अमरीका के राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर तथा हरियाणा का गांव कार्टरपुरी 

सौ वर्ष की आयु में चल बसे अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर के निधन से गुड़गांव ज़िले में पड़ता गांव कार्टरपुरी ़खबरों में आ गया है। इस गांव का 1978 से पहले का नाम दौलतपुर नसीराबाद था, जहां 1966 में जिम्मी कार्टर की मां पीसकोर वालंटियर के रूप में कार्य करके गई थीं। अमरीका का राष्ट्रपति बना उनका बेटा 12 वर्ष बाद 3 जनवरी, 1978 को इस गांव में अपनी मां के पदचिन्हों पर चलने आया था। मां के दौरे समय  वह अकेली थीं, परन्तु बेटे के दौरे समय उनके साथ भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई तथा हरियाणा के मुख्यमंत्री देवी लाल एवं उनके मंत्रिमंडल के सदस्य भी थे। यह भी कि जिम्मी कार्टर के उस दौरे के समय 1978 का आरम्भ था और 2025 का आरम्भ उन्हें इस धरती से ले गया है।
गांव वालों के बताने के अनुसार देसाई साहिब के आधे बोल पर गांववासियों ने इस गांव का नाम दौलतपुर नसीराबाद के स्थान पर कार्टरपुरी करना मान लिया था। यह सुन कर जिम्मी कार्टर ने भी गांव के लिए कुछ न कुछ किये जाने की सलाह मांगी तो देसाई साहिब ने उन्हें यह कह कर रोक दिया था कि हम स्वयं ही करेंगे जो भी हो सकता है। अब इस गांव के निवासियों का कहना है कि गांव का नाम बदलने के बिना गांव के लिए अन्य किसी ने कुछ नहीं किया। न ही प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या किसी अन्य ने। उनके पास यदि कोई अमानत है तो सिर्फ अमरीका लौटने के बाद जिम्मी कार्टर द्वारा लिखी हुई शुक्राने की चिट्ठी है जो उन्होंने फ्रेम करवा कर संभाल रखी है।
यह सबब की बात है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन भी इन्हीं दिनों में ही हुआ होने के कारण उनका पैतृक गांव गाह (जा पाकिस्तान के ज़िला चकवाल के अधीन आता है) भी समाचारों में आ गया? यदि अंतर है तो यह कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के कारण पाकिस्तान सरकार ने गाह गांव को जाने वाली सड़क भी पक्की करवा दी है और वहां के प्राइमरी स्कूल को मिडल स्कूल घोषित करके वहां लड़कियों की पढ़ाई को स्वीकृति दे दी है। 
गाह गांव के निवासियों को यदि कोई इच्छा थी तो सिर्फ इतनी कि वे इस गांव में जन्मे मनमोहन सिंह को इस गांव में आए हुए देखने चाहते थे ताकि उन्हें कोई तोहफा दे सकते, परन्तु मनमोहन सिंह  समय नहीं निकाल सके। गाह गांव के निवासियों ने तो उन्हें संसद भवन में भी व्हीलचेयर पर उपस्थित होते ही देखा है। मौजूदा सरकार की घोषणाओं से प्रतीत होता है कि उनकी समुचित यादगार बनाने के लिए जगह तलाश की जा रही है। यह समय बताएगा कि इन घोषणाओं को कैसा बूर पड़ता है।
‘देश सेवक’ वर्षगांठ को याद करते हुए
इन दिनों ‘देश सेवक’ समाचार पत्र की 29वीं वर्षगांठ ने मुझे याद करवा दिया है कि मैंने इतने वर्ष और बूढ़ा हो गया हूं। इससे भी तीन माह अधिक, क्योंकि मैं तथा मेरे चुनिंदा साथी बीत चुके वर्ष के अक्तूबर माह में ही भकना भवन में आकर इसकी योजनाबंदी करने लग पड़े थे। झूठ-मूठ का अ़खबार प्रकाशित करके यह देखने के लिए कि उसका रूप कैसा है और इसमें दी गई साम्रगी का रंग-ढंग प्रगतिशील नैतिक मूल्यों को समर्पित हुआ है या नहीं। यदि नहीं तो क्या करने की ज़रूरत हैं। सम्पादकीय की ज़िम्मेदारी में किसी किस्म की आंच को रोकने के लिए कामरेड हरकंवल सिंह तथा गुरदर्शन बीका मुझे सहयोग देते थे। कार्य तो कठिन था, परन्तु मज़ा आ रहा था। ज़्यादा इसलिए कि वे दिन एक-दूसरे के साथ मित्रता निभाने वाले थे।
 ‘देश सेवक’ की प्रत्येक वर्षगांठ मुझे अपनी उम्र का एहसास तो करवाती हैं, परन्तु ‘निग्गर सोच, निडर आवाज़’ वाला संदेश भी भूलने नहीं देती।  
‘ईश्वर अल्लाह तेरे नाम’ बोलें और क्षमा मांगें
बिहार में अटल जयंती समारोह के दौरान पटना के बापू आडिटोरियम में देवी नामक भोजपुरी गायिका ने ‘ईश्वर अल्लाह तेरे नाम’ गाया तो ऐसा हंगामा हुआ कि गायिका को गीत बंद करके माफी मांगनी पड़ी। यहां तक कि इस गायिका ने ‘छटी मइया आई न द्वारिया’ गाकर जान छुड़वाई  और समारोह को अलविदा कह कर चली गईं।
जब लालू प्रसाद यादव को पता चला कि पूर्व मंत्री अश्विनी चौबे ने इस गायिका को पीछे करके जय श्रीराम के नारे लगाए हैं तो उन्होंने व्यंग्य किया था कि इन लोगों के मन में स्त्री जाति का अपमान भरा पड़ा है, जो ‘जय सीता राम’ के स्थान पर ‘जय श्रीराम’ पर उतर आए हैं। भारत देश किधर जा रहा है? परमात्मा भला करे।
अंतिका
(स.स. मीशा)
तैनूं भावें मेरा चेहरा याद
 नहीं है हाले वी,
मेरे पैर पछाणदीयां ने 
सड़कां तेरे शहर दीयां।
किद्दां भटकदीयां ने आ के, 
अखीं इक दिन तक्क जा तूं,
तेरे मुख तों हट के नज़रां 
हुण किधरे ना ठहिरदीयां।

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