भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे संजीव खन्ना

न्यायाधीश संजीव खन्ना 11 नवम्बर 2024 को छह माह के अल्प कार्यकाल के लिए भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे; क्योंकि मई 2025 में उनका रिटायरमेंट निर्धारित है। न्यायाधीश खन्ना एक ऐसी विरासत के मालिक हैं, जिसका एकमात्र चमकता हुआ बिंदु असहमति है। उनके अंकल न्यायाधीश हंसराज खन्ना ने 1977 में अपना भारत का मुख्य न्यायाधीश पद कुर्बान कर दिया था ताकि वह आपातकाल के काले वर्षों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार व कानून के शासन को सुरक्षित रख सकें। 
कुख्यात एडीएम जबलपुर केस या हेबियस कार्पस केस (़गैर कानूनी तरीके से हिरासत में लिए गये या गिरफ्तार किये गये व्यक्ति की रिहाई) में न्यायाधीश हंसराज खन्ना ने तत्कालीन शक्तिशाली इंदिरा गांधी सरकार का विरोध करते हुए नागरिकों के इस अधिकार का समर्थन किया था कि बिना उचित प्रक्रिया के निवारक (प्रिवेंटिव) हिरासत या गिरफ्तारी को चुनौती देने का उन्हें हक है। पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ में अपने को अकेला पाते हुए न्यायाधीश हंसराज खन्ना ने 1976 में अपने असहमति के फैसले में अमरीका के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चार्ल्स इवांस को कोट करते हुए कहा था कि अंतिम शरण की अदालत में असहमति कानून की भावना के प्रति भविष्य की बुद्धिमत्ता के लिए आग्रह है। 
इस घटना के लगभग आधी सदी बाद न्यायाधीश संजीव खन्ना को इतिहास व समय ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनने का अवसर प्रदान किया है और वह भी ऐसे वक्त में जब ज़मानत न्यायशास्त्र अपना सिर पानी से ऊपर रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। गौरतलब है कि हाल के अतीत में देखा गया है कि पत्रकारों, एक्टिविस्ट्स, कवियों और विपक्ष के नेताओं को विवादित यूएपीए और पीएमएलए जैसे कानूनों के तहत महीनों बल्कि कई मामलों में तो वर्षों तक बिना ट्रायल व ज़मानत के सलाखों के पीछे रखा गया है। यह ऐसा दौर है, जिसमें निरंतर बढ़ते लम्बित पड़े मामलों से न्यायपालिका को रोज़ ही संघर्ष करना पड़ रहा है और हाई-स्टेक्स केसों की अटूट आमद से भी। बतौर मुख्य न्यायाधीश अपने छह माह के अल्प कार्यकाल में न्यायाधीश संजीव खन्ना इस संदर्भ में क्या करते हैं, यह देखना शेष है। 
हालांकि न्यायाधीश संजीव खन्ना खुद को लो-प्रोफाइल रखते हैं यानी वह लाइमलाइट से दूर रहते हैं। वह मीडिया को बामुश्किल ही कभी बाइट देते हैं, लेकिन वह बहुत सख्त न्यायाधीश हैं। उन्हें बहुत नज़दीक से परखा जायेगा कि वह उस न्यायालय का किस तरह से संचालन करेंगे जो रोज़ाना ही दोनों कमर्शियली व सियासी दृष्टि से संवेदनशील व युद्ध-जैसे मामलों से जूझ रहा है। एक दिलचस्प बात यह है कि न्यायाधीश हंसराज खन्ना को अपनी असहमति के कारण भारत का मुख्य न्यायाधीश नहीं बनने दिया गया था और उनकी जगह 1977 में उनके जूनियर न्यायाधीश एमएच बेग को दी गई थी, जबकि उनके भतीजे न्यायाधीश संजीव खन्ना को 2019 में हाईकोर्ट्स में उनसे सीनियर 32 न्यायाधीशों को अनदेखा करते हुए सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। सुप्रीम कोर्ट में अपनी नियुक्ति के समय न्यायाधीश संजीव खन्ना अखिल भारतीय स्तर पर हाईकोर्ट्स न्यायाधीशों की संयुक्त वरिष्ठता सूची में 33वें स्थान पर थे यानी 32 न्यायाधीश उनसे सीनियर थ
न्यायाधीश संजीव खन्ना का जन्म 14 मई, 1960 को राजधानी दिल्ली में हुआ था। उन्होंने अपनी कानूनी प्रैक्टिस 1983 में राष्ट्रीय राजधानी की ज़िला अदालतों में आरंभ की, जहां का वातावरण खासा खींचतान का था। वह दिल्ली हाईकोर्ट में विभिन्न क्षेत्रों में प्रैक्टिस करते थे, जिनमें संवैधानिक, डायरेक्ट टैक्सेशन, विवाचन, कमर्शियल, कम्पनी, भूमि व पर्यावरण शामिल थे। वह आयकर विभाग के वरिष्ठ तदर्थ वकील थे। उन्हें 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया और 2006 में स्थायी न्यायाधीश। बतौर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के पिछले पांच वर्षों के दौरान न्यायाधीश संजीव खन्ना का अनुभव विविध रहा। वह उस खंडपीठ के सदस्य थे, जिसने शनिवार 20 अप्रैल, 2019 को पूर्व सुप्रीम कोर्ट स्टाफ का केस सुना था, जिसने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश गोगोई के विरुद्ध यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये थे। न्यायाधीश संजीव खन्ना की अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट की न्यायाधीश लेकशमना चन्द्रा विक्टोरिया गौरी के पदोन्नति मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था। 
इस साल के शुरू में उन्होंने उस खंडपीठ का नेतृत्व किया था, जिसने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनावों के दौरान प्रचार करने के लिए ज़मानत प्रदान की थी, यह कहते हुए कि जीवन व स्वतंत्रता के अधिकार पवित्र हैं। हाल ही में संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन के ज़रिये ‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवाद’ शब्दों को शामिल करने के विरोध में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा था कि धर्मनिरपेक्षता हमेशा से ही संविधान का हिस्सा रही है और वह उसके बुनियादी ढांचे का अटूट तत्व है। अब जब ‘जनता की अदालत’ में न्यायाधीश संजीव खन्ना मुख्य न्यायाधीश की जिम्मेदारियां उठाने जा रहे हैं तो यह देखना शेष है कि वह महान न्यायाधीश बनने के संदर्भ में उन अलविदा शब्दों का पालन करते हैं या नहीं जो उनके अंकल ने हेरोल्ड लास्की की जस्टिस ओलिवर वेंडेल होल्मस को ट्रिब्यूट से कोट किये थे, ‘उसे न्याय का सेवक बनना है, मालिक नहीं, जनता की अंतरात्मा की आवाज़ बनना है न कि प्रभावी हितों का रक्षक ... उसे इस महान दुनिया का हिस्सा बनना है और इससे अलग भी रहना है।’
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