हरेंद्र सिंह-एलबम
हरेंद्र सिंह शहर के जाने माने वकील थे। वैसे तो वह सिविल मामलों के विशेषज्ञ थे, पर उससे ज्यादा प्रसिद्धि उन्हें डिवोर्स यानी तलाक के मामलों के कारण मिली थी। शहर के ऐसे न जाने कितने परिवार थे, जिनका वैवाहिक जीवन उनका आभारी था। उन्हें अलग होने यानी तलाक लेने से उन्होंने रोक दिया था। ऐसे युगल उनका बड़ा सम्मान करते थे। हर साल उन्हें गिफ्ट भी देते थे। इसके अलावा अनेक पति पत्नी को अलग भी कराया था। जब उन्हें लगता कि ये पति-पत्नी साथ नहीं रह सकते और अलग होने में ही इनकी भलाई है, तब वह उनका केस लेकर उचित दलीलें देकर किसी भी तरह की बदनामी कराए बगैर उन्हें अलग करा देते थे।
उस दिन सुबह-सुबह नीता और निखिल उनके ऑफिस में बैठे थे।
‘चाय लीजिएगा?’ हरेंद्र सिंह ने पूछा, ‘अब तो आप लोगों को अलग ही होना है तो साथ बैठ कर कम से कम एक कप चाय ही पी लीजिए।’ वे दोनों कुछ कहते, उसके पहले ही वकील साहब ने फोन पर चाय के लिए कह दिया था।
‘मुझे किसी भी हालत में अब निखिल के साथ नहीं रहना। मुझसे अब सहन नहीं हो रहा है।’ ‘मुझे भी नहीं रहना तुम्हारे साथ। तुम्हारी हाज़िरी में मुझे घुटन सी होती है।’
‘तुम्हारी शादी के कितने दिन हुए?’
‘पांच साल।’ नीता ने कहा।
‘शादी कैसी थी?’
‘मतलब?’
‘आपका प्रेम विवाह या...?’
‘जी प्रेम विवाह था।’ निखिल ने कहा।
‘और पांच साल में ही प्यार का झरना सूख गया।’
‘प्यार, वह मेरा भ्रम था।’ निखिल ने कहा।
‘और वहां कोई झरना था ही नहीं।’ नीता ने कहा।
वकील साहब दोनों को देखते रहे। दोनों दृढ़ लग रहे थे। उन्होंने पूछा, ‘प्यार कैसे हुआ था?’
‘हम दोनों कॉलेज में पढ़ रहे थे। दोनों में दोस्ती हुई और फिर...’
‘उस समय आप दोनों को लगा होगा कि एक-दूसरे के साथ जीवन भर रह सकेंगे?’
‘हां, उस समय हमें लगा था कि हमारा साथ जीवन भर रहेगा।’
‘तो फिर इन पांच सालों या एक दो सालों में ऐसा क्या हुआ कि आप लोगों को लगा कि बस अब हो गया।’
‘वकील साहब,’ नीता ने कहना शुरू किया, ‘निखिल हमेशा व्यस्त रहता है। मेरी ओर ध्यान ही नहीं देता। इन्हें मेरी कोई दरकार नहीं है। छोटी-छोटी बात में मेरी गलती निकालते रहते है। लड़ाई झगड़ा करते हैं। अब इन्हें मुझमें बिल्कुल रुचि नहीं रही। हम पिछले छह महीने से कहीं बाहर भी नहीं गए हैं। सिनेमा भी नहीं देखा है, रेस्टोरेंट भी नहीं गए हैं।’
‘और यह मेरा ध्यान नहीं रखतीं। पूरा दिन फोन पर किसी सहेली या किसी और से बातें करती रहती हैं। घर अस्तव्यस्त रहता है। खाना समय से नहीं बनता। छोटी छोटी बातों में कमी निकालती हैं। मैं त्रस्त हो गया हूं।’ निखिल ने कहा।
इतने में चाय आ गई। कप से भाप निकल रही थी। हरेंद्र सिंह ने एक कप लिया और नीता की ओर बढ़ाया। हाथ में कप थमाते समय चाय उसकी साड़ी पर गिर गई।
‘अरे जल जाओगी।’ चिल्लाते हुए निखिल ने रूमाल निकाली और साड़ी पर गिरी चाय साफ करने लगा। वकील साहब ने कहा, ‘माफ कीजिएगा, दूसरी चाय मंगाता हूं।’
‘वकील साहब, अब रहने दीजिए।’
‘तो ऐसा कीजिए, एक जन कप में ले लो और एक जन प्लेट में, चलेगा न?’
