झारखंड और महाराष्ट्र में होगा एन.डी.ए. व इंडिया गठबंधन के बीच सख्त मुकाबला 

झारखंड विधानसभा चुनाव राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जे.एम.एम.) के नेतृत्व वाले ‘इंडिया गठबंधन’ और भाजपा के नेतृत्व वाले एन.डी.ए. के बीच सीधा मुकाबला होता दिखाई दे रहा है। हालांकि, झारखंड मुक्ति मोर्चा के भाईवालों के बीच सीट-बंटवारे का काम अभी पूरा नहीं हुआ। सत्तारूढ़ भाजपा गुट सीट वितरण के मुद्दों से जूझ रहा है। सूत्रों के मुताबिक, झारखंड की कुल 81 सीटों में से सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जे.एम.एम.) के 43 सीटों पर चुनाव लड़ने की संभावना है। जबकि कांग्रेस को 29 सीटें मिलेंगी, राजद को 5 सीटें और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) को 4 सीटें मिलेंगी। कांग्रेस के  महासचिव और झारखंड से संबंधित मामलों के प्रभारी गुलाम अहमद मीर ने कहा कि कांग्रेस उम्मीदवारों की पहली सूची आज कल में ही जारी कर दी जाएगी। वहीं, दूसरी तरफ भाजपा ने अपने लिए 68 सीटें और अपने भाईवाल के लिए 13 सीटें छोड़ी हैं। उनमें से ऑल इंडिया झारखंड स्टूडैंट यूनियन (आजसू) को 10, जनता दल (यू) 2 और लोक जन शक्ति एक सीट लड़ेगी। झारखंड में 13 और 20 नवम्बर को दो चरणों में चुनाव होंगे, जबकि परिणाम 23 नवम्बर को घोषित होंगे।
उत्तर प्रदेश उप-चुनाव
चुनाव आयोग ने 13 नवम्बर को उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव की घोषणा की है, लेकिन इंडिया गठबंधन की भाईवाल पार्टी कांग्रेस और सपा के बीच अभी तक सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन सकी। सोमवार को दोनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं के बीच बैठक हुई, जहां कांग्रेस अब 3 सीटों की मांग कर रही है, वहीं सपा रिश्ते बचाने के लिए गाजियाबाद और खैर की 2 सीटों से ज्यादा देने को तैयार नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष अजय राय और अन्य कांग्रेस नेताओं ने उपचुनाव के लिए टिकट वितरण की चिंताओं को कम करते हुए सपा के साथ गठबंधन के महत्व पर जोर दिया। दोनों पार्टियां मुस्लिम और दलित मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की होड़ में हैं, खासकर फूलपुर, मीरापुर और मझवां जैसी सीटों पर। इन उपचुनावों के नतीजे 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक परिदृश्य को आकार दे सकते हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव और वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल और प्रियंका गांधी द्वारा सीट-बंटवारे की व्यवस्था पर हस्ताक्षर करने के बाद ही कोई अंतिम निर्णय की उम्मीद है।
कल्पना सोरेन की गतिविधि
झारखंड में जे.एम.एम. ने अपनी ‘माया सम्मान योजना’ को अपनी मुहिंम का केन्द्र बिंदू बनाया है और इसका नेतृत्व गांडेय विधायक और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन कर रही हैं। अगस्त में शुरू की गई कल्याण योजना के हिस्से के रूप में, वंचित समुदायों की 18 से 50 वर्ष की महिलाएं अब हर महीने 2,500 रुपये मिल सकेंगे, क्योंकि प्रदेश की कैबिनेट ने 14 अक्तूबर को इस राशि को 1000 रुपये से बढ़ा दिया था। अगले ही दिन चुनाव आयोग ने घोषणा की कि झारखंड विधानसभा चुनाव 13 और 20 नवम्बर को होंगे, जिसकी गिनती 23 नवम्बर को होगी। 
यह सुनिश्चित करने के लिए कि लोग इस योजना के बारे में परिचित हों और जमीनी स्तर से फीडबैक प्राप्त करें, सोरेन सरकार ने 23 सितम्बर को ‘मैया सम्मान यात्रा’ शुरू की। इस यात्रा को 20 सितम्बर से 2 अक्तूबर तक चली भाजपा की परिवर्तन यात्रा का मुकाबला करने के लिए। इस योजना से संबंधित मैया सम्मान यात्रा के जवाब में देखा गया। मैया सम्मान यात्रा का नेतृत्व करते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री की पत्नी कल्पना सोरेन अपने आप में एक प्रमुख नेता के रूप में उभरी हैं। महिला मतदाताओं के साथ उनका सीधा जुड़ाव, अक्सर ग्रामीण ज़िलों में उनके साथ भोजन करना, लोगों को अच्छी तरह से प्रभावित कर रहा है। और उनका बढ़ता राजनीतिक कद उन्हें इस चुनाव में देखने लायक एक व्यक्ति के रूप में प्रदर्शित करता है।
महाराष्ट्र चुनाव 
चुनाव आयोग द्वारा महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावों की तिथि का ऐलान कर दिया गया, जिसके मुताबिक 20 नवम्बर को मतदान होगा और 23 नवम्बर को परिणाम आएंगे। जहां सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति, जिसमें मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना, भाजपा और अजीत पवार की राकांपा शामिल हैं, जो सत्ता बरकरार रखने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एम.वी.ए.), जिसमें शिवसेना (यू.बी.टी.), एन.सी.पी. (एस.पी.) और कांग्रेस शामिल हैं, का लक्ष्य बहुमत हासिल करना और वर्तमान सरकार को उखाड़ फेंकना है।
 राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है, और कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी तीसरा मोर्चा बनाने पर विचार कर रहे हैं। दोनों गठबंधनों (सत्तारूढ़ महायुति और विपक्षी महा विकास अघाड़ी) ने अभी तक चुनाव के लिए किसी मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा नहीं की है। हालांकि, सरकार मुख्यमंत्री माझी लड़की बहिन योजना की लोकप्रियता पर विश्वास कर रही है और विपक्ष इसके प्रभाव से सावधान है। चाहे वह ओबीसी, मराठा या धनगर-आदिवासी आमने-सामने हो, या मराठवाड़ा में मराठा नेता मनोज जारांगे पाटिल का प्रभाव या तीसरे मोर्चे की संभावना, आगामी चुनाव तीव्र होंगे। इन चुनावों में जाति आधारित आरक्षण की मांग के अलावा कृषि संकट, विशेष रूप से सोयाबीन और कपास पैदा करने वाले किसानों का संकट, युवाओं के बीच बेरोज़गारी, कानून और व्यवस्था और महिला सुरक्षा संभवत: ऐसे मुद्दे हावी रहेंगे। (आई.पी.ए.)