शार्टकट और कॉपी-पेस्ट तक ही सीमित रह गई है आज की पीढ़ी

आज की पीढ़ी शार्टकट और कॉपी पेस्ट से आगे नहीं निकल पा रही है। इंटरनेट, मोबाइल, कम्प्यूटर और सोशल मीडिया ने नई पीढ़ी को सीमित दायरे में कैद करके रख दिया है। नई पीढ़ी में से अधिकांश युवा कुछ नया करने, नया सोचने, नई दिशा खोजने के स्थान पर गूगल या इसी तरह के खोजी एप के सहारे आगे बढ़ने लगी है। तकनीक इस तरह से सोच और समझ को सीमित दायरें में लाने का काम करेगी यह तो सोचा ही नहीं था। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई) तो इससे भी एक कदम आगे निकल गई है। इसमें कोई दो राय नहीं कि तकनीक सहायक की भूमिका में हो तो वह आगे बढ़ने में सहायक हो सकती है, परन्तु तकनीक का जिस तरह से उपयोग होने लगा है वह ज्ञान और समझ को थुथला करने में ही सहायक सिद्ध हो रही है। यही कारण है कि आज की पीढ़ी से कोई भी सवाल किया जाये तो, वह उसका उत्तर गूगल या इसी तरह के प्लेटफार्म का सहारा लेकर तत्काल दे देगी। हालांकि सूचनाओं का संजाल जिस तरह से इंटरनेट प्लेटफार्म पर उपलब्ध है। निश्चित रूप से वह आगे बढ़ाने में सहायक है, परन्तु आज की पीढ़ी उसी तक सीमित रहने में विश्वास करने लगी है। जिस तरह से एक समय परीक्षाएं पास करने के लिए वन डे सीरिज का दौर चला था, ठीक उसी तरह से किसी भी समस्या का हल, किसी भी जानकारी को प्राप्त करने के लिए इंटरनेट को खंगालना आम होता जा रहा है। चंद मिनटों में एक नहीं अनेक लिंक मिल जाते हैं और कई बार तो समस्या यहां तक हो जाती है कि इसमें कौन-सा लिंक अधिक सटीक है। दरअसल इस तरह की जानकारी से तर्क क्षमता के विकास या विश्लेषक की भूमिका नगन्य हो जाती है। समझ में यह भी आ जाता है कि नेट पर इतनी जानकारी है तो फिर किताबों के पन्ने पलटने से क्या लाभ? इसका एक दुष्परिणाम किताबों से दूरी को लेकर साफ -साफ  देखा जा सकता है। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि इंटरनेट, कम्प्यूटर और मोबाइल ने आज की पीढ़ी को शार्टकट की ज़िंदगी जीना सिखा दिया है। आज का युवा कट पेस्ट के सहारे अपना काम चला रहा है। कोई जानकारी लेनी है तो सीधा गूगल की शरण में जाता है और एक ही प्रश्न से संबंधित सामग्री के अनेक स्रोत देख कर वह अपनी सुविधा के अनुसार, जो उसे सही लगता है कट किया और उसके बाद पेस्ट करके अपना काम पूरा कर लेता है। यह सब चिंतनीय इसलिए है कि सालाना माड्यूलर सर्वेक्षण 2024 में यह सामने आया है कि डेटा, सूचना, दस्तावेजों आदि के लिए इंटरनेट की शरण में चले जाते हैं और वहां पर जो मिलता है उसी को पेस्ट कर इतिश्री कर लिया जाता है। 
सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश में उत्तराखण्ड के युवा सबसे आगे हैं और उत्तराखण्ड के करीब 66 फीसदी युवा कॉपी पेस्ट के सहारे काम चला रहे हैं। उत्तराखण्ड के बाद बिहार के युवा हैं और बिहार के 60 प्रतिशत युवा कट पेस्ट के सहारे ही काम चला रहे हैं। उत्तर प्रदेष के युवाओं के हालात भी कमोबेस यही है और उत्तर प्रदेश के 56 फीसदी युवा कट पेस्ट का सहारा ले रहे हैं। कमोबेस यह हालात भारत ही नहीं आज की तारीख में दुनिया के अधिकांश देशों में आम होती जा रही है। तकनीक के उपयोग में कोई बुराई नहीं हैं अपितु तकनीक के उपयोग में आगे रहना समय की मांग होती है। पर बौद्धिक विकास या तार्किकता की पहली शर्त ही अध्ययन मनन होती है। सबसे बड़ी समस्या यही है कि आज का युवा पढ़ने-पढ़ाने से दूर होता जा रहा है। गूगल के सहारे काम चलाया जा रहा है। सबसे अधिक चिंतनीय यह है कि ऐसे में युवाओं के समग्र बौद्धिक विकास की बात करना बेमानी हो जाता है। जब एक क्लिक में सामग्री मिल जाती है तो फिर पढ़ने-पढ़ाने की ज़हमत कौन उठाएं। कोरोना के कारण ऑनालाइन कक्षाओं का जो चलन चला था उसके नकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। रही सही कसर सोशयल मीडिया ने पूरी कर दी है। सोशल मीडिया पर परोसी जाने वाली सामग्री में कितना सही है और क्या सही है, यह तय करना जोखिम भरा काम है। परिवारों के हालात यह होते जा रहे हैं कि किताब दूर होती जा रही है और क्या बच्चे और क्या बड़े सब मोबाइल पर लगे रहते हैं और आपसी संवाद करने की भी फुर्सत नहीं होती। एकाकीपन बढ़ता जा रहा है। सामाजिकता तो लगभग समाप्त ही होती जा रही है। सोशल मीडिया में शार्टकट मैसेजों का चलन इस कदर बढ़ गया है कि कई बार तो शार्टकट मैसेज को डिकोड करने में ही पसीने आ जाते हैं। अब 2025 की ही बात ले तो सोशयल मीडिया पर डब्ल्यूटीएफ का चलन जोरों से चल रहा है। डब्ल्यूटीएफ का एक तो सीधा साधा अर्थ है क्या मज़ाक है परन्तु दूसरी और नए साल के आरंभ होने को लेकर डब्ल्यूटीएफ का धडल्ले से प्रयोग किया जा रहा है। एक समय था जब बच्चों का संचार कौशल (कम्यूनिकेशन स्किल) विकसित किया जाता था। अब सोशयल मीडिया के इस जमाने में संचार कौशल तो दूर की बात शार्टकट के आधार पर ही काम चलाया जा रहा है। खास यह कि सामने वाले से यह अपेक्षा की जाती है कि उसे सब कुछ मालूम है। 
आने वाली पीढ़ी को गम्भीर और चिंतनशील बनाना है तो उसे कट पेस्ट के दुनिया से बाहर लाना ही होगा। कहा जाता है कि जितना अधिक अध्ययन, मनन होता है व्यक्ति में उतना ही निखार आता है। जब इंटरनेट की दुनिया में जो जानकारियां हैं, उन्हीं का उपयोग किया जाता है तो ऐसी हालत में चिंतन, मनन, तक-वितर्क, वैचारिक परिपक्वता, शोध आदि की कल्पना करना अपने-आप में गलत होगा। ऐसे में तकनीक का उपयोग सहजता के लिए किया जाना तो उचित है, परन्तु तकनीक के नाम पर केवल शार्ट कट या कॉपी पेस्ट तक सीमित होना अपने आप में गंभीर चिंता का कारण बन जाता है। शिक्षा विदों को इस पर गंभीर चिंतन करना चाहिए। 

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