गेहूं की भरपूर फसल होने की सम्भावना
गेहूं की बिजाई लगभग खत्म है, जहां कुछेक स्थानों पर रहती है, वहां किसान लोहड़ी तक पी.बी.डब्ल्यू.-757 तथा एच.डी.-3298 किस्मों की बिजाई करेंगे। जो रकबा फिर 13 जनवरी के बाद भी बिना बिजाई के रह जाएगा, उस पर किसान सूरजमुखी तथा मक्की आदि की काश्त करेंगे। पीएयू के उप-कुलपति डा. सतबीर सिंह गोसल के अनुसार पंजाब में कृषि विश्वविद्यालय की पी.बी.डब्ल्यू.-826 किस्म की बिजाई सबसे अधिक रकबे पर की गई है। आई.सी.ए.आर.-भारतीय गेहूं एवं जौ के अनुसंधान संस्थान (आई.आई.डब्ल्यू.बी.आर.) की डी.बी.डब्ल्यू.-370, डी.बी.डब्ल्यू.-371, डी.बी.डब्ल्यू.-372 तथा डी.बी.डब्ल्यू.-187 किस्में अधिक रकबे पर काश्त की गई हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) की एच.डी.-3406 तथा एच.डी.-3386 किस्में किसानों की पसंद बनी हैं। पुरानी किस्म एच.डी.-3086 की काश्त भी कुछ रकबे पर की गई है। खुली मंडी में गेहूं का किसान पक्षीय दाम जो 3100 से 3200 रुपये प्रति क्ंिवटल चल रहा है, इससे गेहूं उत्पादन के लिए किसानों में आकर्षण है। वैसे भी केन्द्र के पास गेहूं का स्टाक कम हो गया है, परन्तु सरकारी खरीद तो 2425 रुपये प्रति क्ंिवटल पर ही की जानी है। किसान तो अधिक दाम लेकर खुली मंडी में भी अपनी फसल बेचने के लिए उत्सुक होंगे। इस वर्ष किसानों को गेहूं बेचने में कोई समस्या आने की सम्भावना नहीं। चाहे गेहूं का दाम अंतर्राष्ट्रीय मंडी में कम है, परन्तु इस पर आयात शुल्क लगा कर इसमें आयात कर शामिल करने के बाद लाभदायक नहीं होगा।
आई.आई.डब्ल्यू.बी.आर. के निदेशक डा. रत्न तिवारी के अनुसार पंजाब, हरियाणा सहित भारत में गेहूं की फसल बड़ी आशाजनक है। पिछले दिनों हुई बारिश के बाद जो मौसम ठंडा हो गया, यह गेहूं की फसल के लिए लाभदायक है। अब जो कोहरा (धुंध) पड़ने लग पड़ा है, यह गेहूं की फसल पर घी की भांति काम करेगा। भविष्य में भी यदि मौसम अनुकूल रहा तो गेहूं की भरपूर फसल होने की सम्भावना है। उन खेतों में जहां पराली को आग लगा कर गेहूं की बिजाई नहीं की गई, सुपरसीडर आदि का इस्तेमाल करके बिजाई की गई है, वहां फसल को सुंडी की समस्या आई थी, जो अब ठंड एवं बारिश के बाद मद्धम पड़ गई है। आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में गेहूं के सीनियर ब्रीडर डा. राजबीर यादव गेहूं की बिजाई डूंघी हैरो का इस्तेमाल करके करने की सिफारिश करते हैं। इससे गेहूं की जर्मीनेशन एवं उत्पादन बढ़ता है। वह कहते हैं कि खर्च बचाने के लिए तथा पराली को आग लगाने की प्रथा खत्म करने के लिए ज़ीरो टिलेज तकनीक इस्तेमाल करके यदि गेहूं की काश्त की जाए तो बेहतर होगा। भारत सरकार द्वारा 115 मिलियन टन गेहूं पैदा करने का लक्ष्य रखा गया है और पंजाब सरकार ने 178 लाख टन गेहूं पैदा करने की योजना बनाई है। यदि अप्रैल तक मौसम ठीक रहा तो यह लक्ष्य पूरा कर लेने की ही नहीं, अपितु अधिक पैदावार होने की सम्भावना है। भारत के 19 राज्यों में गेहूं पैदा की जाती है। गेहूं पैदा करने वाले प्रमुख राज्य पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान आदि ही हैं। इन सभी प्रमुख राज्यों में भी गेहूं पूरी तरह स्वस्थ है। सिर्फ उन स्थानों पर ही प्रभावित हुई है, जहां अधिक बारिश होने के कारण बाढ़ आई है। जहां गेहूं धान का फसली चक्र है, जैसे पंजाब में, वहां गुल्ली डंडा काफी मात्रा में हुआ है। इस पर यदि काबू न पाया जाए तो यह 50 प्रतिशत तक भी उत्पादन कम कर सकता है। किसानों का कहना है कि वे गुल्ली डंडे के लिए सिफारिश किए गए अलग-अलग नदीन-नाशकों का छिड़काव कर चुके हैं, परन्तु गुल्ली डंडा काबू में नहीं आया। कई किसानों ने एक से अधिक बार भी नदीन-नाशक इस्तेमाल कर लिए, तो भी गुल्ली डंडा फसल में मौजूद है। इसका रूप गेहूं जैसा होने के कारण खेत मज़दूरों को भी इसे निकालने में दिक्कत महसूस होती है। गेहूं के प्रसिद्ध उत्पादक तथा पीएयू एवं आईएआरआई से सम्मानित धर्मगढ़ (अमलोह) के प्रगतिशील किसान बलबीर सिंह जड़िया अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि यूपीएल जैसी प्रसिद्ध कम्पनियों के नदीन-नाशक जैसे स्परूस, टोटल, झटका तथा शगन 21-11 आदि बड़े प्रभावशाली हैं, परन्तु शगन 21-11 का स्प्रे पी.बी.डब्ल्यू.-550 किस्म के गेहूं पर नहीं करना चाहिए। डा. यादव के अनुसार ज़ीरो टिलेज तकनीक से बोई गई गेहूं में गुल्ली डंडे की समस्या कम हो जाती है। कृषि कर्मन पुरस्कार से सम्मानित बिशनपुर छन्ना (पटियाला) के प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका कहते हैं कि जिन किसानों ने नदीननाशकों के मशीनी स्प्रे करवाये हैं, वहां भी गुल्ली डंडा तथा अन्य नदीन कुछ कम हुए हैं। जो किसान हाथ से स्प्रे करते हैं, उन्हें साफ मौसम में एक समान स्प्रे करना चाहिए। स्प्रे के बाद हलका पानी लगाना चाहिए। अधिक पानी लगाने से नदीननाशक का प्रभाव कम हो जाता है। नदीन-नाशकों में रोधक शक्ति पैदा होने से रोकने के लिए नदीन-नाशकों का प्रत्येक वर्ष अदल-बदल कर इस्तेमाल करने की ज़रूरत है। हलकी ज़मीन में पहली सिंचाई कुछ अगेती तथा भारी ज़मीन में पिछेती करनी चाहिए।