इस बार दिल्ली किसी के नज़दीक नहीं
दिल्ली विधानसभा चुनाव-2025
पिछले एक पखवाड़े से किसी भी दिन दिल्ली विधानसभा चुनावों की घोषणा का जो इंतजार था, वह इंतजार 7 जनवरी को खत्म हुआ। हाल की किसी भी चुनावी घोषणा से ज्यादा करीब डेढ़ घंटे चली प्रैस कॉन्फ्रैंस में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने हालांकि दिल्ली विधानसभा चुनावों पर सिर्फ 10 मिनट ही बोले, लेकिन वोटर लिस्ट में गड़बड़ी, खास वर्ग के मतदाताओं का सूची से नाम हटाने और ईवीएम विवाद पर करीब 1 घंटा 20 मिनट बोले। बहरहाल जहां तक दिल्ली विधानसभा चुनावों से संबंधित आंकड़ों की बात है तो आगामी 10 से 17 जनवरी 2025 के बीच दिल्ली की 70 विधानसभाओं के लिए नामाकंन की प्रक्रिया शुरु होगी। 20 जनवरी, 2025 को नाम वापस लिया जा सकता है और 5 फरवरी, 2025 को एक ही चरण में सभी सीटों पर मतदान होगा तथा 8 फरवरी, 2025 नतीजे घोषित होंगे, जिसमें जीत के लिए 36 सीटों का बहुमत पाना ज़रूरी होगा। इस बार दिल्ली के 1.55 करोड़ मतदाताओं के लिए 33,330 मतदान केंद्र बनाये जाएंगे। जहां तक मतदाताओं में लिंगवार संख्या का सवाल है तो 13.49 पुरुष और 71 लाख महिला मतदाता हैं। युवा मतदाताओं की संख्या करीब 26 लाख होगी जिनमें करीब 2.08 पहली बार वोट डालेंगे। यह तो हुई दिल्ली विधानसभा चुनावों के विभिन्न तथ्यों की बात।
दरअसल पिछली दो बार दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने भारी बहुमत से जीत हासिल की थी और दोनों बार सबसे बुरा हाल वैसे तो दोनों ही पार्टियों यानी कांग्रेस और भाजपा का रहा है, लेकिन कांग्रेस का तो बिल्कुल सूपड़ा ही साफ होता दिखा है। मसलन साल 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को जहां 70 में से 62 सीटें मिली, वहीं भारतीय जनता पार्टी को 8 और कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। जबकि इसके पहले 2015 में तो आम आदमी पार्टी ने और भी इन दोनों का सूपड़ा साफ किया था। तब भाजपा का विधानसभा चुनाव में नेतृत्व करने वाली किरण बेदी और कांग्रेस के अजय माकन भी बुरी तरह से हार गए थे। आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीती थीं और उसे कुल 54.3 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। भाजपा को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं। हालांकि 2020 के मुकाबले तब उसे सिर्फ 0.8 प्रतिशत ही वोट कम मिले थे। साल 2015 में भाजपा को दिल्ली विधानसभा चुनावों में 32.3 प्रतिशत वोट मिले थे।
इसकी वजह ये है कि 2025 में दिल्ली में मुकाबला तितरफा और कांटे का है। पहली बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी, भाजपा दोनों में से कोई भी बाज़ी मार सकता है। इस कड़े दोहरे मुकाबले की सबसे बड़ी वजह कांग्रेस का मजबूत त्रिकोण है। जानकारों की मानें तो इस बार कांग्रेस हालांकि दिल्ली में सरकार बनाने की स्थिति में तो नहीं आयेगी, लेकिन वह इस कदर नतीजों को प्रभावित करेगी कि ‘आप’ के लिए पिछले दो बार की तरह आसानी से चुनाव जीतना संभव नहीं होगा। इस चुनाव