शतरंज की बिसात पर भारतीय मूल के किशोरों का जलवा

श्रेयस रॉयल, अभिमन्यु मिश्रा और बोधना शिवनंदन में क्या बात साझा है? ये तीनों ही अपने अपने जीवन के अभी 16 वें बसंत में नहीं पहुंचें हैं, लेकिन शतरंज के ग्रैंडमास्टर हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुकाबला कर रहे हैं। तीनों ही भारतीय मूल के हैं, लेकिन भारत के लिए नहीं खेलते हैं बल्कि अन्य देशों जैसे अमरीका, इंग्लैंड, सिंगापुर का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनकी प्रतिभा को देखकर ब्रिटेन के अनुभवी शतरंज खिलाड़ी माल्कम पेन की बात याद आती है जो उन्होंने जुलाई 2022 में तमिलनाडु में कुछ बच्चों से मज़ाक करते हुए कही थी- ‘एक दिन हमारे भारतीय तुम्हारे भारतीयों से बेहतर हो जायेंगे।’ माल्कम की मौखिक शह-मात (चेकमेट) सही भविष्यवाणी साबित होती हुई प्रतीत हो रही है।
श्रेयस रॉयल उर्फ शरेज़ का जन्म बेंग्लुरु में हुआ था, लेकिन उनकी परवरिश वूलविच, ब्रिटेन में हुई है और वह वहीं रहते हैं। श्रेयस ग्रैंडमास्टर बनने वाले सबसे कम आयु के ब्रिटिशर हैं, उन्होंने यह सफलता मात्र 15 वर्ष 6 माह व 24 दिन की आयु में हासिल की। कुछ दिन पहले लंदन में उन्होंने 18 वर्षीय भारतीय ग्रैंडमास्टर डी. गुकेश के साथ अपने मैच को ड्रा किया। यह बड़ी बात है क्योंकि गुकेश ने कैंडिडेट्स जीतकर क्लासिक फॉर्मेट में विश्व चैंपियन डिंग लिरेन को चुनौती देने का अधिकार प्राप्त किया है। विश्व चैंपियनशिप के मैच कुछ ही सप्ताह में सिंगापुर में खेले जायेंगे, जिसका अर्थ है कि गुकेश विश्व चैंपियन बनने के मुहाने पर खड़े हुए हैं।
बोधना शिवनंदन तो मात्र 9 साल की बच्ची हैं, लेकिन जब वह बूस्टर सीट पर शतरंज खेलने के लिए बैठती हैं तो उनसे आयु में दोगुनी, तीन गुणा उम्र के खिलाड़ियों में भी भय व्याप्त हो जाता है। अनेक अनुभवी खिलाड़ियों ने ऑन रिकॉर्ड स्वीकार किया है कि वह बोधना के सामने खेलने से डरती हैं। बार्बी डॉल की शौकीन बोधना सितम्बर में हंगरी में होने जा रहे महिला चेस ओलम्पियाड में इंग्लैंड की तरफ से खेलेंगी, जहां उनकी टीम की अन्य सदस्यों की आयु 23 से 44 वर्षों के बीच में है। बात सिर्फ श्रेयस व बोधना तक सीमित नहीं है। भारतीय मूल के अनेक बच्चे हैं, जो शतरंज संसार में अपनी प्रतिभा से विभिन्न देशों के लिए तहलका मचाये हुए हैं। इनमें से कुछ तो इतनी कम आयु के हैं कि किशोर गुकेश को भी ‘सर’ कहते हैं। 
