ओम पर्वत पर प्रकृति का ‘ॐ’ लिखा हुआ लुप्त

इसे पर्यटन संबंधी नीतियों को बढ़ावा देने की विडम्बना ही कहा जाएगा कि दुर्लभ कैलाश मानसरोवर जाने वाले मार्ग पर जो ओम पर्वत मिलता है, उस पर प्रकृति ने अपनी कलम से ‘ॐ’ बर्फ की स्याही से लिखा हुआ था। अब बढ़ते पर्यटन और फैलते प्रदूषण का नतीजा निकला है कि इस ओम से बर्फ गायब हो गई है। बर्फ-विहीन पर्वत काला दिखाई दे रहा है। इससे देशभर के पर्यावरण प्रेमी और वैज्ञानिक चिंतित हैं। यह अनूठा पर्वत विश्व प्रसिद्ध है, क्योंकि यह बहुअक्षरों का भान कराने वाला मात्र एक शब्द का अक्षर प्रकृति का सबसे पहला देवनागरी में लिखा हुआ शब्दाक्षर है। यह इसलिए भी विलक्षण है, क्योंकि यहां विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक संस्था नासा ने तीव्र आवृत्ति वाले ध्वनि रिकॉर्ड करने वाले यंत्रों से यहां गूंजने वाली ध्वनि को रिकॉर्ड करके चलाया तो उसका उच्चारण स्पष्ट रूप से ‘ॐ’ उच्चारित करते हुए सुनाई देता है। इसे गूगल पर ‘साउंड ऑफ सन’ टंकित करके आसानी से सुना जा सकता है।
पर्यावरणविद् और स्थानीय लोग हिमालयी तापमान में वृद्धि और उच्च हिमालयी क्षेत्र में अंधाधुंध चल रहे कथित विकास कार्यों को इस बर्फ के पिघलने का दोष दे रहे हैं। हम निरंतर देख रहे है कि केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमनोत्री और गंगोत्री जाने वाले रास्तों के पहाड़ों में लगातार भू-स्खलन हो रहा हैं। पिछले दिनों पिथौरागढ़ ज़िले के गांव गुंजी की मूल निवासी उर्मिला सनवाल गुंज्याल अपने गांव 16 अगस्त को ओम पर्वत के दर्शन के लिए गई थीं, किंतु जब वह ओम पर्वत पर पहुंचीं तो हैरान रह गईं। पर्वत पर उत्कीर्ण ‘ॐ’ से बर्फ लुप्त थी। उन्होंने इस अवस्था में आए ओम् पर्वत के चित्र भी लिए। बाद में जब इसकी जानकारी पर्यावरण वैज्ञानिकों को दी तो सब आश्चर्यचकित रह गए। कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ ज़िले के धारचूला तहसील की व्यास घाटी में स्थित ओम् पर्वत 5,900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग पर स्थित नाभिढंग से ओम पर्वत के दर्शन होते हैं। इस जानकारी पर चिंता जताते हुए भारतीय पर्यावरण संस्थान उत्तराखंड के राष्ट्रीय अध्यक्ष और गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के पूर्व विभागाध्यक्ष वी.डी. जोशी का कहना है कि यदि इसी तरह से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मनुष्यों की आवाजाही बढ़ती गई और विकास के नाम पर सड़कों का जाल पहाड़ों में अंधाधुंध तरीके बिछाया जाता रहा, भवन एवं सुरंगें बनाई जाती रहीं और पहाड़ों को तोड़ने के लिए विस्फोट किए जाते रहे, तो एक दिन हमेशा के लिए उत्तराखंड के पहाड़ों से बर्फ पूरी तरह लुप्त हो जाएगी। यही नहीं, ध्वनि प्रदूषण पहाड़ों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। इससे न केवल बर्फ पिघलती है, बल्कि पहाड़ों में रहने वाले वन्य जीवों की प्रजनन प्रक्रिया भी बाधित हो रही है। उत्तराखंड की चारधाम यात्रा के लिए जो हेलीकॉप्टर सेवा आरंभ हुई है, उससे वायु और ध्वनि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। इस कोलाहल में हिमालयी वन्य प्राणियों और पशु-पक्षियों का जीना कठिन हो गया है।
जिस पर्वत पर ओम लिखा है, उसे ऋषियों ने धरती के व्यास की नाप-जोख करके इसे पृथ्वी की नाभि यानी केंद्र बिंदु माना है। इसी क्षेत्र में स्थित कैलाश पर्वत को ब्रह्मांड की धुरी माना है। धरती की ओर उत्तरी ध्रुव है तो दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव है। दोनों के केंद्र में अखंड हिमालय पर्वत है और हिमालय के केंद्र में कैलाश मानसरोवर है। ऋग्वेद के ऋषियों ने माना है कि आर्यवर्त का जो क्षेत्र बहुत पहले विस्तृत था, उसके चारों ओर समुद्र फैला हुआ था। इसे ही सप्तसिंधु क्षेत्र कहा गया है। अखंड भारत में