छोटे हों या बड़े, किसान लगाएं बांस के पेड़

बड़े किसानों के लिए तो हर तरह की बागवानी फायदेमंद होती ही है, लेकिन छोटे किसानों के लिए कुछ खास पेड़ ही होते हैं, जो उन्हें जबर्दस्त फायदा पहुंचाते हैं। बांस उनमें से ही एक है। बांस लगाकर और उसमें बहुत थोड़ा सा निवेश व देखभाल करके छोटे किसान भी आराम से अच्छा खासा लाभ कमा सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि बांस का पेड़ जहां किसानों के लिए फायदेमंद होता है, वहीं यह पर्यावरण और कृषि भूमि के लिए भी बहुत लाभकारी होता है। दरअसल बांस ग्रामिनीई कुल की एक अत्यंत उपयोगी घास है, जो भारत के प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र में पायी जाती है। लेकिन घास के बारे में हमारे दिलोदिमाग में जो प्रतिबिंब है, वह बांस से मेल नहीं खाता, इसलिए हम यहां बांस को घास नहीं बल्कि पेड़ ही कहेंगे। हालांकि बांस एक सामूहिक शब्द है, जिसमें उसकी अनेक जातियां शामिल होती हैं जैसे- बैंब्यूसा और डेंड्रोकेलैमस। लैटिन भाषा में बांस को बैंबू कहते हैं। 
बांस दुनिया का एक आश्चर्यजनक पेड़ है। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के मुताबिक बांस की कुछ प्रजातियां, एक दिन में लगभग 3 फिट तक बढ़ जाती हैं यानी देखा जाए तो करीब 1.5 इंच हर घंटा बांस का पेड़ बढ़ सकता है। सवाल है बांस कैसे बढ़ता है? दरअसल यह एक कालोनी प्लांट के रूप में विकसित होता है और अपनी बढ़वार के लिए बसंत ऋतु में सबसे ज्यादा ऊर्जा का उपयोग करता है। बांस की टहनियां मिट्टी से निकलती हैं और 60 दिनों तक लगातार लंबी व चौड़ी होती रहती हैं। 60 दिनों के बाद ज्यादातर प्रजातियों के बांस बढ़ना बंद हो जाते हैं और अब इनके विकास के लिए ऊर्जा फुनगी से इनकी जड़ों की तरफ आती है। बांस भले वनस्पतिशास्त्र की नज़र से घास हो, एक वनस्पति हो, लेकिन व्यवहार में यह एक पेड़ की तरह ही देखा और समझा जाता है। 
किसानों के लिए बांस हर लिहाज से एक कॉमर्शियल फसल है यानी एक ऐसा पौधा जो कम लागत और कम देखरेख के बावजूद उन्हें भरपूर फायदा देता है। खासकर छोटे किसानों के लिए तो बांस कमाई का बेहतरीन जरिया है। बांस की खेती करने के लिए, बांस की नर्सरी को एक खास गोलाकार जगह में लगाते हैं, जो जमीन से थोड़ा ऊपर टीले के रूप में उठी होती है, उसमें कई दर्जन बांस की नर्सरी लगा दी जाती है और फिर इस पूरे गोलाकार टीले को बांस की कोठी कहते हैं। बांस की यह कोठी चाहे उगे हुए बांसों से तैयार की जाए या बांस की नर्सरी लगाकर इसे बहुत ज्यादा देखभाल की ज़रूरत नहीं होती। बस इसे थोड़े-थोड़े दिनों में पानी देने की ज़रूरत होती है और स्थानीय कृषि वैज्ञानिक या ज़िला कृषि केंद्र में मौजूद किसी वनस्पतिशास्त्री के निर्देश पर थोड़ी खाद देने की भी ज़रूरत होती है। इसके बाद यह अपने आप ही तेजी से बढ़ता है। 
