रेखा के शुभचिंतक थे विनोद मेहरा
विनोद मेहरा का जन्म 13 फरवरी, 1945 को अमृतसर में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उनकी मां कमला मेहरा गृहिणी थीं और पिता परमेश्वरदास मेहरा व्यापारी थे, जिनके कुछ व्यापारिक हित बॉम्बे (अब मुम्बई) में थे, इसलिए देश की आज़ादी के तुरंत बाद मेहरा परिवार अमृतसर से बॉम्बे शिफ्ट हो गया। विनोद देखने में सुंदर व प्यारे बच्चे थे, इसलिए मात्र 10 वर्ष की आयु में उन्हें ‘अदल-ए-जहांगीर’ फिल्म में काम करने का अवसर मिला। यह 1955 की बात है और वह एक बाल कलाकार के रूप में स्थापित हो गये। अनेक फिल्मों में काम किया, लेकिन साथ ही अपनी शिक्षा पर भी ध्यान देते रहे। जब जवान हुए तो गोल्ड फील्ड मर्र्केंटाइल कम्पनी में एग्जीक्यूटिव हो गये। बहरहाल, जब 1965 में यूनाइटेड प्रोडूसर्स और फिल्मफेयर ने आल इंडिया टैलेंट कांटेस्ट आयोजित किया, जिसमें 10,000 से अधिक प्रतियोगियों ने भाग लिया था और जिसे राजेश खन्ना ने जीता था, तो उसमें विनोद मेहरा भी एक प्रतियोगी थी और वह रनर-अप रहे थे। इसके बाद वह एक दिन बॉम्बे के गेलार्ड रेस्टोरेंट में बैठे हुए थे कि रूप के शौरी ने उन्हें स्पॉट किया और उन्हें फिल्मों में काम करने का ऑफर दिया। विनोद ने नौकरी छोड़ दी और बॉलीवुड ज्वाइन कर लिया, विशेषकर इसलिए भी कि उनकी बड़ी बहन शारदा तब तक अनेक फिल्मों में अपनी प्रतिभा के जलवे बिखेर चुकी थीं। यह 1970 की बात है यानी प्रतियोगिता के पांच साल बाद। एक लीड एक्टर के तौर पर विनोद का कॅरियर 1971 में फिल्म ‘एक थी रीटा’ से आरंभ हुआ जोकि अंग्रेज़ी नाटक ‘ए गर्ल कॉल्ड रीटा’ पर आधारित थी। इस फिल्म में तनूजा उनकी हीरोइन थीं। यह फिल्म ज़बरदस्त हिट रही और इसके बाद विनोद ने कभी अपने कॅरियर में पीछे मुड़कर नहीं देखा। विनोद ने अपने करियर में लगभग 100 फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘अमर प्रेम’, ‘लाल पत्थर’, ‘नागिन’, ‘जानी दुश्मन’, ‘घर’, ‘स्वर्ग नरक’, ‘साजन बिना सुहागन’, ‘खुद्दार’ आदि सफल फिल्में शामिल हैं। शक्ति सामंत की फिल्म ‘अनुराग’ (1973), जिसमें विनोद के साथ मौसमी चटर्जी थीं, ने उन्हें एक अच्छे अभिनेता के रूप में स्थापित किया।
अपने अभिनय कौशल के झंडे गाड़ने के बाद विनोद मेहरा निर्माता निर्देशक भी बने। उन्होंने 1980 के दशक के आखिर में फिल्म ‘गुरुदेव’ बनानी शुरू की, जिसमें श्रीदेवी, ऋषि कपूर व अनिल कपूर प्रमुख भूमिकाओं में थे। लेकिन यह फिल्म पूरी न हो सकी क्योंकि 30 अक्तूबर, 1990 को विनोद मेहरा को भयंकर दिल का दौरा पड़ा और वह मात्र 45 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह गये। बाद में राज सिप्पी ने फिल्म ‘गुरुदेव’ को पूरा करके 1993 में रिलीज़ किया। विनोद के निधन के बाद उनकी अनेक रुकी हुई फिल्में भी थिएटरों में रिलीज़ की गईं, जो उनकी यादों को समर्पित की गईं, जैसे ‘पत्थर के फूल’ (1991), ‘इंसानियत’ (1994) और ‘औरत औरत औरत’ (1996)। विनोद मेहरा की बेटी सोनिया मेहरा ने भी कई फिल्मों में काम किया है और उनके बेटे रोहन मेहरा ने 2018 में निखिल अडवाणी की फिल्म ‘बाज़ार’ से अपना डेब्यू किया।