‘हां, चलेगा।’
नीता और निखिल ने आधी आधी चाय बांट ली। वकील साहब देखते रहे। थोड़ी और चर्चा हुई। उसके बाद वकील साहब ने कहा, ‘एक काम करिए। आप लोगों को अलग होना है न, वह तो हो जाएगा। पर मेरी एक सलाह मानिए। आप लोग आज घर जाइए। दो दिन बाद फिर आइएगा। आप लोगों को इन दो दिनों में एक दूसरे से बात नहीं करनी। खाना होटल से मंगा कर खाना है। और जब आप लोग आइएगा तो विवाह के फोटो का अल्बम और अन्य फोटो हों तो ले आइएगा।’
‘ठीक है।’ दोनों ने कहा।
दो दिन बाद नीता और निखिल वकील साहब के यहां आए। विवाह और रिसेप्शन का फोटो अल्बम तथा अन्य फोटो वकील साहब को दो दिए। हरेंद्र सिंह ने जल्दी जल्दी दोनों अल्बम और फोटो देखे। फोटो देखते हुए उन्होंने पूछा, ‘शादी के बाद हनीमून पर कहां गए थे?’
‘मनाली।’ दोनों ने एक साथ कहा।
‘यह फोटो कितना अच्छा है।’ वकील साहब ने अल्बम से एक फोटो निकाल कर दोनों को दिखाया। फोटो में निखिल नीता को उठाए था। नीता के हाथ निखिल के गले से लिपटे थे। ‘यह फोटो कैसे खींचा था?’
निखिल एकटक उस फोटो को देखते हुए बोला, ‘वकील साहब, हम सुबह सनराइज प्वाइंट पर जा रहे थे। रास्ते में कोहरा था और वातावरण में ठंडी मादकता थी। तभी मुझे एकाएक लगा कि पिक्चर में हीरो हीरोइन को उठा सकता है तो मैं क्यों नहीं अपनी हीरोइन को उठा सकता और मैंने नीता को उठा लिया। उस समय वहां एक अन्य युवक था। उसने भी मुझे देख कर अपनी पत्नी को उठा लिया। हम दोनों ने एक-दूसरे के फोटो खींचे।’
‘और निखिल मुझे उठा कर लगभग आधा किलोमीटर चला था। बेचारा थक गया था।’ यह कहते हुए नीता के चेहरे पर मुग्धता के भाव आए और उसने एक क्षण के लिए निखिल की ओर प्यार से देखा।
हरेंद्र सिंह ने भी यह दृश्य देखा। उन्हें लगा कि इस युगल को एक रखा जा सकता है। नीता और निखिल फोटो देखने और चर्चा करने में व्यस्त हो गए। उस समय दोनों भूल गए कि वे यहां इस प्यार के विच्छेद के लिए आए थे।
‘आप लोग यह फोटो इस प्रसंग के बाद पहली बार देख रहे हैं?’ वकील साहब ने पूछा।
‘हां।’ नीता ने कहा।
‘और उन क्षणों में आप लोग यह भूल गए थे कि यहां क्यों आए हैं?’
‘हां।’ निखिल ने कहा।
‘तो फिर एक काम कीजिए। ये फोटो और अल्बम लेकर आप लोग घर जाइए। रोज़ाना शाम को ये फोटो साथ बैठ कर देखिएगा। इन दृश्यों को अपनी आंखों के सामने लाना। डिवोर्स शब्द कभी मत बोलना। अगर उस समय भी आपको अलग होना होगा तो मैं व्यवस्था करूंगा।’
‘ठीक है।’ निखिल ने अल्बम उठाते हुए कहा।
सात दिनों बाद दोनों फिर वापस आए। उस समय नीता चटक लाल रंग की साड़ी पहने थी तो निखिल रेशमी पठानी सूट पहने था। दोनों को देख कर वकील साहब ने कहा, ‘मेरी हार्दिक शुभकामनाएं। आपका वैवाहिक जीवन हमेशा संपूर्ण रहे और उसमें कभी कोई बाधा न आए।’
‘वकील साहब, हम हमेशा आपके ऋणी रहेंगे। प्यार क्या होता है, हमें अब पता चला। अगर हम अलग हो गए होते तो हमने क्या खो दिया होता, उसकी कल्पना कर के ही कांप उठता हूं।’ ‘आज चाय भी लेंगे और मिठाई भी। मैं वचन देता हूं कि इस समय नीता की साड़ी नहीं खराब करूंगा।’ वकील साहब ने आंखें झपकाते हुए कहा।
चाय आई और खत्म भी हो गई। वकील साहब ने कहा, ‘नीता और निखिल, एक बात का ध्यान रखना। वैवाहिक जीवन एक वृक्ष की तरह है। उसे रोज़ाना प्यार के पानी से सींचना पड़ता है। तभी वह दशकों तक हराभरा बना रहता है। उसे प्यार, संगीत, सहयोग और ऊष्मा चाहिए, वरना वह सूख जाएगा। और अंत में वैवाहिक जीवन में कितना भी लड़ाई झगड़ा हो, कभी डिवोर्स की बात नहीं करनी चाहिए। और ये फोटो, जब भी मौका मिले, इन्हें देखते रहिएगा। मेरी ओर से आप दोनों का स्वागत और शुभकामनाएं।’
नीता और निखिल ने वकील साहब का आभार व्यक्त किया और एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर बाहर निकले। (सुमन सागर)



