नेता जनता में से ही आते हैं!
तनसुख हमेशा की तरह अपनी मूंज की खाट पर बैठा अखबार को पलट रहा था। अखबार में समाचार रोजमर्रा की तरह थे कि फलां संगठन ने विधानसभा के सामने धरना दिया, या फलां संगठन के आंदोलनकारियों के उग्र प्रदर्शन के कारण पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा, या विपक्ष के नेता ने सत्ता पक्ष के नेता पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगाये या यहां तक कि एक-दूसरे ने ऐसे शब्दों का भी प्रयोग किया जो उन्हें किसी भी प्रकार से शोभा नहीं देता था।
तनसुख की समझ में यह नहीं आ रहा था कि ऊंचाई पर होने के बाद आदमी नीचे गिरने की क्यों सोचता है! खैर, तनसुख का दिमाग इतने बादाम या मूंगफली भी नहीं खाये हुए था कि इस हाई प्रोफाईल ड्रामे के बारे में विचार कर सकता। तभी चितवन ने घर में कदम रखा। तनसुख को खामोश देखकर चितवन ने कहा ‘क्या बात है तनसुख, घर में तो खैरियत है!’ तनसुख बोला ‘चचा घर, घर ही नहीं रह पा रहा है। घर के जो मुखिया कहलाने की हुंकार भर रहे है, उनके सार्वजनिक ब्यान देखिये कि कहते हुए ही शर्म महसूस हो रही है। क्या इनके पास ऐसा कुछ बताने के लिये ही नहीं है कि उन्होंने जन कल्याण के लिये ऐसा काम किया था और ये अब इतना ही कर पाये है, या हमारे पास इतनी जन कल्याणकारी योजनाएं है जिनके पूरा होने पर जनता को इतना लाभ मिलेगा।
चितवन खिं खिं करके हंसा फिर कुछ देर बाद बोला ‘तनसुख लगता है तुम इस धरती के बाशिंदे नहीं हो! ये नेता जनता की ही भाषा बोल रहे है, ये अपनी तरफ से कुछ भी नहीं कह रहे। जो जनता को पसंद है वही कर रहे। जनता क्यों नहीं इनसे यह पूछती कि तुमने अब तक क्या किया है और तुम्हारी भावी योजना क्या है? यह जनता को पूछना चाहिये। वो क्यों इनके इस प्रकार के बेतुके भाषणों पर खिल खिलाकर हंसती है और क्यों इनका उत्साह बढाने के लिये तालियां बजाकर नारे लगाती है। तनसुख जिस दिन जनता इनसे ऐसे सवाल करने लगेगी, उस दिन से ये नेता भी ऐसे बयानों के साथ उपस्थित नहीं होंगे और ना हीं पार्टियां ऐसे अधकचरे नेताओं को आगे करेगी। जब तक जनता प्रबुद्ध नहीं होगी और सकारात्मक सोच के साथ प्रश्न लेकर खड़ी नहीं होगी, तब तक नेताओं से प्रबुद्धता की अपेक्षा करना गलत है।
जनता को चाहिये कि इन नेताओं से इनके काम काज के बारे में बोलने के लिये कहे पर जब ये आते है तो जनता इनकी ही सुनती है। इनसे कुछ पूछती नहीं। यदि कोई प्रश्न पूछता है तो वह मीडिया है जो इनका नमक खा कर चलता है। इस कारण से तनसुख पहले तुम खुद इतने सक्षम तो बनों जिससे ये नेता जनता के मध्य में जाने के लिये घर से चलने से पहले पूरी तैयारी के साथ आयें। अब ये तैयारी के साथ इतने ही आते है कि कैसे जनता से ताली बजवाई जावे। और ये कुछ ना कुछ ऐसी बात कहते है जिस तक जनता की पहुंच नहीं हो सकती और उसे जनता के मध्य में छोड़कर चल देते है। जब तक जनता उसके बारे में विचार करती है तब तक बहुत सा समय निकल जाता है।
चितवन उठा और तनसुख से बोला ‘नेता जनता में से ही आते है। समझे! और बाहर चला गया। तनसुख ने उसे जाते हुए देखा। तनसुख विचार करने लगा कि उठना तो जनता को ही होगा पर ये उठने देंगे तब ना, क्योंकि इनकी सुविधा भोगी योजनाओं के चलते हर आदमी हाथ फैलाए खड़ा है। उसको बिना काम किये ही सुख सुविधा चाहिये। वह कैसे उठेगा। किस बात के प्रश्न खड़े करेगा। प्रश्न तो वह तब खड़े करेगा जब उसमें स्वयं की कर्मठता और लक्ष्य को प्राप्त करने का आत्म विश्वास होगा। जीवन के प्रति, समाज के प्रति, देश के प्रति श्रेष्ठता का जज्बा होगा।