किसानों के लिए फायदेमंद है करौंदा का पेड़

करौंदा भारतीय उपमहाद्वीप का एक झाड़ी के आकार का स्वदेशी फलदार पेड़ है। इसका प्राकृतिक विस्तार भारत, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार से लेकर थाईलैंड और मलेशिया तक है। जहां तक अपने देश में इसकी पैदावार का सवाल है, तो यह परंपरागत सूखे और अर्धसूखे क्षेत्रों में विशेष रूप से होता है। इसलिए राजस्थान, बुंदेलखंड, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के सूखे हिस्से, कुछ महाराष्ट्र के हिस्सों में और पंजाब में भी इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। चूंकि पंजाब में सिंचाई की भरपूर व्यवस्था है, इसलिए यहां लोग इसका पेड़ कम लगाते हैं। खास तौर पर यह औसत से कम पानी, ज्यादा गर्मी, पथरीली मिट्टी में ज्यादा आसानी से लगने वाला पेड़ है। 
किसान अगर अपने आर्थिक फायदे के लिए करौंदे के पेड़ की खेती करना चाहें तो यह बुहत फायदेफंद है, क्योंकि इसमें बहुत कम लागत आती है, मेहनत भी थोड़ी बहुत पड़ती है और यह हर साल फलने वाला पेड़ है, जिस कारण किसानों की आय स्थिर रहती है। करौंदे का पेड़ तीन से चार साल के भीतर औसतन 2 से 4 किलो फल देने लगता है और जब यह 6 से 7 साल का हो जाता है, तब इसमें सालाना 6 से 10 किलो फल लगते हैं और एक पक्की उम्र के यानी 10 साल या उसके बाद के करौंदे के पेड़ में सालाना 15 से 20 किलो फल लगते हैं। बाजार में आमतौर पर कच्चे करौंदे 40 से 70 रुपये प्रतिकिलो के बीच में बिकते हैं और जब इनको प्रोसेसिंग गुणवत्ता से गुजारा जाता है, तो इनकी कीमत 60 से 100 रुपये प्रति किलो आसानी से हो जाती है। जबकि मुरब्बा और जैम के लिए पके करौंदे आमतौर पर 80 से 120 रुपये प्रति किलो बिकते हैं। करौंदे का पेड़ डेढ़ से तीन मीटर तक का ही होता है, इसके बाद यह झाड़ी की तरह चारों तरफ फैल जाता है। 
अगर कोई किसान एक एकड़ में 800 करौंदे के पौधे लगाकर इसकी खेती की शुरुआत करता है, तो उसके अगले तीन से चार सालों के बाद हर साल एक से डेढ़ लाख और 6 से 7 साल के बाद दो से ढाई लाख और 10 साल बाद तीन से पांच लाख रुपये प्रतिवर्ष का फायदा होता है। करौंदे का पेड़ लगाना आर्थिक रूप से इसलिए भी ज्यादा फायदेमंद होता है, क्योंकि इसकी लागत बहुत कम है और इसकी सिंचाई में लगभग न के बराबर खर्च होता है। खाद और दवा की भी इसे बहुत मामूली ज़रूरत पड़ती है और इसके साथ एक अच्छी बात यह है कि यह स्थानीय बाज़ारों से लेकर फूड प्रोसेसिंग कंपनियों तक हर जगह न केवल खरीदा जाता है बल्कि यह लगातार बिकने वाला फल अगर किसान इसका अचार, चटनी आदि बनाकर बेचें तो आय तीन गुना तक बढ़ सकती है। जहां तक किसानों के लिए करौंदे की खेती करने की विधि का सवाल है, तो जो किसान इसकी खेती करना चाहें, पहले अपनी मिट्टी की जांच करें। यह दोमट, रेतीली, कंकरीली और पथरीली मिट्टी में आसानी से लगता है। उस मिट्टी का पीएच मान जिसमें करौंदे का पेड़ लगाया जाना हो 5 से 8 डिग्री के बीच होता है और 20 से 45 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान में कोई फर्क नहीं पड़ता। इसे बहुत कम पानी की ज़रूरत पड़ती है और ड्रिप सिंचाई की सुविधा हो तो और बेहतर है।