शुरु में बांस ढाई से तीन या तीन से पांच सालों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। बांस की एक-एक कोठी में कम से कम 60 से 100 तक बांस लगते हैं और जब दो से ढाई साल के बाद बांस परिपक्व हो जाते हैं, तो एक बांस कम से कम 200 रुपये का जाता है। इस तरह एक कोठी में कम से कम 10 से 12 हजार रुपये के बांस तैयार हो जाते हैं और इस तरह एक एकड़ में अगर 40 कोठियां लगी हों, जो कि आमतौर पर लग जाती हैं, तो 3 साल में एक एकड़ में 4 से 5 लाख रुपये के बांस आसानी से बेचे जा सकते हैं। लेकिन किसी भी बांस की कोठी के सारे बांस एक साथ नहीं कटते। करीब 50 से 60 प्रतिशत बांस ही एक समय पर परिपक्व होते हैं। इसलिए तीन साल बाद, एक एकड़ के बांस करीब ढाई से तीन लाख रुपये में बिक जाते हैं और फिर यह कई सालों तक बिना नया पौधा लगाए भी कमाई का सिलसिला बना रहता है। क्योंकि बांस एक बार लगाने पर कम से कम चार बार कटे हुए बांस से स्वत: फूटता और विकसित होता रहता है।
बांस भारत के हर कोने के मौसम में अपने को अनुकूलित कर लेता है, क्योंकि बांस हर तरह की मिट्टी और जलवायु में न केवल उग सकता है बल्कि आराम से विकसित होता है। चाहे बारिश वाली जगह हो या शुष्क जगह हो या मध्यम जलवायु का क्षेत्र ही क्यों न हो, बांस की खेती हर जगह खूब अच्छी तरह से होती है। अपने यहां पहले इसकी कॉमर्शियल खेती सिर्फ उत्तर पूर्वी राज्य असम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड आदि में ही होती थी, लेकिन अब देश के हर हिस्से में किसान इसकी खेती करते हैं और अच्छी खासी कमाई करते हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ हिस्सों में भी बांस की कॉमर्शियल खेती होती है। बांस सिर्फ किसानों के लिए ही नहीं जमीन के लिए भी बहुत फायदेमंद है। यह मिट्टी के कटाव को रोकता है। इसकी जड़ें गहरी और विस्तृत होती हैं, जो जमीन के नीचे तक जाकर मिट्टी को पकड़कर रखती हैं। बांस लगाये जाने से कुछ सालों बाद बंजर भूमि भी उपजाऊ बन जाती हैं। 
बांस की जड़ें चूंकि जमीन में नमी बरकरार रखने में मदद करती है, इसलिए जहां बांस होते हैं, वहां की मिट्टी में पानी को एकत्र रखने की क्षमता बढ़ जाती है यानी बांस का पेड़ वर्षा जल का सबसे अच्छा रिजर्वायर होता है। बांस कार्बनडाइऑक्साइड को तेज़ी से और काफी ज्यादा सोखता है, इसलिए यह पर्यावरण को शुद्ध करने में मददगार है। यह ऑक्सीजन भी बड़े पैमाने पर पैदा करता है, इसलिए प्राकृतिक रूप से यह एयर प्यूरीफायर है। किसानों के लिए आर्थिक फायदे के अलावा बांस का पेड़ अपने इर्दगिर्द की खेती को उपजाऊ बनाता है तथा वातावरण को शुद्ध रखने के कारण बांस की खेती के इर्दगिर्द होने वाले फलों और सब्जियों की खेती ज्यादा शुद्ध और ज्यादा ताजगी से भरी होती है। सबसे बड़ी बात यह है कि बांस की खेती करने पर किसानों को भारत सरकार सब्सिडी भी देती है। राष्ट्रीय बांस मिशन के अंतर्गत सब्सिडी प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता भी किसानों को दी जाती है। इसके लिए उन्हें अपने स्थानीय कृषि केंद्र से सम्पर्क करना होगा। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर