चित्रकार तथा लेखक देव का चले जाना
फिल्मी दुनिया के प्रसिद्ध हस्ताक्षर धर्मेन्द्र के निधन को अभी एक माह भी नहीं हुआ कि जगराओं में जन्मे तथा स्विट्ज़रलैंड निवासी चित्रकार देव का भी निधन हो गया। वह ईश्वर चित्रकार की भांति चित्रकारी के अतिरिक्त साहित्य रचना भी करते थे। उन्होंने 1969 में लैनिन बारे लम्बी नज़्म ‘मेरे दिन दा सूरज’ लिखी और अगले वर्ष ‘विद्रोह’ नामक काव्य संग्रह से पंजाबी साहित्य संसार में अपना अहम स्थान बना लिया। ‘दूसरे किनारे दी तलाश’ (1978), ‘मताबी मिट्टी’ (1983), ‘प्रश्न ते परवाज़’ (1992) तथा ‘शब्दांत’ (1999) तथा उनके अन्य काव्य संग्रह भी इतने लोकप्रिय हुए कि इनमें से ‘शब्दांत’ को भारतीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने 2001 में पुरस्कार देकर सम्मानित किया। वैसे भाषा विभाग पंजाब उन्हें 1992 में शिरोमणि विदेशी पंजाबी साहित्यकार की उपाधि दे चुका था। इन दिनों में ही पंजाबी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक सुतिन्द्र सिंह नूर तथा रघबीर सिंह ने उनके बारे ‘देव कला ते काव्य’ नामक रचना लिख कर उनकी चित्रकारी एवं शायरी को ऐसे अंदाज़ में पेश किया था कि वह पूरी दुनिया के पंजाबियों के चहेते पात्र बन गए। 1999 में सती कुमार तथा हरिनाम की तैयार की ‘संदेह’ भी इस कथन की पुष्टि करती है। यह भी नोट करने वाली बात है कि उनकी चुनिंदा पंजाबी कविताओं का डेनिएला तथा हरजीत गिल जोड़ी द्वारा किया गया फ्रांसीसी अनुवाद फ्रांस की साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ तथा सराहा गया।
अपनी सूक्ष्म कविताओं के कारण पंजाबी साहित्य संसार में उपलब्धि हासिल करने वाले देव अपनी अनूठी चित्रकारी के कारण अधिक जाने जाते हैं। उनकी कला शैली सूक्ष्म भी है और उत्तम भी। उनकी इस प्रतिभा ने उन्हे भारत से दूरवर्ती देशों में इतना घुमाया कि वह अंत में स्विट्ज़रलैंड से स्थायी निवासी बन गए और उन्होंने रूबन में एक बड़ा घर लेकर अपना ठिकाना बना लिया। इस घर में लगे चित्रों सहित आर्ट गैलरी के लिए भी खुला स्थान है।
स्विट्ज़रलैंड में रहते हुए देव ने संसार की जिन आर्ट गैलरियों में अपनी चित्र प्रदर्शनियां लगाईं, उनका पूरा विवरण तो मेरे पास नहीं, परन्तु 1990 तक जहां-जहां भी वह अपनी कलाकृतियां लेकर गए, उनमें से कुछ के नाम अफ्रीकन आर्ट हैरिटेज (नैरोबी), गैलरी मार्बक (बर्न), गैलरी हफ्शपिड (ज्यूरिक), गैलरी हौफीमन (कोलन), गैलरी एच (बर्सोडर्फ), गैलरी लोएया (बर्न), गैलरी जोहाना रिकाड (न्यूमबर्ग), गैलरी स्वेटलाना (मंचन), गैलरी एट्रीयम (बेसल), आर्ट गैलरी (फ्रैंकफर्ट), गैलरी अगरास (न्यूयार्क) तथा गैलरी एक्सपो आर्ट (बारमिलोना) हैं।
