क्या संकेत दे रही हैं सोना-चांदी की बढ़ती कीमतें ?

गत 12 दिसम्बर, 2025 को सोना प्रति 10 ग्राम 4,114 रुपये बढ़ कर अपने अब तक के सबसे ऊंचे स्तर 1,32,710 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गया। इंडिया बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन के मुताबिक महज एक दिन पहले 24 कैरेट सोना 1,28,596 रुपये प्रति 10 ग्राम था जबकि इसी साल 17 अक्तूबर को यह तब तक के सबसे ऊंचे स्तर 1,30,874 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया था। यह अकेले सोने की लपलपाती चमक भर नहीं है, चांदी भी इन्हीं दिनों लगातार अपनी चमक चौंधिया रही है। 12 दिसम्बर, 2025 को चांदी की कीमत 6,899 रुपये बढ़कर 1,95,180 रुपये प्रति किलो हो गई जबकि ठीक एक दिन पहले यह 1,88,281 रुपये प्रति किलो थी। अगर पिछले 12 दिनों को देखें तो इस दौरान चांदी 20,000 रुपये प्रति किलो बढ़ चुकी है। 1 दिसम्बर, 2025 को एक किलो चांदी 1,75,180 रुपये की थी और 5 दिसम्बर, 2025 को यह 1,79,025 रुपये प्रति किलो हो गई। इस तरह देखें तो अकेले सोना ही अपनी चमक से अंधा नहीं कर रहा बल्कि चांदी भी लगातार अपनी चमक से चौंधिया रही है। जब मैं ये पंक्तियां लिख रहा हूं, उस समय चांदी एकाएक उछाल मारकर 2 लाख रुपये प्रति किलो पहुंच गई थी, लेकिन एक ही घंटे भीतर यह 8000 रुपये प्रति किलो टूट कर 12 दिसम्बर, 2025 की दरों से भी थोड़ा नीचे आ गई थी।  
सवाल है आखिर सोने-चांदी में लगातार बनी यह चमक क्या इशारा करती है। यह महज इस बात का संकेत नहीं है कि देश में तमाम लोगों की क्रय शक्ति इतनी मज़बूत है कि वह सोना और चांदी किसी भी कीमत पर खरीद सकते हैं। सोना-चांदी की इस दिनोंदिन बढ़ती चमक में कहीं न कहीं बेरौनक अर्थव्यवस्था की आशंकाएं भी छिपी हैं। दरअसल जब सोना-चांदी की कीमतें लगातार बढ़ती हैं और लंबे समय तक यह बढ़त न सिर्फ  बरकरार रहती है बल्कि धीरे-धीरे ऊपर की तरफ  ही बढ़ रही होती है, तो यह महज बाज़ार में लोगों की क्रय क्षमता की निशानी और सिर्फ एक कमोडिटिडी बाज़ार की खबर भर नहीं होती बल्कि यह समूची अर्थव्यवस्था के मूड और उसकी दिशा का भी संकेत देती है। भारत जैसे देश में इसके अर्थ यूं तो अलग-अलग स्तरों पर सकारात्मक भी हैं, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इस चमक में अर्थव्यवस्था के बेरौनक होने की आशंका भी छिपी है। हमें सोना-चांदी की दिन पर दिन बढ़ती चमक को समझने के लिए इस चमचमाहट में छिपे संकेतों के कई परतों को एक क्रम में देखना होगा। सबसे पहले अगर सोना को देखें तो इसकी लगातार चमक का बढ़ना एक अन्जानी अनिश्चितता और डर से जुड़ा होता है। 
इसमें कोई दो राय नहीं है कि सोना और चांदी को पूरी दुनिया में ‘सेफ  हेवन एसेट’ माना जाता है। लेकिन जब सोने की चमचमाहट और चांदी की चकाचौंध दिन पर दिन बढ़ती चली जाए, तो इसका मतलब यह होता है कि लोगों का शेयर बाज़ार में भरोसा घट रहा है। साथ ही इसका मतलब यह भी होता है कि वैश्विक या घरेलू आर्थिक अनिश्चितता बढ़ रही है। युद्ध, मंदी, भू-राजनीतिक तनाव और दुनियाभर में गहराते वित्तीय संकट, कहीं न कहीं सोने की चमचमाहट और चांदी की चकाचौंध के पीछे बड़ा कारण हैं। अगर हम सिर्फ भारत के संदर्भ में देखें तो सोने और चांदी की लगातार बढ़ रही कीमतों से आशय है कि लोग प्रोडक्टिव निवेश यानी उद्योगों, स्टार्टअप और शेयर बाज़ार से निकालकर सुरक्षित और गैर उत्पादक संपत्ति यानी सोना-चांदी में लगा रहे हैं। इससे भले यह पता चलता हो कि लोगों के पास सोना-चांदी खरीदने की क्षमता है, लेकिन इस प्रवृत्ति में अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर चेतावनी और संकेत भी छिपा होता है कि लोगों को देश के औद्योगिक विकास दर और शेयर बाज़ार में उतना भरोसा नहीं है, जितना उनके फलने-फूलने के लिए होना चाहिए। इसलिए लोग सोना और चांदी जैसी गैर-उत्पादक संपत्ति में अपना निवेश कर रहे हैं। 
