राजस्थान में बारिश ने बढ़ाया भूमिगत जल-स्तर

देश के अनेक राज्यों में जहां भारी वर्षा से तबाही के समाचार मिल रहे है, वहां नदी, नालों, तालाबों, झीलों, कुओं और बांधों में पानी की अच्छी आवक से भू-जल स्तर में वृद्धि के साथ पेयजल किल्लत वाले क्षेत्रों में खुशी की लहर देखी जा रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक भू-जल स्तर को फिर से जीवंत करने में वर्षा जल मदद करता है। पेयजल का मुख्य स्रोत भूगर्भ जल ही है। भू-जल वह जल होता है जो चट्टानों और मिट्टी से रिस जाता है और भूमि के नीचे जमा हो जाता है। जिन चट्टानों में भू-जल जमा होता है, उन्हें जलभृत कहा जाता है। भारी वर्षा से जल स्तर बढ़ सकता है और इसके विपरीत, भू-जल का लगातार दोहन करने से इसका स्तर गिर भी सकता है। 
राजस्थान की बात करें तो चालू मानसून में सर्वत्र अधिक वर्षा से खेत खलिहान से लेकर पेयजल की कमी वाले क्षेत्रों में खुशी की लहर है। हालांकि अतिवृष्टि और बाढ़ से जन जीवन अस्त व्यस्त होने के साथ जानमाल के नुक्सान की जानकारी भी मिली है। इसके बावजूद किसानों का कहना है हमारी नदियों और अन्य स्रोतों में पानी की अच्छी आवक होने से भूमिगत जलस्तर में आशातीत रूप से वृद्धि हुई है। अनेक नदियां वर्षों से सूखी पड़ी थी, उनमें भी पानी आया है। भू-जल स्तर में वृद्धि होने से डार्क जोन क्षेत्रों के कुओं, हैडपम्पों और ट्यूबवेल सहित अन्य स्रोतों में पानी आने से पेयजल की किल्लत ख्त्म होने के आसार है। प्रदेश के लगभग सभी बांध पानी से लबालब भर गए है जिससे सिंचाई और पेयजल आपूर्ति में अच्छी मदद मिलेगी। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस से पचास वर्षों की अवधि में सूखे की मार झेल रही अनेक ज़िलों की नदियों में पानी की आवक से लोगों के चेहरों पर खुशी देखी जा रही है। मानसून ने पिछले 50 सालों का रिकार्ड तोड़ दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है पानी की अच्छी आवक से भूमिगत जलस्तर 15 प्रतिशत तक रिचार्ज होने की उम्मीद है। मौसम विभाग के मुताबिक प्रदेश में चालू मानसून में अब तक औसत से 60 प्रतिशत से ज्यादा अर्थात 650 मि.मी. बारिश हो चुकी है। बारिश ने वर्षों पचास के बाद प्रदेश में यह नया रिकॉर्ड बनाया है। अभी मानसून खत्म नहीं हुआ है और यह आंकड़ा अभी और बढेगा। 
गौरतलब है कि राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान रेतीला, बंजर, पर्वतीय और उपजाऊ कच्छारी मिट्टी से मिलकर बना है। राज्य की अर्थ-व्यवस्था कृषि एवं ग्रामीण आधारित है। कृषि और पशु पालन यहां के निवासियों के मुख्य रोज़गार है। वर्षा की अनियमितता के कारण यह प्रदेश अनेकों बार सूखे और अकाल का शिकार हुआ। मगर प्रदेश वासियों ने विपरीत स्थितियों में भी जीना सीखा और अपने बुलन्द हौंसले को बनाये रखा। राजस्थान अपनी जल-ज़रूरतों की पूर्ति के लिए सबसे ज्यादा भू-जल पर ही निर्भर है। यह ग्रामीण एवं शहरी घरेलू जलापूर्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। पिछले कुछ वर्षों में लाखों निजी कुओं के निर्माण से भू-जल के दोहन में भारी वृद्धि दर्ज की गई है। इसके अलावा खेती में सिंचाई भू-जल के माध्यम से होती है। जिसके परिणामस्वरूप भू-जल में गिरावट आई है। भू-जल दोहन के अनुपात में जल की प्राप्ति नहीं होने से संकट बढ़ रहा है। घटते भू-जल के लिए सबसे प्रमुख कारण उसका अनियंत्रित और अनवरत दोहन है। इस वर्ष चालू मानसून में अनेक ऐसी नदियों और तालाबों में पानी आने के समाचार भी मिल रहे जो वर्षों से सूखे की मार झेल रहेथे। भू-जल खेती और सिंचाई के कार्य में बहुतायत से उपयोग में आता है।  ‘इंटरकनेक्टेड डिजास्टर रिस्क रिपोर्ट 2023’ शीर्षक से संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय-पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान की एक रिपोर्ट में बताया गया है, भू-जल की वर्तमान स्थिति को सुधारने के लिये भू-जल का स्तर और न गिरे इस दिशा में काम किए जाने के अलावा उचित उपायों से भू-जल संवर्धन की व्यवस्था हमें करनी होगी। पानी की कमी के चलते निरन्तर खोदे जा रहे गहरे कुओं और ट्यूबवेलों द्वारा भूमिगत जल का अंधाधुंध दोहन होने से भू-जल का स्तर निरंतर घटता जा रहा है। देश में जल संकट का एक बड़ा कारण यह है कि जैसे-जैसे सिंचित भूमि का क्षेत्रफल बढ़ता गया वैसे-वैसे भूगर्भ के जल के स्तर में गिरावट आई है। भू-जल दोहन के अंधाधुंध दुरुपयोग को यदि समय रहते रोका नहीं गया, तो आने वाली पीढ़ियों को इसके भयानक परिणाम भुगतने होंगे। सरकार को जनता में जागरूकता लाने के लिए विशेष प्रबंध और उपाय करने होंगे। रिपोर्ट के अनुसार  देश में कृषि के लिए लगभग 70 प्रतिशत भू-जल का उपयोग किया जाता है। भारत दुनिया में भू-जल का सबसे बड़ा यूजर है, जो यूएसए और चीन के कुल उपयोग से भी अधिक है। भारत का उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र देश की बढ़ती 1.4 अरब जनसंख्या के लिए रोटी की टोकरी के रूप में काम करता है। 


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