मिटाना होगा आत्महत्याओं का कलंक

भारत में आए दिन आत्महत्या की घटनाएं घटित होती रहती है। यहां हर चार मिनट में एक आत्महत्या की जाती है। यहां शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता होगा जब किसी न किसी इलाके से गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बेरोज़गारी, कज़र् जैसी तमाम आर्थिक तथा अन्य सामाजिक दुश्वारियों से परेशान लोगों के आत्महत्या करने की खबरें न आती हों। आत्महत्या करना सभ्य समाज के माथे पर एक कलंक के समान है। आत्महत्या में व्यक्ति स्वयं को दंडित करते हुए अपनी जान दे देता है। ऐसा घिनोना कार्य कोई व्यक्ति तभी करता है जब वह चारों तरफ से निराश हो जाता है। 
आत्महत्या करने का सबसे बड़ा कारण आर्थिक पक्ष को माना जाता है। उसके बाद मानसिक, पारिवारिक व अन्य बहुत से कारण हो सकते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर होने पर व्यक्ति स्वयं को गिरा हुआ महसूस करता है और अंत में वह आत्महत्या करने जैसा घिनौना कदम उठा लेता है। हम आए दिन अखबारों में पढ़ते हैं कि बहुत से परिवारों ने आर्थिक कर्म से सामूहिक आत्महत्या कर अपने जीवन लीला समाप्त कर ली। बहुत से किसान अपना खेती का कज़र् नहीं चुका पाने के कारण भी बड़ी संख्या में आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने कानून तो बना दिया मगर उसका प्रभाव समाज पर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है। प्रेम में असफल होने पर भी बड़ी संख्या में नवयुवक युवतियां आत्महत्या कर अपने जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं। 
आंकड़ों की दृष्टि से भारत आत्महत्याओं के मामले में दुनिया में सिरमौर बनता जा रहा है। आत्महत्या रोकने की दिशा में अब तक सरकारी स्तर पर जितने भी प्रयास हुए हैं वह सब नाकाम साबित हुए हैं। सरकारी आंकड़ों में जितनी आत्महत्या की संख्या दर्शायी जाती है उससे कई गुना अधिक लोग आत्महत्या कर अपनी जान गंवा रहे हैं। मगर आत्महत्या की घटनाओं को रोकने की कोई सार्थक पहल नहीं हो पाई है। खेती के लिए लिया गया कर्ज़ नहीं चुका पाने के कारण भी बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। मगर सरकारी बैंकों, साहूकारों के कर्ज से परेशान किसान आज भी आत्महत्या कर रहें हैं। उन्हें रोकने की दिशा में भी सरकार ने कोई विशेष पहल नहीं की है। बैंक आज भी किसानों से जबरदस्ती कर्ज वसूली के लिए उनकी जमीने नीलाम कर रहे हैं।
भारत में आत्महत्या एक प्रमुख समस्या है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में 171,000 आत्महत्याएं की गईं थी जो 2021 की तुलना में 4.2 प्रतिशत अधिक थी। प्रति एक लाख की जनसंख्या पर आत्महत्या की दर 2022 में बढ़कर 12.4 हो गई जो आंकड़ो के हिसाब से सर्वोच्च थी। 2022 के दौरान आत्महत्याओं में 2018 की तुलना में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई और भारत में दुनिया में सबसे अधिक आत्महत्याएं हुईं। वैश्विक आत्महत्या मौतों में भारत के आंकड़े 1990 में 25.3 प्रतिशत से बढ़कर 2016 में महिलाओं में 36.6 प्रतिशत और पुरुषों में 18.7 प्रतिशत से बढ़कर 24.3 प्रतिशत हो गये। 2016 में 15.29 वर्ष और 15.39 वर्ष के आयु समूहों में आत्महत्या मृत्यु का सबसे आम कारण था।  एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच सालों में आत्महत्या की घटनाओं का ग्राफ लगातार बढ़ता हुआ दिखता है। 2017 में देश में 1,29,887 आत्महत्याओं की मामले रिकॉर्ड किए गए थे। तब आत्महत्या दर 9.9 प्रतिशत थी। आत्महत्या दर प्रति लाख आबादी पर होने वाली आत्महत्या की घटनाओं को दर्शाता है। 2017 के आंकड़ों के मुताबिक देश में प्रति लाख 9.9 आत्महत्या की घटनाएं दर्ज की गईं थी। 2018 में आत्महत्या दर में इजाफा हुआ और ये बढ़ कर 10.2 पर पहुंच गयी थी। तब देश में 1,34,516 आत्महत्या के मामले दर्ज हुए थे। 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने तो 2020 में ये संख्या बढ़कर 1,53,052 हो गई थी। 2021 में आत्महत्या के 1,64,033 मामले हुये थे।

#मिटाना होगा आत्महत्याओं का कलंक