आदर्श होनी चाहिए शिक्षक की भूमिका

‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो मिलाय।’

भक्त कबीर के इस दोहे ने आज से सदियों पहले यह एहसास करा दिया था कि यदि जीवन में अपनी मंज़िल की ओर बढ़ना है तो आपको गुरु के आशीर्वाद की बड़ी आवश्यकता है। मौजूदा समाज में विद्यालयों में अलग-अलग राज्यों के बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। सबके घर का माहौल अलग होता है, भाषा अलग होती है किन्तु एक अध्यापक/अध्यापिका का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह बच्चों को आज के समाज में उठना बैठना सिखाए। केवल किताबी शिक्षा देना ही आज हमारा कार्य नहीं होना चाहिए। आज ज़रूरत इस बात की है कि हम वर्तमान परिवेश में बढ़ रही आपराधिक गतिविधियों के बारे में सचेत करते हुए अपने विद्यार्थियों को शिक्षा दें। वह ज़माना नहीं रहा, जब हम बच्चों से खुलकर बात करने में कतराते थे। यदि उन्हें विज्ञान की शिक्षा भी दी जाती थी तो नपे-तुले शब्दों में उन्हें शारीरिक बदलाव के बारे में बताते हुए बात को गोल-मोल कर दिया जाता था। 
एक अध्यापक के रूप में हमारा कर्त्तव्य है कि बच्चों के बीच में हो रहे शारीरिक और मानसिक बदलावों को समझाते हुए उन्हें सही दिशा की ओर जाने की प्रेरणा दें। हमारा कर्त्तव्य है कि हम बच्चों को लड़के और लड़की के बीच के भेदभाव को खत्म करने की प्रेरणा दें। हम अपने बच्चों को समझाएं कि किस तरह से समाज में अपने आप को स्थापित करना है। लड़कों को भी यह शिक्षा अवश्य दें कि उन्हें लड़कियों के साथ किस तरह से उठना-बैठना है, उन्हें एक सीमा में रहकर उनके साथ व्यवहार करना है। लड़कियों की इज़्ज़त करना, उनकी रक्षा करना और अपने कंधे से कंधा मिलाकर उन्हें चलने के अवसर प्रदान करना एक अध्यापक ही अपने विद्यार्थियों को समझा सकता है क्योंकि हमारे पास अधिकतर बच्चे वे आते हैं जो ़गरीब परिवारों से होते हैं। उनके माता-पिता रोजी-रोटी की चिंता में सुबह निकलते हैं और रात गए घर लौटते हैं। ऐसे में विद्यार्थी जब अध्यापक के पास 5-6 घंटे बिताता है तो यह ज़रूरी हो जाता है कि  शिक्षक उन्हें उनके भले बुरे के बारे में स्पष्ट शब्दों में समझाए। यदि उन्हें लगता है कि उनका विद्यार्थी गलत मार्ग की ओर बढ़ रहा है तो उसे इसके बुरे प्रभावों के बारे में चेतावनी दे। 
नैतिक मूल्यों को बच्चों के अंदर कूट-कूट कर भरने का कार्य एक आदर्श अध्यापक ही कर सकता है, लेकिन इसके लिए पहले अध्यापक को स्वयं उन आदर्शों पर खरे उतरना होगा। यदि शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों के साथ अभद्र भाषा में बात करते हैं, अपने कर्त्तव्य का ठीक से पालन नहीं करते, अपनी ज़िम्मेदारियों से बचते हैं तो वे अपने विद्यार्थियों को कभी भी सही रास्ता नहीं दिखा सकते। आज के बच्चे बहुत जागरूक हैं और यदि समाज में फैल रहे अपराधों के बारे में उनके साथ खुलकर बात की जाए तो वे अवश्य ही समझेंगे। दुष्कर्म, नशा, हत्याएं यह सब आजकल समाचार पत्रों की सुर्खियां बने रहते हैं। ऐसे में क्यों न शिक्षक बच्चों की पारिवारिक परिस्थितियों को समझते हुए ऐसे शिक्षक के रूप में उभरें, जिनके साथ बच्चा सरलता से अपनी बातें बांट सके। जो प्यार और अपनापन विद्यार्थी अपने अध्यापक से प्राप्त कर सकता है, वह शायद कहीं और से नहीं। एक आदर्श शिक्षक को चाहिए कि वह ऐसे शिक्षक के रूप में अपने कदम आगे बढ़ाए, जो विद्यार्थियों में नैतिक गुणों का संचार करते हुए, उन्हें एक सर्वश्रेष्ठ मानव के रूप में उभारते हुए, इस समाज को उत्कृष्ट नागरिक प्रदान कर सके।
-हिंदी अध्यापिका