मतदाता सूचियों में संशोधन

भारत के चुनाव आयोग ने जून मास में देश भर की मतदाता सूचियों का विशेष संशोधन करवाने की घोषणा की थी। इस घोषणा की एकाएक ही व्यापक स्तर पर आलोचना होना शुरू हो गई थी। उस समय बिहार विधानसभा चुनावों को कुछ मास ही शेष रहते थे। ज्यादातर विपक्षी दलों और विशेष रूप से कांग्रेस के लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने स्थान-स्थान पर व्यापक स्तर पर भाजपा की ओर से ‘वोट चोरी’ करने के ढंग-तरीकों का विस्तार देते हुए इस चोरी में चुनाव आयोग को भी भागीदार बताया था। उसके बाद लगातार ही राहुल गांधी और उनके साथियों और उनकी पार्टी ने ‘वोट चोरी’ के आरोप लगा कर देश भर में धरना-प्रदर्शन किया था। ‘वोट चोरी’ को आज भी राहुल और उनके साथी लगातार हर मंच पर उठाते आ रहे हैं।
बिहार चुनाव सिर पर होने के कारण चुनाव आयोग की अधिक आलोचना शुरू हो गई थी और जानबूझ कर चुनावों के समय बिहार में इस संशोधन के लिए उसे निशाना बनाया जाता रहा था। जब वहां लाखों ही वोट काट दिए गए तो यह मामला देश की सर्वोच्च अदालत में भी पहुंचा था। भिन्न-भिन्न पार्टियों के अतिरिक्त इस संबंध में दर्जनों और भी याचिकाएं सर्वोच्च अदालत में दायर करवाई गई थीं, जिनका निपटारा अभी भी होना शेष है। बिहार चुनावों के परिणामों के बाद भी चुनाव आयोग यह दावा करता आया था कि किसी भी तरह गलत ढंग से काटे गए मतदाताओं की सूची उसे दी जाए अथवा अदालत में इस आधार पर मामले दर्ज करवाए जाएं परन्तु इन परिणामों के बाद चुनाव आयोग के पास या अदालत में कोई भी शिकायत दर्ज नहीं करवाई गई थी। आगामी वर्ष में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडू में चुनाव होने जा रहे हैं। इस कारण भी इस वोट संशोधन की प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग को निशाना बनाया जा रहा है। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐसे संशोधन का लगातार विरोध किया है। उनका यह विरोध अभी भी जारी है।
विगत दिवस चुनाव आयोग ने जिन राज्यों में यह प्रक्रिया निर्धारित अंतिम तिथि में पूरी होने की सम्भावना नहीं थी, उनमें मतदाता सूचियों के संशोधन के लिए समय में और वृद्धि कर दी है। ऐसे राज्यों में तमिलनाडू, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और केन्द्र शासित प्रदेश अंडेमान निकोबार आदि शामिल हैं, जबकि पश्चिम बंगाल, गोवा, पुडुचेरी, लक्षदीप और राजस्थान में संशोधन के लिए समय में वृद्धि नहीं की गई। चुनाव आयोग ने यह भी दावा किया है कि इन राज्यों में ज्यादातर काम पूरा हो चुका है। चुनाव आयोग के अनुसार सभी राजनीतिक दलों को लिखित रूप में यह कहा गया है कि बूथ स्तर पर अपने एजेंटों को नियुक्त करके तैयार की गई सूचियों की पूरी तरह जांच-पड़ताल कर लें। इसके बाद ही निर्धारित तिथि पर ये प्रकाशित की जाएंगी। इस संबंध में सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश सूर्या कांत ने भी कहा है कि चुनाव आयोग द्वारा यह संशोधन 20 वर्ष के बाद ही किया जा रहा है और इनके सभी कामकाजी पक्षों पर भी विस्तारपूर्वक विचार-विमर्श किया जा रहा है, और यह भी कि यह संशोधन वार्षिक स्तर पर नहीं किया जाएगा। जहां तक पश्चिम बंगाल का संबंध है, इसमें अब तक वर्ष 2002 की मतदाता सूची के आधार पर 30 लाख मतदाताओं के नाम काटे गए हैं। पश्चिम बंगाल में इस समय 7.6 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से काटे गए मतदाताओं की प्रतिशतता 4 प्रतिशत ही बनती है। चुनाव आयोग की ओर से इस संशोधन के लिए मुख्य रूप में अनुपस्थित या अपना स्थान बदल गए राज्यों या दोहरे नामों वाले और मृतक हो चुके मतदाताओं को आधार बनाया गया है। चुनाव आयोग ने यह पुन: दोहराया है कि सभी पार्टियों को प्रकाशित की जाने वाली सूचियों की जांच करने का पूर्ण अधिकार है।
हम समझते हैं कि भारतीय चुनाव आयोग पर यह एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है, जिसके लिए प्रत्येक स्थिति में पारदर्शिता बनाये रखने की ज़रूरत है और इस संबंध में मिल रही शिकायतों का भी सन्तोषजनक ढंग से समाधान किया जाना ज़रूरी है। समूचे रूप में निचले स्तर पर इस संशोधन में जो ढंग-तरीका आयोग द्वारा अपनाया गया है, उससे भी यह ज़रूर प्रत्यक्ष हो जाता है कि नीयतन इस संशोधन में किसी तरह की त्रुटि की सम्भावना नहीं बनती। समूचे चुनाव प्रबन्ध को स्वस्थ बनाये रखने के लिए सभी बड़े राजनीतिक दलों का यह फज़र् बनता है कि वे इस प्रक्रिया पर पूरी पहरेदारी करते हुए पारदर्शी ढंग से इसे पूरा करने में चुनाव आयोग को पूर्ण सहयोग दें। किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ऐसी प्रक्रिया का पूरा होना बेहद ज़रूरी है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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