जून 2021 में जब कोविड की दूसरी लहर चल रही थी तो न्यू जर्सी में रहने वाले अभिमन्यु मिश्रा ने हंगरी में प्यादे के लिए अपना घोड़ा कुर्बान करके इतिहास रचा कि वह विश्व में सबसे कम आयु के ग्रैंडमास्टर बने, जबकि इससे मात्र दो साल पहले उन्होंने 17 दिन से प्रज्ञानंद का रिकॉर्ड तोड़ा था विश्व में सबसे कम आयु में इंटरनेशनल मास्टर बनने का। सिंगापुर में रहने वाले 8 वर्ष के अश्वथ कौशिक अपने साथी खिलाड़ियों को सलाह देते हैं कि ‘कभी हार मत मानो, अपने मोहरों को आगे बढ़ाते रहो और प्रतिद्वंदी से चूक हो, तो उसका लाभ उठाओ’। इस साल के शुरू में कौशिक ने स्विट्ज़रलैंड में बर्गडोरफर स्टडथौस ओपन में पोलैंड के मंझे हुए ग्रैंडमास्टर को पराजित किया था। हाल ही में चंडीगढ़ में जन्मे सिद्धार्थ जगदीश मात्र 17 वर्ष की आयु में सिंगापुर के सबसे कम आयु के ग्रैंडमास्टर बने हैं। 
अमरीका की शतरंज फेडरेशन के-12 ग्रेड चैंपियनशिप्स का भी आयोजन कराती है। इसकी सूची में दक्षिण एशिया मूल के खिलाड़ी इतनी अधिक संख्या में हैं कि फेडरेशन के वरिष्ठ निदेशक (स्ट्रेटेजिक कम्युनिकेशन) डेनियल लुकास का कहना है कि शतरंज नया नेशनल स्पेलिंग बी (जिसमें भारतीय मूल के छात्र छाये रहते हैं) बन सकता है। ब्रिटेन में भी स्थिति इससे अलग नहीं है। इंग्लिश चेस फेडरेशन के निदेशक माल्कम पेन कहते हैं, ‘दक्षिण एशिया के बच्चे उन अकादमिक व ़गैर अकादमिक गतिविधियों को महत्व देते हैं जो एकाग्रता व अनुशासन को प्रोत्साहित करती हैं।’ वह बोधना के पिता शिवनंदन वेलायुथन (जो 2007 में तिरुचिरापल्ली से लंदन की बाहरी बस्ती में आकर बसे) को ‘लगभग परफेक्ट चेस पैरेंट’ कहते हैं। 
हालांकि शतरंज में ग्लोबल आकर्षण ‘क्वीन्स गैम्बिट’ ड्रामा सीरीज व 2020 की लॉकडाउन बोरियत के कारण अधिक बढ़ा है, लेकिन बोधना की शतरंज में दिलचस्पी मात्र इत्तेफाक से हुई। उनके पिता बताते हैं, ‘कोविड के दौरान हमारे एक दोस्त वापस भारत लौट रहे थे कि उन्होंने किताबों भरा एक बैग और एक मैग्नेटिक चेस बोर्ड हमें दे दिया। बोधना मोहरों को खिलौने बनाकर खेलती थी। मैंने उसे यू-ट्यूब वीडियोज की मदद से शतरंज की बुनियादी बातें बतायीं।’ बोधना कुछ ही समय में इंग्लैंड की सबसे कम आयु की महिला इंटरनेशनल मास्टर बन गई। इन अप्रवासियों की शतरंज में दिलचस्पी संभवत: इस कारण से भी बढ़ी है कि पिछले 20 वर्षों के दौरान भारत में अपने ग्रैंडमास्टरों की संख्या 15 से बढ़कर 85 हो गई है। फिर पैरेंट्स ने अपने बच्चों को गैजेट्स से दूर रखने के लिए भी शतरंज का इस्तेमाल किया। अभिमन्यु को मात्र 2 वर्ष की आयु में उनके पिता हेमंत मिश्रा ने शतरंज दिया था और 12 साल का होने पर वह विश्व में सबसे कम आयु में ग्रैंडमास्टर बन गये। इन बच्चों को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए इनके पैरेंट्स ने समय व पैसे की कुर्बानी दी है और अनेक बाधाओं के विरुद्ध भी संघर्ष किया है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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