मोदी और ट्रम्प के बीच हुई बातचीत के वैश्विक निहितार्थ
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच के द्विपक्षीय व्यक्तिगत रिश्तों पर जमी बर्फ अब भीषण नीतिगत ठंड के बावजूद पिघलने लगी है। ऐसा इसलिए कि गत 10 दिसम्बर को दोनों नेताओं में बीच हुई फोन पर हुई वार्ता ने भारत-अमरीका संबंधों को पुन: मज़बूत करने का संकेत दिया है। उल्लेखनीय है कि डोनाल्ड ट्रम्प की पाकिस्तान परस्त नीतिगत हठधर्मिता और टैरिफ दरों में बेतहाशा बढ़ोतरी की वजह से भारत-अमरीका के महत्वपूर्ण व रणनीतिक सम्बन्धों में भरोसे का भाव टूटा है और दोनों नेताओं के बीच खटास बढ़ी है, जिसको दूर करने के लिए ही यह ताज़ातरीन पहल की गई है। पीएमओ के मुताबिक दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय व्यापार वार्ता की प्रगति की समीक्षा की और व्यापार, रक्षा, ऊर्जा तथा महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी जैसे अहम क्षेत्रों में पारस्परिक सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई। यही वजह है कि इस वार्ता को गर्मजोशीपूर्ण और सकारात्मक बताया गया है, जिसमें वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए साझा प्रतिबद्धता दोहराई गई है।
उल्लेखनीय है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के हालिया भारत दौरे के बाद हुई यह पहली बातचीत थी, जो भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को रेखांकित करती है। दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय व वैश्विक चुनौतियों पर विचारों का आदान-प्रदान किया और निरंतर संपर्क बनाए रखने का वादा किया। इस नई बातचीत का कूटनीतिक महत्व यह है कि ट्रम्प द्वारा पुन: की गई बातचीत अमरीका की चीन विरोधी रणनीति में भारत को महत्वपूर्ण साझेदार बनाने की कोशिश दर्शाती है, खासकर आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस (एआई), साइबर सुरक्षा और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में।
यही वजह है कि व्यापार समझौते की उम्मीदें बढ़ी हैं, हालांकि अमरीकी कृषि उत्पादों के बाज़ार पहुंच पर चर्चा जारी है। कुल मिलाकर यह ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में संबंधों को रीसेट करने का संकेत है, जो भारत के दूरगामी हित में है। अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकारों का भी कहना है कि ट्रम्प-मोदी की 10 दिसम्बर, 2025 की फोन वार्ता भारत-अमरीका रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने का संकेत देती है, खासकर पुतिन के भारत दौरे के ठीक बाद।
लिहाज़ा यह बातचीत संक्षिप्त फ्रेमवर्क के तहत रक्षा, व्यापार, ऊर्जा और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी में सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित रही। इसके जरिए प्रमुख रणनीतिक क्षेत्र यथा-रक्षा और सुरक्षा दोनों में सैन्य साझेदारी, एआई, साइबर सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक स्थिरता पर ज़ोर दिया गया, जो चीन के प्रभाव को संतुलित करने की दिशा में अहम प्रयास है।
वहीं, व्यापार व तकनीक के क्षेत्रों में द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने और सेमीकंडक्टर, क्लीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में सहयोग पर सहमति बनी, ट्रम्प के टैरिफ दबाव के बावजूद। जहां तक क्षेत्रीय चुनौतियों की बात है तो वैश्विक शांति, रूस तेल खरीद विवाद और साझा हितों पर विचार-विमर्श हुआ जिसका भू-राजनीतिक निहितार्थ यह है कि पुतिन के दिल्ली दौरे के बाद आया यह कॉल जहां अमरीका की चिंताओं को दूर करने और भारत को रूस से दूर खींचने की रणनीति दर्शाता है, वहीं भारत की बहुपक्षीय विदेश नीति बरकरार रहती है जबकि अमरीका इंडो-पैसिफिक में मज़बूत साझेदार चाहता है। कुल मिलाकर यह ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में संबंधों को रीसेट करने जैसा कदम समझा जा रहा है। स्पष्ट है कि ट्रम्प-मोदी की 10 दिसम्बर, 2025 की बातचीत रूस पर अमरीकी दबाव बढ़ाने का प्रयास दर्शाती है, खासकर भारत के रूसी तेल आयात को लेकर, लेकिन भारत ने अपनी स्वतंत्र नीति बरकरार रखी। वहीं चीन के संदर्भ में यह कॉल इंडो-पैसिफिक में साझेदारी मज़बूत करने का संकेत देती है, जो बीजिंग के प्रभाव को संतुलित करने की दिशा में है। इस बातचीत का रूस पर प्रभाव यह पड़ेगा कि पुतिन के हालिया दौरे के बाद हुई यह वार्ता अमरीका की चिंताओं को संबोधित करती है, जहां ट्रम्प रूसी तेल खरीद पर टैरिफ दंड लगाने की कोशिश कर रहे है, लेकिन भारत ने स्पष्ट रूप से आयात रोकने का वादा नहीं किया, जिससे मॉस्को को राहत मिलती है और यूक्रेन युद्ध पर आर्थिक दबाव कम होता दिखता है। कुल मिलाकर भारत की बहुपक्षीयता रूस के साथ संबंधों को स्थिर रखती है।
जहां तक इस बातचीत से चीन पर प्रभाव पढ़ने की बात है तो यह कहा जा सकता है कि जिस तरह से इस द्विपक्षीय बातचीत में रक्षा, तकनीक और इंडो-पैसिफिक सुरक्षा पर फोकस रखा गया, उससे चीन के विस्तारवाद का मुकाबला करने की रणनीति साफ उभरती है। हालांकि ट्रम्प की चिंता के बावजूद भारत एससीओ जैसे मंचों पर चीन से जुड़ाव बनाए रखेगा, लेकिन अमरीका के साथ सहयोग बढ़ने से बीजिंग को रणनीतिक चुनौती मिलेगी। साथ ही व्यापार टैरिफ विवाद सुलझने से अमरीका-भारत गठजोड़ मज़बूत होगा।
ट्रम्प-मोदी की 10 दिसम्बर की बातचीत से चीन के साथ भारत की सीमांकन नीतियों (एलएसी विवाद समाधान) में कोई तात्कालिक बदलाव की उम्मीद नहीं है। भारत ने एलएसी पर शांति बनाए रखने की प्रतिबद्धता दोहराई है, लेकिन ट्रम्प कॉल का फोकस इंडो-पैसिफिक सुरक्षा पर रहा, जो अप्रत्यक्ष रूप से चीन को संतुलित करने का प्रयास है। गलवान झड़प के बाद की नरमी बनी हुई है, लेकिन पूर्ण सीमांकन के लिए लंबी प्रक्रिया चलेगी। इस पर ट्रम्प कॉल का प्रभाव यह पड़ेगा कि यह वार्ता अमरीका-भारत रक्षा सहयोग बढ़ाने से चीन पर दबाव डालेगी, लेकिन भारत की बहुपक्षीय नीति सीमांकन वार्ताओं को स्वतंत्र रखेगी। इसलिए कोई नीतिगत बदलाव की घोषणा नहीं हुई। (युवराज)