जहां तक पौधे की तैयारी का सवाल है तो नर्सरी से कलमें/ग्राफ्टिड पौधे लगाना बेहतर होता है, इनके रोपने का समय जून से जुलाई सबसे अच्छा होता है या फिर फरवरी या मार्च। रोपाई की विधि बहुत सरल है। एक पौधा दूसरे पौधे से प्रूनिंग के साथ डेढ़ से ढाई मीटर के बीच में लगाया जाना चाहिए। जब यह पेड़ झाड़ी का रूप ले लेता है, तो दोनों पेड़ों के बीच 1.5 इंच का फासला पर्याप्त है। इसलिए एक एकड़ में 700 से 1200 करौंदे के पौधे लग जाते हैं। यह अलग-अलग मॉडलों पर अलग-अलग संख्या के पौधे लगते हैं। क्योंकि करौंदे की खेती में ज्यादा खर्च नहीं होता। इसलिए यह शुद्ध फायदा देने वाली फसल बन जाती है। फिर भी कुछ खर्च तो करना ही पड़ता है जैसे इसके लिए बनाये जाने वाले गड्ढों में 10 से 15 किलो गोबर की खाद डालनी चाहिए और साल में एक बार जैविक खाद यानी खरपतवार को खत्म करने वाली कंपोस्ट डालनी ज़रूरी होती है। इसके लिए रसायनिक खाद की बहुत कम ज़रूरत होती है, पर एनपीके (50:25:25) प्रति एकड़, से उत्पादन बेहतर रहता है। करौंदे के पौधों को पहले साल हल्की सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है, इसके बाद से तो ये साल में होने वाली बारिश से ही काम चला लेते हैं। 
हां, लेकिन पहले साल गर्मियों में 15 से 20 दिन के भीतर अगर एक सिंचाई हो जाती है तो उत्पादन बेहतर होता है। करौंदे के पेड़ की छंटाई यानी प्रूनिंग बहुत ज़रूरी है। प्रतिवर्ष दिसंबर से जनवरी के बीच इसमें हल्की छंटाई करनी चाहिए जिससे नई शाखाएं निकलती है और फलों की मात्रा बढ़ती है। आमतौर पर कलमी पौधे दो से तीन साल में फल देने लगते हैं और अगर बीज से उगाकर पौधे तैयार किये गये हैं, तो इन्हें फल देने में चार से पांच साल लग जाते हैं। इसके फलों का मौसम मार्च से जुलाई के बीच होता है। जहां तक करौंदे के रोजमर्रा के जीवन में उपयोग की बात है तो कच्चे करौंदे का अचार बहुत लोकप्रिय है। बाज़ार में मिक्स अचार में भी करौंदा डालने का बहुत चलन है, इसलिए मिक्स अचार में भी इसकी मांग बहुत ज्यादा है। पकने की शुरुआती अवस्था से करौंदों से बहुत अच्छा मुरब्बा और इसकी बेहद तीखी खटासयुक्त चटनी बहुत स्वादिष्ट बनती है। 
जैम और जैली बनाने के लिए भी इसकी प्रोसेसिंग उद्योग में खासी मांग है और कढ़ी, दाल और सब्जियों में खट्टापन लाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। पका करौंदा लाल या हल्के बैंगनी रंग का होता है और इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है। इसे सीधे भी खाया जाता है, बिना कोई चीज बनाए। करौंदे का औषधीय उपयोग भी बहुत है। यह रक्त बढ़ाने वाला फल होता है, एंटीऑक्सीडेंट और पाचनशक्ति से भरपूर होता है, इसके खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, त्वचा और बालों के लिए भी यह बेहद गुणकारी है। इसके अन्य उपयोगों में किसान इसे खेत की मेढ़ में सुरक्षा बाढ़ के तौर पर भी लगाते हैं तथा ये पशुओं के चारे के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है, खासकर बकरियों के लिए। ...और हां, ये लैंडस्कैपिंग के लिए भी बढ़िया पेड़ है, क्योंकि सुंदर झाड़ी के रूप में इसे बाग बगीचों में लगाया जाता है। इस तरह करौंदा बहुपयोगी और आर्थिक रूप से बेहद फायदेमंद पेड़ है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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