शहीद भगत सिंह की याद को समर्पित गांव, चौक व कस्बे

आज के दिन लाहौर का शादमान चौक एक बार फिर मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है। वहां की जेल में 1931 को शहीद भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को फांसी दी गई थी। भगत सिंह यादगार फाऊंडेशन पाकिस्तान की मांग पर लाहौर हाईकोर्ट ने 2018 में इस चौक का नाम शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के नाम पर रखने के आदेश दिए थे। विपक्ष ने आज तक इस फैसले को लागू नहीं होने दिया। उनके हस्तक्षेप के कारण वहां की पंजाब सरकार 6 वर्षों से इस मामले को लटकाती आ रही है। अब हाईकोर्ट के जस्टिस शमस महमूद मिज़र्ा ने निर्देश दिए हैं कि पंजाब सरकार इस पर तुरंत क्रियान्वयन करे और केस की सुनवाई 8 नवम्बर तक स्थगित कर दी गई है। ऐसा इसलिए कि इससे पहले इस मामले में पूरी तरह क्रियान्वयन हो सके। यह बात भी गर्व की है कि जब लाहौर में फांसी से पहले किसी ने शहीद भगत सिंह की प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उनका एक पंक्ति का उत्तर था, ‘इस छोटी सी, ज़िन्दगी का इतना बड़ा मूल्य पड़ेगा, उसने कभी सोचा नहीं थी।’ पाकिस्तानी तथा भारतीय पंजाब में ये शब्द आज भी गूंज रहे हैं। 
चौक का नाम बदलने के समाचार ने शहीद भगत सिंह की याद को समर्पित अन्य गांव, शहर तथा कस्बे भी याद करवा दिए हैं। उनका जन्म पाकिस्तान के लायलपुर ज़िला में पड़ते गांव जड़ांवाला में हुआ था। यहां उनके दादा अर्जन सिंह को ब्रिटिश शासकों ने 1898 में 25 एकड़ बंजर भूमि आबाद करने के लिए दी थी। उन्होंने आबाद की जाने वाली भूमि को विभिन्न क्षेत्रों में बांट कर प्रत्येक क्षेत्र का नम्बर रख दिया था। जड़ांवाला चक्क नम्बर 105 हो गया। अर्जन सिंह ने इसका नाम बंगा रख लिया जो उनके पैतृक गांव खटकड़ कलां के निकट था। 
वैसे भी अर्जन सिंह ने बंगा के निकट क्षेत्र के साथ साझ बनाए रखने के लिए निकटवर्ती गांव मोरांवाली की बेटी विद्यावती का अपने बेटे किशन सिंह से विवाह कर अपनी बहू बना लाए थे। सन् सैन्तालीस के विभाजन तक शहीद भगत सिंह के पूर्वज वहीं रहे। उधर के बंगा में।
सन् 2017 के जून माह में मैं अपनी पाकिस्तान यात्रा के समय जड़ांवाला गया तो यह देख कर बड़ी खुशी हुई कि पाकिस्तान सरकार ने उनके जन्म वाले कमरे को उनके जीवन की तस्वीरों से सजाया हुआ है और घर के आंगन वाली उस बेरी की भी देखभाल करती है जिसके नीचे भगत सिंह अपने बचपन में खेलते थे। उन्होंने स्थानीय स्कूल के गेट पर भी शहीद भगत सिंह की तस्वीर लगा रखी है।
अब जब शहीद भगत सिंह के परिवार के सभी सदस्य उधर से पलायन करके उत्तर प्रदेश जा बसे हैं तो इधर की सरकार ने खटकड़ कलां में शहीद के नाम पर संग्रहालय बना लिया है और इसकी तहसील नवांशहर को ज़िला का दर्जा देकर शहीद भगत सिंह नगर का नाम दे दिया है। 
शहीद भगत सिंह की याद से जुड़े स्थानों का दायरा समय के साथ और विशाल हो रहा है। उधर के शादमान चौक तक सीमित नहीं। इसकी भावना अमृतसर की पवित्र भूमि में पुन: उभर आई है। एक नाटकीय अंदाज़ में। शहीद भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव की भावना ने ब्रिटिश शासकों की महिलाओं को इतना प्रभावित किया था कि वे अदालत की कार्यवाही के बारे पल-पल की जानकारी रखती थीं। 30 जनवरी, 1929 को जब दो ब्रिटिश जजों ने केस की सुनवाई करनी थी तो श्रोताओं में उनकी पत्नियां भी सहेलियों को साथ लेकर कचहरी पहुंची हुई थीं।
 सहेलियों के पति भी जज थे, चाहे उनका मुकद्दमे के साथ कोई संबंध नहीं था। उन पांचों की उत्सुकता ने मेरे प्रकाशक (मालिक लोकगीत प्रकाशन तथा यूनिस्टार बुक्स) को नाटककार बना दिया है। उन्होंने उनकी उत्सुकता को आधार बना कर ‘गुनाहगार’ नाटक लिखा है जिसका प्रसिद्ध रंगमंच कर्मी केवल धालीवाल ने विरसा विहार केन्द्र अमृतसर में भी मंचन किया तथा गुरबख्श सिंह के बसाये प्रीतनगर आडिटोरियम में भी।
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ज़िन्दाबाद
गुरुद्वारा नाढा साहिब पंचकूला 
मेरी एक मौसी सुंढरां खेड़ी के नम्बरदार निहाल सिंह की पत्नी थीं। मौसा निहाल सिंह निकटवर्ती गुरुद्वारा नाढा साहिब के श्रद्धालु थे और हमें पैदल वहां लेकर जाते थे। हमने घग्गर नदी पार करनी होती थी। कभी पानी वाली और कभी सूखी। इसके किनारे वाले स्थान को दशम पातशाह की चरण छोह प्राप्त है। यदि घग्गर उफान पर होती तो मुबारकपुर के निवासी अम्बाला-कालका रेलवे पुल के माध्यम से घग्गर पा करते थे। जब ज़ीरकपुर वाला फ्लाईओवर नहीं बना था। 
इस पवित्र स्थान वाले गुरुद्वारा साहिब का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। सितम्बर माह के दूसरे सप्ताह से यहां के ज़रूरतमंद श्रद्धालुओं के लिए एम्बूलैंस भी दान हो चुकी है। दान करने वाला सरबत दा भला चैरीटेबल ट्रस्ट है। दान करने की रस्म के समय ट्रस्ट के संस्थापक एस.पी. सिंह ओबराय ने यह भी घोषणा की थी कि जल्द ही इस स्थान पर लैबोरेटरी, डायगनास्टिक सैंटर, डैंटल क्लीनिक तथा फिज़ियोथरैपी सैंटर खोलने में ट्रस्ट सहायक होगा। इससे पहले भी इस ट्रस्ट की ओर से 51 एम्बूलैंस विभिन्न समाज सेवी संस्थाओं को भेंट की जा चुकी हैं। एस.पी. वायदों का पक्का है। वह ज़रूरतमंदों की वित्तीय सहायता, स्किल डिवैल्पमैंट सैंटर, लैबोरेटरियां स्थापित करने तथा डायलसिस किटें देने तथा बाढ़ पीड़ितों के लिए घर बना कर देने के लिए भी प्रसिद्ध है। उसकी घोषणा ने हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी वाले भाई बलजीत सिंह दादूवाल तथा अन्य को इतनी खुशी दी कि उन्होंने संस्थापक ओबराय का विशेष सम्मान करके धन्यवाद किया। दानी हो तो एस.पी. सिंह जैसा।