सेक्रेड हार्ट बॉयज हाई स्कूल, सांता क्रूज़ से स्कूलिंग करने व सेंट ज़ेवियर कॉलेज, मुंबई से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले विनोद मेहरा निश्चितरूप से एक उच्चकोटि के सफल कलाकार थे, लेकिन अपनी अदाकारी की बजाय वह अपनी निजी ज़िंदगी को लेकर अधिक चर्चा में रहे। उनके बार में झूठी व सच्ची, दोनों किस्म की चर्चाएं फिल्मी पत्रिकाओं में खूब मिर्च मसाला लगाकर प्रकाशित की जाती थीं। एक चर्चा, जो संभवत: अफवाह ही थी, यह भी थी कि वह पैसे के एवज़ में रईस महिलाओं को यौन सुख प्रदान करते थे। ऐसा गौण ही लगता है कि एक सफल कलाकार, जिसके पास पैसे की कोई कमी न थी, ऐसी हरकत करेगा। हां, यह हो सकता है कि उनकी गुड लुक्स की वजह से महिलाएं उनकी ओर आकर्षित होती हों, जोकि उनकी ‘तीन शादियों’ से भी ज़ाहिर होता है।
विनोद मेहरा ने रेखा के साथ ‘घर’ आदि अनेक सफल फिल्में की थीं, जिससे 1970 के दशक के मध्य में वह वास्तव में उनके बहुत करीब आ गये थे। यह चर्चा आम थी कि विनोद व रेखा ने आपस में शादी कर ली थी। लेकिन 2004 में सिमी ग्रेवाल से इंटरव्यू में रेखा ने इस तथाकथित शादी के होने से स्पष्ट इंकार किया और विनोद मेहरा को अपने शुभचिंतक के तौर पर संबोधित किया। इसके बावजूद रेखा की अनाधिकृत बायोग्राफी ‘द अनटोल्ड स्टोरी’ में यास्सर उस्मान ने लिखा है कि कलकत्ता में शादी करने के बाद विनोद मेहरा रेखा को अपनी मां से मिलाने के लिए बॉम्बे में अपने घर लेकर गये। रेखा ने जब मां के चरण स्पर्श करने चाहे तो कमला मेहरा ने उन्हें पीछे धकेल दिया। रेखा ने अभी तक इस तथाकथित घटना का खंडन नहीं किया है।
विनोद मेहरा की पहली शादी मीना ब्रोका से हुई थी, जिसकी व्यवस्था उनकी मां ने की थी। यह विवाह सम्पन्न न हो सका क्योंकि शादी के तुरंत बाद विनोद को दिल का दौरा पड़ गया था। जब वह ठीक हुए तो बिंदिया गोस्वामी के साथ भाग गये, जो अनेक फिल्मों में उनकी हीरोइन रही थीं। मीना के पास तलाक के अतिरिक्त कोई विकल्प न रहा। विनोद व बिंदिया का रिश्ता भी जल्द ही टूट गया और बाद में बिंदिया ने निर्देशक जे.पी. दत्ता से शादी कर ली। विनोद ने 1988 में केन्या-स्थित ट्रांसपोर्ट व्यापारी की बेटी किरण से शादी कर ली। यह शादी विनोद की मृत्यु तक चली और इससे दो बच्चों सोनिया व रोहन ने जन्म लिया। सोनिया का जन्म 1988 में हुआ, जबकि रोहन का जन्म विनोद के निधन के बाद हुआ। विनोद के निधन के बाद उनकी विधवा किरण अपने पैरेंट्स व बहन के पास केन्या लौट गईं।
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