बहने वाली सात प्रमुख नदियां इसी हिमालय की कोख से निकलती हैं। इन नदियों में सिंधु, सरस्वती, रावी, सतलुज, झेलम, चिनाब और ब्यास हैं। कई करोड़ साल पहले एक प्राकृतिक घटना के घटने से हिमालय का उद्गम हुआ था। हिमालय पर स्थित कैलाश क्षेत्र को दुनिया की नाभि भी माना गया है क्योंकि यह आकाश और पृथ्वी के बीच में स्थित है। यहां दसों दिशाएं आकर मिलती हैं। साफ है, यहां की प्रकृति विलक्षण होने के साथ जीव-जगत के लिए उपयोगी है। इसी क्षेत्र में स्थित ओम् पर्वत अलग से खड़ा है। इसी पर प्राकृतिक रूप से उत्कीर्ण ‘ॐ’ अंकित है। ओम् की इस चित्रात्मक छवि में स्वर्णिम आभा-सी दीप्तमान होती है जिसमें हमेशा बर्फ भरी रहती है। अनुभव होता है कि मानो प्रकृति ने बर्फीली स्याही भर दी हो। ओम अक्षर देवनागरी की सुंदर लिपि में लिखा दिखाई देता है। ‘ॐ’ के आकार में समाहित प्रत्येक रेखा, चंद्रबिंदु, अनुस्वार स्पष्ट परिलक्षित होते हैं। इस शब्दाक्षर को अनुस्यूत करने पर अनुभव होता है कि जैसे निश्चल शिलाखंड पर कोई मानव आकृति ओमकार की प्रतिकृति में स्थितप्रज्ञ रहते हुए सूर्य को अर्घ्य दे रही है। नाभिढांग ही वह स्थल है, जहां शिव की पत्नी सती के पार्थिव शरीर का एक अंग गिरा था। इसलिए यह 52 शक्तिपीठों में भी शामिल है।
यहां ओम की ध्वनि उच्चारित करने पर बहुत देर तक प्रतिध्वनित होकर गूंजती रहती है। ब्रह्मांड की इस ओम ध्वनि को मूल ध्वनि माना गया है। इस मूल ध्वनि के नाप का ब्रह्मांड में उदघोष निरंतर होता रहता है। साधारण मनुष्य इस ध्वनि को नहीं सुन पाते हैं, क्योंकि आम व्यक्ति की श्रवण क्षमता न्यूनतम होती है। परंतु तपस्वी ऋषियों ने योगबल से ओम् की इस ध्वनि से साक्षात्कार हजारों साल पहले कर लिया था। अभी तक इसे कपोल कल्पना कह कर कथित बौद्धिक लोग नकारते रहे हैं, किन्तु अब ओम् के उच्चारण की ध्वनि को नासा ने रिकॉर्ड करने में सफलता प्राप्त कर ली है। इसे ‘साउंड ऑफ सन’ गूगल पर टंकित करके आसानी से सुना जा सकता है। इसमें ओम् की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है। अत:एव अब वेदों में उल्लेखित ओम् ध्वनि का तथ्यात्मक सत्यापन वैज्ञानिक ढंग से हो गया है।
जहां कैलाश मानसरोवर की असंख्य पर्वत श्रेणियां हैं, वहां बर्फीली श्वेतवर्णी परतों से बर्फ की छार और जल की धाराएं निरंतर झरती रहती हैं। यहीं सतह पर मानसरोवर और राक्षसताल सरोवरों का युग्म होता है। मानसरोवर तालाब को पिंगला और राक्षसताल को ईरा नारी का प्रतीक माना जाता है। इन दोनों तालाबों को गंगाछू नाम की स्थानीय नदी परस्पर जोड़े रखती है। मानसरोवर में जब जल की मात्रा बढ़ जाती है, तब यह जल गंगाछू नदी से बह कर राक्षसताल में समाने लगता है। इन तालाबों में हंसों के जोड़े अकसर दिखाई दे जाते हैं। कैलाश की विराट आकृति शिव लिंग के समान मानी जाती है। कैलाश की परिक्रमा करती हुई छह पर्वत श्रेणियां हैं। इनके 16 शिखर ऐसे दिखते हैं, मानो 16 पंखुड़ियों वाले कमल पुष्प की आकृति बना रहे हों। इस कैलाश पर्वत पर जब उगते और अस्त होते सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तो यह स्वर्णिम चमक से दमक उठता है। यह सौंदर्य अद्भुत माना जाता है। दोपहर का सूर्य स्फटिक मणि की तरह चमकता है। इन्हीं तालाबों से सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलुज और करनाली नदियों के उद्गम स्थल उपजते हैं। अत:एव हिमालय का यह पर्वतीय क्षेत्र जीव-जगत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज ओम् पर्वत से बर्फ गायब हुई है, किन्तु हो सकता है कि कल कैलाश की इन पर्वत श्रृंखलाओं से झरने वाली बर्फ भी विलुप्त हो जाए। तब न मानसरोवर और राक्षसताल रहेंगे और न ही इनसे निकलने वाली नदियां! तब इस क्षेत्र में इस वीराने की कल्पना ही डराने वाली दहशत पैदा कर देती है। 

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