70 के दशक के मशहूर चाइल्ड एक्टर रहे मास्टर राजू
प्यारा व चुलबुला सा बाल कलाकार मास्टर राजू या राजू श्रेष्ठ आपको अवश्य याद होगा। उनकी लगभग 200 में से कोई न कोई फिल्म आपने अवश्य देखी होगी, विशेषकर इसलिए कि अपने दौर में वह बहुत अधिक पॉपुलर थे और राजेश खन्ना, संजीव कुमार जैसे सुपर स्टार्स के संग उनकी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर खूब कमाल किया था। मास्टर राजू का जन्म फहीम अजानी के रूप में 15 अगस्त 1966 को दक्षिण मुंबई के डोंगरी में हुआ था। हालांकि उनके परिवार का फिल्मों से कोई संबंध न था, लेकिन डोंगरी एक ऐसी जगह है जो कास्टिंग एजेंट्स से भरी हुई है, इसलिए अनेक बाल कलाकार व जूनियर आर्टिस्ट्स इसी क्षेत्र से आते हैं।
बहरहाल, 1970 के शुरुआती दशक में गुलज़ार अपनी फिल्म ‘परिचय’ बनाने की तैयारी में लगे हुए थे, जिसमें उन्हें एक बाल कलाकार की ज़रूरत थी। गुलज़ार को एक अलग चेहरा चाहिए था, जोकि उस समय बॉलीवुड में काम कर रहे बाल कलाकारों से एकदम अलग हो। इसलिए एक जूनियर कास्टिंग एजेंट ने राजू के पिता से संपर्क किया कि क्या वह अपने बेटे को एक बाल कलाकार के रूप में फिल्मों में काम करने देंगे? राजू के पिता को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन काफी ना-नुकर के बाद वह आखिरकार तैयार हो गये। राजू को पाली हिल, बांद्रा स्थित गुलज़ार के दफ्तर में ले जाया गया, जहां ऑडिशन चल रहे थे। उस अनुभव को याद करते हुए राजू बताते हैं, ‘ऑडिशन के लिए आये अन्य बच्चों की तुलना में मेरी कोई तैयारी नहीं थी, इसलिए मैं अपने आपको कमतर समझ रहा था। लेकिन गुलज़ार भाई ने मुझमें क्षमता देखी और मेरे प्राकृतिक स्वभाव को पसंद किया बजाये उन बच्चों के जो आवश्यकता से अधिक तैयारी करके आये थे। आखिरकार मुझे फिल्म ‘परिचय’ में कास्ट कर लिया गया और मेरे अभिनय को खूब पसंद किया गया, विशेषकर उस सीन को जिसमें मैं ‘क’ से ‘करना है’ कहता हूं और इस प्रकार मेरी फिल्मोद्योग में सफल शुरुआत हुई।’
यह भी एक दिलचस्प कहानी है कि उनका नाम मास्टर राजू कैसे पड़ा। ‘परिचय’ की शूटिंग के दौरान 5 साल के राजू जो किरदार निभा रहे थे, उसका नाम ‘गुड्डू’ रखा गया था, जो फिल्म के हीरो संजीव कुमार को कुछ खास अच्छा नहीं लगा। उन्होंने गुलज़ार को सुझाव दिया कि फिल्म में बच्चे का नाम राजू रखा जाये। गुलज़ार ने उनकी बात मान ली। फिल्म सफल हो गई और फहीम की मास्टर राजू के रूप में यात्रा शुरू हो गई। एक बाल कलाकार के रूप में मास्टर राजू ने ‘चितचोर’, ‘दीवार’ आदि दर्जनों अति सफल फिल्मों में काम किया। जब उनकी उम्र बढ़ी तो उन्हें वह भूमिकाएं न मिल सकीं, जो उनके बचपन की सफलता का मुकाबला कर सकती हों। बाल कलाकार के रूप में उनकी फीस लगभग सुपरस्टार जितनी ही थी। ‘चितचोर’ की शूटिंग के दौरान उन्होंने राजश्री प्रोडक्शन से इससे भी अधिक फीस की मांग रखी, लेकिन निर्देशक बासु चैटर्जी ने उन्हें कम फीस लेने के लिए राज़ी कर लिया और उन्होंने ‘चितचोर’ में अपने अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।
बहरहाल, वयस्क होने पर राजू की इच्छा थी कि उन्हें भी सुपरस्टार्स जैसी मुख्य भूमिकाएं मिलें, इसलिए उन्होंने अनेक ऑफर ठुकरा दिये, जिनमें हीरो के रोल भी थे। वह बाल कलाकार के रूप में हासिल की गई कामयाबी से अधिक की तलाश में थे। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था, ‘जब मैं बड़ा हो रहा था तो मुझे बॉलीवुड में अपने लिए एक विशिष्ट स्थान चाहिए था। मुझे लीड भूमिकाएं ऑफर हुईं, लेकिन मैंने उन्हें स्वीकार नहीं किया, इस उम्मीद में कि मुझे कोई दिलचस्प अवसर मिलेगा। मैं प्राण, अनुपम खेर व नाना पाटेकर के पदचिन्हों पर चलना चाहता था। लेकिन मेरा समय आने तक चरित्र अभिनेताओं के लिए जगह लगभग लुप्त हो गई थी। जो भूमिकाएं केवल कॉमेडी, खलनायकी या मज़बूत चरित्रों के लिए थीं, जो प्रभाव डालती, वह निरंतर कम होती चली गईं।’
इतना खैर अच्छा हुआ कि बाल कलाकार के रूप में राजू ने जो पैसा कमाया था, उसे उनके पिता ने अच्छी तरह से निवेश किया, इसलिए यह तो सुनिश्चित हो गया कि पैसे की कोई चिंता न रहे। यही कारण रहा कि राजू को अन्य बाल कलाकारों की तरह दो जून की रोटी के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा। अपने अहंकार की वजह से उनका फिल्मी करियर तो पटरी से उतर गया, लेकिन टीवी में उन्हें कामयाबी मिली और उन्होंने कई सफल टीवी शोज़ में काम किया। राजू के पिता युसूफ चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और उनकी मां मेहरुन्निसा स्कूल टीचर हैं। उनका बड़ा भाई परवेज़ अमरीका में रहता है और बड़ी बहन का 25 साल पहले निधन हो गया। वर्तमान में राजू ‘ज़िद्दी दिल माने न’ में प्रेम देशप्रेमी की भूमिका निभा रहे हैं।
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