वित्तीय संकट में घिरा पंजाब 

पंजाब की मौजूदा आम आदमी पार्टी निर्देशित भगवंत मान सरकार की त्रुटिपूर्ण वित्तीय नीतियों के कारण प्रदेश एक बार फिर बड़े गम्भीर वित्तीय संकट की ओर अग्रसर होते दिखाई देने लगा है। एक तो प्रदेश सरकार की ओर से रोज़मर्रा के प्रशासनिक कार्यों हेतु भी कज़र् लेते जाने की प्रवृत्ति ने कज़र् की गठरी के बोझ को बेतहाशा बढ़ा दिया है। दूसरे, मुफ्त बिजली और अन्य प्रकार की चुनावी घोषणाओं के कारण प्रदेश की सब्सिडियों में भारी इज़ाफा होता जाता है। केन्द्र सरकार की ओर से दी जाने वाली राशियों में भी, मान सरकार के गठन के समय से ही होती आ रही कोताहियों एवं त्रुटियों के कारण अक्सर कटौती की जाती आ रही है। ऐसी स्थितियों के दृष्टिगत केन्द्रीय रिज़र्व बैंक की ओर से समय-समय पर जारी की गई रिपोर्टों में दी जाती चेतावनियों के बावजूद प्रदेश की सरकार के वित्तीय सलाहकारों को समझ नहीं आई और आज पंजाब एक बार फिर एक बड़े वित्तीय संकट के कगार पर पहुंच गया लगता है। दरअसल विगत दिनों जारी की गई महालेखा परीक्षक यानि कैग की एक ताज़ा रिपोर्ट प्रदेश सरकार के लिए एक बहुत बड़े झटके के समान सिद्ध हुई है। इस रिपोर्ट में प्रदेश सरकार के व्यवस्थागत ढांचे पर कुप्रबन्धन के अनेक संकेत किये गये हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा भगवंत मान सरकार की कुल उपलब्धियों, प्राप्तियों और खर्च में अन्तर का असंतुलन इतना बढ़ गया है कि आने वाला समय काफी संकटपूर्ण होने की बड़ी सम्भावना बन गई है। इस बढ़ते असंतुलन का ही नतीजा है कि पंजाब विद्युत निगम की ओर सब्सिडी का बकाया 20,607 करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया है। इसमें आम आदमी पार्टी की ओर से चुनावों से पूर्व आम लोगों को दी गई 300 यूनिट प्रति मास मुफ्त बिजली से बनने वाली 7300 करोड़ रुपये की सब्सिडी भी शामिल है। स्थितियों का सितम यह भी है कि इस सब्सिडी को और बढ़ते जाने से रोकने की कोई सम्भावना भी दूर-निकट उपजते दिखाई नहीं दे रही। इस समय प्रदेश के 80 प्रतिशत घरेलू उपभोक्ता मुफ्त बिजली की इस सुविधा का लाभ ले रहे हैं, और कि इस हेतु 30 प्रतिशत से अधिक घरों में एक की जगह दो अथवा दो से अधिक नये मीटर भी लगाये गये हैं।
इस रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि प्रदेश की कुल राजस्व प्राप्तियों में बेशक 10.76 प्रतिशत वार्षिक की दर से वृद्धि हुई है, किन्तु प्रदेश के कुल खर्च में 13 प्रतिशत के अनुपात से इज़ाफा हुआ दर्ज किया गया है। प्राप्त राजस्व और खर्च में उपजा यह अन्तर भी प्रदेश की आम आदमी पार्टी की इस सरकार की ओर से अपनाई गई त्रुटिपूर्ण नीतियों का ही परिणाम है। रिपोर्ट का यह एक खुलासा भी जन-साधारण को परेशान करने के लिए काफी है कि राज्य के राजस्व और खर्च का मौजूदा घाटा वर्ष 2023-24 में 13,135 करोड़ रुपये से बढ़ कर 26,045 करोड़ रुपये हो गया है। इस अन्तर के बढ़ते जाने का एक कारण यह भी है कि सरकार को उपलब्ध राजस्व का एक बड़ा भाग अब तक लिये गये ऋण के ब्याज की अदायगी में खर्च हो जाता है। इसके विपरीत मूल धन की राशि निरन्तर बढ़ती चली जाती है। यह भी पंजाब की मौजूदा संकट-पूर्ण वित्तीय स्थिति का एक बड़ा कारण हो सकता है, किन्तु भगवंत मान सरकार के पास इस मकड़-जाल से बाहर निकलने का कोई और सहज मार्ग भी दिखाई नहीं देता, क्योंकि सरकार को अपने नित्य-प्रति के प्रत्येक छोटे-बड़े प्रशासनिक कार्य हेतु ऋण प्राप्त करने की आदत हो गई है। अपने अब तक के लगभग दो वर्ष के शासन काल में ही भगवंत मान सरकार ने दो लाख करोड़ रुपये से अधिक कज़र् ले लिया है, और कि पुरानी सरकारों के कज़र् को मिला कर छोटे-से पंजाब के सिर पर आज साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक का कज़र् हो गया है।
नि:संदेह यह स्थिति प्रदेश की उन्नति एवं विकास के लिए कदापि उचित नहीं है। प्रदेश में विकास की अधिकतर योजनाएं और नई परियोजनाएं प्राय: ठप्प होकर रह गई हैं। वित्तीय विशेषज्ञों और खास तौर पर रिज़र्व बैंक के विशेषज्ञों के अनुसार प्रदेश सरकार को अपने सरकारी खर्चों में भारी कटौती करके विकास कार्यों की सम्पन्नता की ओर ध्यान देना होगा किन्तु कज़र् लेकर घी पीने जैसी बुरी आदतों और विज्ञापनों के झूठे शीर्षकों की बैसाखियों पर खड़ी यह सरकार विकास परियोजनाओं हेतु भारी-भरकम राजस्व की व्यवस्था कर पाने में नितांत असमर्थ प्रतीत होती है। तथापि, आम आदमी पार्टी की मौजूदा सरकार इस संकट-बेला पर नियंत्रण कर पाने में किस सीमा तक सफल हो पाएगी, यह निकट भविष्य में देखने वाली बात होगी। समस्या यह भी है कि सरकार के पास खर्च बढ़ने के तो बहुत परनाले हैं, किन्तु आय एवं राजस्व बढ़ने के स्रोत और साधन पूर्णतया अनुपलब्ध हो गये प्रतीत होते हैं।