नशे का मकड़जाल : चरम पर है देश में कारोबार
सरकार की लाख चेष्टा के बावजूद नशे का व्यापर देश में अनवरत चालू है। प्रतिदिन लाखों करोड़ों की ड्रग्स पकड़ी जा रही है मगर बजाय थमने के यह कारोबार लगातार बढ़ता ही जा रहा है। सीमावर्ती क्षेत्रों की बात एक बारगी छोड़ भी दें तो देश की राजधानी दिल्ली भी नशे की चपेट में है। यहां नशे का कारोबार अपने चरम पर है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दस दिनों के भीतर देश की राजधानी दिल्ली से करीब 9 हजार करोड़ रुपये की कोलंबियन कोकीन बरामद की जा चुकी है। देश में कोकीन बरामदगी का ये अबतक का सबसे बड़ा मामला है। त्योहारी सीजन के चलते इंटरनेशनल ड्रग रैकेट के खास निशाने पर है देश की राजधानी। जहां संपूर्ण सत्ता का केंद्र बिंदु विराजमान है। रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली, मुंबई और गोवा में होने वाले आगामी कॉन्सर्ट और म्यूजिक फेस्टिवल में सप्लाई करने के लिए कार्टेल ने कोकीन का भंडार जमा किया था।
नशा करने के लिए लोग आमतौर पर शुरुआत में कफ सिरप और भांग आदि का इस्तेमाल करते हैं और फिर धीरे-धीरे चरस, गांजा, अफीम, ब्राउन शुगर आदि लेने लगते हैं। नशा एक ऐसी बुराई है, जिसमें मानव का जीवन समय से पहले ही अंधकार और मौत की राह पर चला जाता है। नशाखोरी क्या है? एक खतरनाक बीमारी जिसके क्षणिक सुख के चलते इंसान अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठता है। यह केवल एक बीमारी नहीं है बल्कि यह अनेक रोगों की जननी भी है। नशा मनुष्य को अपराध की ओर ले जाता है जो शांतिपूर्ण समाज के लिए अभिशाप का ज़हर है। दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश भारत है। युवा नशे के मकड़जाल में फंसकर बर्बादी के कगार पर पहुंच रहे हैं। इससे उनकी सेहत तो खराब हो ही रही है साथ ही उनका सामाजिक स्तर भी गिरता जा रहा है। नशे का कारोबार बहुत तेज़ी से फैल रहा है, जिसमें देश-दुनिया के बड़े रैकेट शामिल हैं। एक अनुमान के मुताबिक हर साल गांजा, चरस, अफीम, ड्रग्स, ब्राउन शुगर, हेरोइन, डेंड्राइट से अरबों रुपये का कारोबार पर्दे के पीछे से ड्रग तस्कर करते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नशे का सामान चाय पान की थडियों, मैडीकल स्टोरों और शिक्षण संस्थाओं के आसपास आसानी से उपलब्ध हो जाता है। सुनसान रास्ते व खंडहर इमारतें नशा करने वाले बच्चों व युवाओं के विशेष अड्डे हैं। नशाखोरी की आदत 12 से 20 साल तक के युवाओं में अधिक देखने को मिल रही है। इससे आने वाली पीढ़ी के भविष्य पर संकटों के बादल मंडराने लगे हैं। कभी चोरी छिपे बिकने वाले नशे का सामान आज धड़ल्ले से बिक रहा है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि युवाओं में नशे के बढ़ते चलन के पीछे आधुनिकता की चकाचौंध भरी बदलती जीवन शैली, परिवार से विभिन्न प्रकार के दबाव, पारिवारिक झगड़े, इंटरनेट की अत्यधिक लत, एकाकी जीवन, परिवार से दूर रहने, पारिवारिक कलह जैसे अनेक कारण हो सकते हैं। नशा नाश का मूल है। यह स्वास्थ्य और सामाजिक प्रतिष्ठा को क्षय करता है।
नशा एक ऐसी बुराई हैं जो हमारे समूल जीवन को नष्ट कर देता हैं। नशे की लत से पीड़ित व्यक्ति परिवार के साथ समाज पर बोझ बन जाता हैं। युवा पीड़ी सबसे ज्यादा नशे की लत से पीड़ित हैं। हिंसा, बलात्कार, चोरी, आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है। शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए एक्सीडेंट करना, शादीशुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में अपनी पत्नी से मारपीट करना आम बात है। मुँह, गले व फेफड़ों का कैंसर, ब्लड प्रैशर, अल्सर, यकृत रोग, अवसाद एवं अन्य अनेक रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा है।
नशा नशा नशा आखिर ये नशा है क्या? व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति को बदल देने वाले रसायन, जो प्रयोग करने वाले को नींद या नशे की हालत में ला दे, उन्हें नशा कहा जाता है। मॉर्फिन, कोडेन, फेंटाइनाइल आदि इस श्रेणी में आते हैं। नारकॉटिक्स पाउडर, टैब्लेट, कैप्सूल और इंजेक्शन के रूप में आते हैं। ये आदमी के दिमाग और आसपास के टिशू को उत्तेजित करते हैं। लोग इसे मजे के लिए इस्तेमाल करते हैं, जो लत का रूप ले लेता है। नशे के रूप में लोग शराब, गांजा, जर्दा, ब्राउन शुगर, कोकीन एस्मैक आदि मादक पदार्थों का प्रयोग करते हैं, जो स्वास्थ्य के साथ सामाजिक और आर्थिक दोनों लिहाज से ठीक नहीं हैं। नशे का आदी व्यक्ति समाज की दृष्टी से हेय हो जाता हैं और उसकी सामाजिक क्रियाशीलता जीरो हो जाती हैं, फिर भी वह व्यसन को नहीं छोड़ता हैं। धूम्रपान से फेफड़ों में कैंसर होता हैं, वहीं कोकीन, चरस, अफीम लोगों में उत्तेजना बढ़ाने का काम करती हैं, जिससे समाज में अपराध और गैर-कानूनी हरकतों को बढ़ावा मिलता हैं।