सोना और चांदी में लगातार जारी महंगी दर इस बात का भी संकेत है कि हमारी मुद्रा की क्रयशक्ति घट रही है। हाल में जिस तरह डॉलर के विरुद्ध रुपया 90 के आंकड़े को भी पार कर गया है, उस चिंता का भी सोने और चांदी की बढ़ती कीमतों से सीधा-सीधा रिश्ता है। जब सोने और चांदी की दरों में रातोंरात अप्रत्याशित वृद्धि होने लगे, तो हमें इस बात से भी चिंतित होना चाहिए कि हमारे आसपास ही कहीं महंगाई ठिठकी हुई है और किसी भी समय लंबे-लंबे कदम बढ़ा कर ऊपर की ओर चढ़ सकती है। जब सोना और चांदी किसी भी कीमत पर लोग खरीदने लगें तो इसका मतलब यह भी होता है कि उन्हें विभिन्न बैंक निवेशों और उत्पादों में विकास की उम्मीद कम हो रही है। तभी लोग दूसरे क्षेत्रों से पैसा निकालकर चांदी और सोना जैसे स्थायी क्षेत्र में निवेश करने के बावत सोच रहे हैं। वास्तव में अगर फिक्स डिपोजिट या बॉन्ड का बाज़ार संतोषजनक ढंग से काम कर रहा होता है, तो लोग इस तरह सोना और चांदी की तरफ  नहीं देखते। जब लोग किसी भी कीमत पर सोना और चांदी खरीदने के लिए उद्धत हो रहे हों, तो समझना चाहिए यह आर्थिक स्थिरता के लिए एक नकारात्मक संकेत है।
जब इन कीमती धातुओं की बिक्री दर लगातार बढ़ती है, तो देश के व्यापार खाते में घाटा बढ़ने की आशंका हो जाती है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा सोना आयातक देश है। हालांकि इसके पीछे एक कारण सदियों से हमारी सोने के प्रति ललक है। लेकिन बात कुछ भी हो, यह स्थिति एक समय के बाद देश के वित्तीय ढांचे के सामने कठिन सवाल खड़ा कर सकती है, क्योंकि जब सोने की कीमतें बढ़ती हैं, तो हमारा आयात बिल बढ़ जाता है। हमारे चालू व्यापार खाते का घाटा बढ़ जाता है और रुपये में लगातार तनाव बना रहता है। उसका नतीजा ये होता है कि रुपया बेहद टूट चुका होता है। आयात महंगे हो गये होते हैं, जिसका साझा परिणाम यह होता है कि हमारी अर्थव्यवस्था डावांडोल होने लगती है। रुपये की कमजोरी को काउंटर करके एक नकारात्मक रूझान तो बनाया जा सकता है, लेकिन अगर दीर्घकालिक स्तर पर हम अपनी अर्थव्यवस्था को ठोस आधार मुहैय्या कराना चाहते हैं तो हमें न केवल सोना-चांदी की संस्कृति और सुरक्षा की भावना से ऊपर उठना होगा बल्कि अपने मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को और अधिक प्रोत्साहित करना तथा सुविधाएं देनी होंगी।
अगर समग्रता में देखें तो पिछले एक पखवाड़े से जिस तरह सोना और चांदी की कीमतें लगातार ऊपर जा रही हैं, तो यह कोई अच्छे संकेत नहीं हैं। इनसे हमारी अर्थव्यवस्था के नकारात्मक संकेत मिलते हैं। जिस तरह से हाल के सालों में हमारा ज्वैलरी एक्सपोर्ट बढ़ा है, उससे हमें अर्थव्यवस्था के प्रति हिचक के संकेत मिलने लगते हैं। लब्बोलुआब यह कि सोने और चांदी की चमक हमेशा आपकी मुस्कुराहट और आंखों में आयी चमक का सबब ही नहीं बनती उल्टे इसके नुकसान भी होते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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