगत प्रदेश को चंडीगढ़ रूपी तोहफा दिया था, ताकि पूर्वी पंजाब के लोग ऐतिहासिक शहर लाहौर के बिछोड़े को भूल सकें। हम इसलिए संबंधित राजनीतिक पार्टियों को भी ज़िम्मेदार समझते हैं, जिन्होंने न तो परिपक्वता और सूझ से पंजाब के मामलों को लड़ा तथा न ही इसके छिन रहे हक की डट कर रक्षा ही की, अपितु प्रभावशाली अकाली राजनीतिज्ञों के कई तरह के लालच के कारण पंजाब के हितों का लगातार क्षरण होता रहा।
सचेत रूप में चंडीगढ़ से पंजाब के अधिकारों और पंजाबीयत की भावना को खत्म करने का यत्न किया जा रहा है तथा इस प्रभाव को लगातार स्थायी किया जा रहा है, जैसे इस क्षेत्र का पंजाब एवं पंजाबीयत के साथ कोई संबंध ही न हो। अब केन्द्र की ओर से चली गई नई चाल की प्रतिक्रिया-स्वरूप आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अकाली दल के नेताओं द्वारा जिस तरह की कड़ी प्रतिक्रिया प्रकट की जा रही है, उससे केन्द्र सरकार को यह सन्देश मिल जाना चाहिए, कि उसकी ऐसी चालों को समझते हुए पंजाब वासी उसकी ऐसी चालों को कभी भी सफल नहीं होने देंगे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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