देव का विवाहित जीवन चाहे अधिक समय तक चल नहीं सका, परन्तु इस विवाह से उनका एक बेटा है, जो इस समय 55 वर्ष का है और नई दिल्ली में रहता है। 1983 में नई दिल्ली सरकार ने दो भारतीय लेखकों को 15 दिन के फ्रांस दौरे पर भेजा था। मेरे साथ तमिल लेखिका वासंती (पंकजम सुंदरम) थीं।
मैंने और वासंती ने इस दौरे में इटली, ऑस्ट्रिया और स्विट्ज़रलैंड को भी शामिल कर लिया था और हम दोनों एक दिन देव के घर रुके और उनकी मेहमान नवाज़ी का आनंद लिया। अगर देव स्विट्ज़रलैंड में मेरा जान-पहचान वाला था, तो ऑस्ट्रिया में मेरे कैंप कॉलेज दिल्ली का सहपाठी दलीप सिंह था। हम इटली क्यों गए, उसका अनुमान लगाना कठिन नहीं। यहां हम माइके लैंजलो के दीवार चित्र देखना चाहते थे। बड़े चर्च की छत पर उनके बनाए चित्र इतने आकर्षक हैं कि देखने वाले को ऐेसे लगता है जैसे वह स्वयं भी छत की ओर उड़ान भर रहा होता है। देखने में यह भी आया है कि यहां श्रद्धा और कला के सुमेल ने देश-विदेश से आए यात्रियों को मंत्रमुगध कर रखा था। यह भी बताना बनता है कि यह चित्र छोटे से उस देश में हैं जिसका कुल क्षेत्रफल चप्पा मील से कम है। खाना-पीना तथा बिजली तक आयात करने वाले इस छोटे-से देश की डाक-तार प्रणाली, रेडियो स्टेशन, बैंकिंग सिस्टम, टक्साल, सिक्का तथा समाचार-पत्र सब अपने हैं। वेटिकन नामक यह देश इसाई धर्म के प्रमुख संप्रदाय रोमन कैथोलिक का मुख्यालय है और यहां के पोप के आदेश के बिना इस समूचे संप्रदाय का पत्ता भी नहीं हिलता। चाहे वह विश्व के किसी भी कोने में हो। हैरानी की बात यह है कि यहां के गिरजा घरों की चित्रकारी के लिए माइके लैंजलो तथा रफील जैसे विश्व प्रसिद्ध चित्रकारों की सेवाएं ली गई थीं। जगह-जगह ठोकर खाने वाला माइके लैंजलो 60 वर्ष का था जब उसे पोप पाल-तीसरे ने अपना सरकारी मूर्तिकार बनाया।
मैं तथा वासंती वेटिकन के बाद ही देव के स्विट्ज़रलैंड वाले ठिकाने पर पहुंचे थे। स्वाभाविक था कि हम देव के चित्रों में भी वेटिकन वाला प्रभाव ढूंढ रहे थे, जहां देव से मेरा अपनापन सोने पर सुहागे का काम कर रहा था। 5 सितम्बर, 1947 में जन्मे देव का अचानक निधन हो जाना हैरान करता है। यह भी पता चला है कि अंतिम सांस लेते समय वह सदैव की तरह इतने विशाल घर में अकेले ही थे, जब उन्हें दिल का दौर पड़ा तो वह फर्श पर गिर गए तथा वहीं पड़े रह गए। देखने वाले उसका दरवाज़ा तोड़ कर भीतर गए तो उन्होंने देखा कि उनके मृत शरीर पर पुस्तकों का बड़ा रैक पड़ा था। हो सकता है उन्होंने रैक को हाथ डाला हो, परन्तु रैक ने साथ नहीं दिया। अब हम भी उनकी आत्म की शांति मांगने के अलावा कुछ नहीं कर सकते।
अंतिका
(ईश्वर चित्रकार)
दुश्मन बनी है हुण तां अपनी इकल्लता ही
मंज़िल ते आ गया तां होरां तों मैं अगेरे।