में सक्रिय भूमिका निभा रहे और पिछले दो बार के चुनाव में भी सक्रिय रहे राजनीतिक कार्यकर्ता एवं विश्लेषक रमेश शर्मा कहते हैं, ‘इस बार उम्मीद है कि पिछले दो विधानसभा चुनावों से उलट कांग्रेस कम से कम 10 विधानसभा सीटें जीतेगी साथ ही उसका वोट बैंक भी पिछले दो बार के चुनावों के मुकाबले 5 से 10 प्रतिशत तक ज्यादा होगा। इसकी वजह यह है कि इस बार कांग्रेस जबर्दस्त मजबूती के साथ चुनाव लड़ रही है और यह अपने आपमें रहस्य है कि कांग्रेसी उम्मीदवारों को वित्तीय सहायता कहां से मिल रही है? कहीं-कहीं तो दबी जुबान चर्चा यह भी है कि कांग्रेसी उम्मीदवारों को भाजपा से ही यह मदद मिल रही है ताकि किसी भी तरह से ‘आप’ को सत्ता से बेदखल किया जाए।’
लेकिन अगर ऐसा हुआ तो शायद भाजपा की बजाय ‘आप’ को ज्यादा फायदा होगा। क्योंकि चोरी चुपके कांग्रेसी उम्मीदवार भाजपा से वित्तीय मदद हासिल भी कर लें तो भी वे चुनावों के बाद भाजपा का समर्थन नहीं कर सकते, भले आम आदमी पार्टी को भी समर्थन न करें। ऐसी स्थिति में विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के दौरान वो मतदान से बाहर रहकर ‘आप’ को फायदा पहुंचा सकते हैं। कहने का मतलब यह कि अगर इन चुनावों में भाजपा किसी भी वजह से पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करती, तो भी उसके इए सरकार बनाना मुश्किल होगा। ऐसी स्थिति में सरकार ‘आप’ की ही बनती नज़र आयेगी। लेकिन यह अनुमान इतना ही आसान नहीं है, क्योंकि इस बार सचमुच दिल्ली विधानसभा के चुनाव कांटे के टक्कर के हैं। बहुजन समाजवादी पार्टी हमेशा की तरह इस बार भी सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर रही है, जाहिर है जो भाजपा को फायदा पहुंचायेंगे।
मध्यवर्ग के साथ सिर्फ दिक्कत ये होती है कि उसका एक बड़ा तबका ऐन चुनाव के दिन वोट करने के लिए घर से नहीं निकलता, वर्ना भाजपा की पकड़ दिल्ली के मध्यवर्ग पर जबर्दस्त है और मध्यवर्ग कई वजहों से अरविंद केजरीवाल से नाराज़ है। एक बड़ी वजह तो दिल्ली का लगातार गैस चौंबर बने रहना, उन्हें केजरीवाल के खिलाफ ले जाता है और दूसरी बड़ी बात मध्यवर्ग को लगता है कि केजरीवाल जिस तरह मुफ्त की रेवड़ियां बांट रहे हैं, उससे दिल्ली के इंफ्रास्ट्रक्चर आदि के लिए धन नहीं बचेगा। कुल मिलाकर वह केजरीवाल की लोक लुभावन नीतियों के विरोध में है और अगर मध्यवर्गीय मतदाता तय कर लें तो दिल्ली में उसी की सरकार बनेगी, जिसे वो चाहेंगे। क्योंकि दिल्ली में करीब 50 से 55 लाख मध्यवर्गीय मतदाता हैं और इनमें सबसे ज्यादा पकड़ भाजपा की ही है। भाजपा का अपने पारंपरिक पंजाबी वोटर पर तो कब्ज़ा है ही, चुनाव समीकरणों पर बारीकी से नज़र रखने वाले रमेश शर्मा के मुताबिक, ‘दिल्ली के जाट गुर्जर मतदाताओं,साथ ही जो दिल्ली के मूल निवासी हैं, इन सब पर समग्रता में भाजपा की अच्छी पकड़ है।’ कुल मिलाकर ‘आप’ व भाजपा दोनों के पक्ष में जीत के कई तर्क मौजूद हैं तो हार की कई वजहें भी। इसलिए दिल्ली का मुकाबला इस बार बेहद कड़ा है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर