ट्रूडो के त्याग-पत्र के बाद

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को अंतत: त्याग-पत्र देना ही पड़ा। वह लिबरल पार्टी से संबंध रखते हैं। उनका परिवार विगत लम्बी अवधि से कनाडा की राजनीति में सक्रिय रहा है। उनके पिता पियरे ट्रूडो का नाम कनाडा के अब तक के शानदार प्रधानमंत्रियों में गिना जाता है। वर्ष 2015 को वहां हुये चुनावों में जब ट्रूडो प्रधानमंत्री बने थे तो उनकी उम्र लगभग 44 वर्ष थी। शुरू में उन्हें लोगों का भारी समर्थन मिला। कनाडा के अन्तर्राष्ट्रीय संबंध भी उस समय तक अन्य देशों के साथ शानदार रहे हैं, परन्तु उनकी बेहद उदारपूर्ण नीतियों के दृष्टिगत कनाडा में विश्व भर से बड़ी संख्या में प्रवासी दाखिल हो गए।
 इतनी बड़ी संख्या में लोगों को सम्भालने के लिए देश के पास प्राथमिक ढांचा तैयार नहीं था तथा न ही इस बड़ी सीमा तक रोज़गार के अवसर ही थे, जिस कारण वहां बेरोज़गारी पांव पसारने लगी थी। वहां के समाज में बेचैनी तथा असन्तोष बढ़ने लगा था। वर्ष 2019 में हुये चुनावों में लिबरल पार्टी को बहुमत के लिए सीटें न मिलीं जिस कारण पंजाबी मूल के जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी जिसने तब 24 सीटें जीती थीं, की सहायता लेने के लिए ट्रूडो को विवश होना पड़ा। जगमीत सिंह जहां बड़े सूझवान, चुस्त एवं लोकप्रिय नेता हैें, वहीं वह कनाडा में भारी संख्या में इकट्ठे हुये सिख खाड़कू विचारधारा रखने वालों के भी हमेशा समर्थक रहे हैं। इसी कारण इस समय में वहां भिन्न-भिन्न शहरों तथा स्थान-स्थान पर खालिस्तान की मांग उठती रही है। इसके साथ ही भारत विरोधी अनेक गतिविधियां भी होती रही हैं। भारत सरकार की ओर से इसके प्रति कड़ी प्रतिक्रिया ट्रूडो सरकार को भेजी जाती रही है, परन्तु इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ, अपितु वह खाड़कू विचारधारा वाले संगठनों का पक्ष-पोषण ही करते रहे। आज वहां भारतीय मूल के 20 लाख से अधिक लोग बसे हुए हैं। वहां भारी संख्या में एशियाई तथा अफ्रीकी देशों के लोग भी किसी न किसी तरह शरणार्थियों के रूप में पहुंचे हुये हैं। कनाडा ने अपनी आर्थिकता को बढ़ाने के लिए वहां शैक्षणिक संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के लिए खुला निमंत्रण भी दिया था। ज्यादातर लोग वहां के लिबरल कानून के कारण स्थायी प्रवास हासिल करने में भी सफल हो गए। 
इसी ही समय में लिबरल सरकार पर कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप भी लगने शुरू हो गए तथा साधनों के सीमित होने के कारण वहां महंगाई भी बढ़ती गई, जिसे लेकर 2024 में ट्रूडो सरकार की वित्त मंत्री तथा उप-प्रधानमंत्री क्रिस्टिया फरीलैंड ने त्याग-पत्र दे दिया था। इसी ही समय में उन्होंने अमरीका, रूस एवं चीन को अपने से दूर कर लिया। भारत के साथ पिछले दो वर्ष से पंजाब से गये ़खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर के मारे जाने के बाद उन्होंने भारत सरकार के विरुद्ध यह आरोप लगाना शुरू कर दिया था कि निज्जर की हत्या भारत सरकार की शह पर हुई है। इसके साथ दोनों देशों के राजनीतिक संबंधों में कटुता बेहद बढ़ गई तथा एक दूसरे के दूतावासों से अपने-अपने राजनयिकों को वापिस बुलाया जाने लगा। ऐसी कटुता के दृष्टिगत भारत सरकार ने उनसे ठोस प्रमाण मांगे थे, जिसका वह आज तक भी कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं दे सके।
भारत और कनाडा दोनों का व्यापार उच्च स्तर पर रहा है, जिसकी ब्रेकें लगनी शुरू हो गई हैं। इन बिगड़े संबंधों ने भी कनाडा की आर्थिकता पर बड़ा असर डाला है। वर्ष 2023-24 में इन दोनों देशों का व्यापार 8.4 अरब डालर था और जिसके 20 अरब डालर तक पहुंचने के कयास लगाए जा रहे थे। इन सभी कारणों के दृष्टिगत लिबरल पार्टी के अंदर से ही ट्रूडो के विरुद्ध आवाज़ उठनी शुरू हो गई जो लगातार उनके लिए एक कड़ी परीक्षा थी। 
चाहे अभी कनाडा में अगले चुनाव अक्तूबर, 2025 को होनी निश्चित हैं पर ट्रूडो का हर पक्ष से विरोध इतना बढ़ गया था कि उनको इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालात यहां तक पहुंच चुके थे कि कनाडा के पड़ोसी देश अमरीका के नये चुने गये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कनाडा को अपने देश का 51वां राज्य बनाये जाने के बयान देने शुरू कर दिये थे। अब तक ट्रम्प खुलेआम तीन बार ऐसे दावा कर चुके हैं, जिस पर प्रतिक्रिया देने की बजाये जस्टिन ट्रूडो ने चुप्पी धारण करना ही भला समझा था, जो कनाडा वासियों को हज़म नहीं हुई। ट्रूडो के इस्तीफा देने के बावजूद अभी लिबरल पार्टी के ही सत्ता में बने रहने की संभावना है, पर अब यह देखना बाकी होगा कि भारत के साथ कनाडा के कशीदगी वाले संबंधों में आने वाले समय में कितनी तबदीली आ सकेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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