देश व लोकतंत्र के हित में है ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’

‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ देश के लिये कोई नई पहल नहीं है। आज़ादी के बाद 1951-52 से लेकर 1967 तक के लोकसभा विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते रहे, लेकिन जब सत्ता के प्रति राजनीति में मोह ज्यादा पनप गया तो देश में छोटे- छोटे दल अस्तित्व में आ गए और ‘आया राम, गया राम’ की कहानी शुरू हो गई। सत्ता के लिये कौन किधर चला जायेगा, कब चला जायेगा, किसी को पता नहीं। इस तरह के बदले हालात एवं असुरक्षित माहौल ने देश में लोकतंत्र की तस्वीर ही बदल डाली। विधानसभा, लोकसभा के परिवेश समय से पहले ही डगमगाने लगे। मघ्यावधि चुनाव की स्थितियां बनने लगीं। ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की जगह  सुरक्षा की दृष्टि से देश में कई चरणों में कई बार लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव होने लगे जिसने देश पर अनावश्यक खर्च भी बढ़ा दिया। 
अब फिर से ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ करवाये जाने की बात सामने आ रही है जिसके तहत इस दिशा में देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद के नेतृत्व में गठित समिति की सिफारिश स्वीकार करते हुए वर्तमान केन्द्र सरकार ने वर्ष 2029 में एक साथ चुनाव कराये जाने की बात कही है। केन्द्र सरकार की यह पहल देश एवं लोकतंत्र के हित में अवश्य है। इससे चुनाव पर होने वाले अनावश्यक खर्च रोका जा सकता है, परन्तु देश में बदली राजनीतिक पृष्ठभूमि में जहां लाभतंत्र के साथ-साथ माफिया वर्ग हावी है, इस तरह के परिवेश को कब तक स्थायीत्व प्रदान कर सकेगा,  कुछ कहा नहीं जा सकता। इस पहल पर जहां सत्ता पक्ष सकारात्मक नज़र आ रहा है, वहीं विपक्ष अपने-अपने तरीके से विरोध जता रहा है। फिर भी इस पहल पर कुछ राजनीतिक, कुछ संवैधानिक अड़चनें अवश्य नज़र आ रही हैं , जिनका समाधान सभी को मिलकर तलाशना होगा।
फिलहाल वर्ष 2025 एवं 2026 में देश के 17 राज्यों के होने वाले विधानसभा चुनाव के कार्यकाल को बढ़ाये जाने की समिति ने सिफारिश की है, जहां कुछ राज्यों में केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा की सरकारें हैं, तो कुछ राज्यों में विपक्ष की सरकारें सत्ता में हैं जो एक टेढ़ी खीर है।  जब देश में ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ के तहत लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव करवा लिये जाएं तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि देश में मध्यावधि चुनाव की स्थिति न बने, यह तर्क विपक्ष की ओर से आ रहा है। 
‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ को सफल बनाने के लिये देश में मध्यावधि चुनाव की स्थिति को टालने के मार्ग तलाशने होंगे। इस दिशा में संविधान में एक कानून यह भी परित किया जाना चाहिए जो परिवेश मध्यावधि चुनाव के कारण बनता है, उस पर अकुंश लगाया जाए। बहुमत के आधार पर सरकार गिराने के बजाय अल्पमत की सरकार चलते रहने का कानून बने ताकि दल-बदल की कहानी खत्म हो जाए। देश में बहुदलीय की जगह राजनीतिक दलों की संख्या सीमित से ही ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ को सफलता मिल सकती है। (युवराज)